यात्रा संस्मरण साहित्य के जनक थे राहुल साकृत्यायन
पहली बार किसी भारतीय भाषा में मध्य एशिया का इतिहास लिखने वाले राहुल साकृत्यायन बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। घुमक्कड़ी और यायावरी के दौरान साहित्य जैसे दुष्कर कार्य को अंजाम देने वाले इस साहित्यकार को देश में यात्रा संस्मरण साहित्य का जनक माना जाता है।
नई दिल्ली। पहली बार किसी भारतीय भाषा में मध्य एशिया का इतिहास लिखने वाले राहुल साकृत्यायन बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। घुमक्कड़ी और यायावरी के दौरान साहित्य जैसे दुष्कर कार्य को अंजाम देने वाले इस साहित्यकार को देश में यात्रा संस्मरण साहित्य का जनक माना जाता है।
ललित कला अकादमी के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ कवि अशोक वाजपेई ने बताया कि राहुल संाकृत्यायन संभवत पहले ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने पहली बार किसी भारतीय भाषा में मध्य एशिया का इतिहास लिखा है।
इस पुस्तक के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी नवाजा गया। है। हालाकि उन्होंने बताया कि यह कृति साहित्यिक नहीं थी और यह इतिहास लेखन था। इसके बावजूद इस रचना के लिए उन्हें प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी का पुरस्कार से नवाजा गया।
इसके अलावा उनको साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया था।
वाजपेई ने कहा कि साकृत्यायन की दो और अद्भुत पुस्तकों के लिए राहुल को हमेशा ही याद किया जाएगा। दोहा कोष नामक किताब में उन्होंने सीधी भाषा के दोहों का अद्भुत संचयन किया है। ऐसे ही उनके प्रसिद्ध निबंध अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा में अनूठा वृत्तात संजोया गया है, जो और कहीं देखने को नहीं मिलता है।
उन्होंने कहा कि साहित्य यात्रा वृत्तात, निबंध, यायावरी, बौद्ध दर्शन, भारतीय दर्शन, इतिहास, बहु भाषाविद्वता, समाजशास्त्र, राजनीति जैसे विषयों के राहुल एक समग्र विशेषज्ञ थे। यह विरल संयोग वर्तमान दौर में देखने को भी नहीं मिलता।
भारतीय साहित्य में यात्राकार, इतिहासविद, तत्वान्वेषी, युगपरिवर्तनकारी लेखक ने अपने 70 साल के जीवन में लगभग 40 साल तक घर से दूर रहे। उन्होंने पहली बार मात्र नौ वर्ष की आयु में घर छोड़ा और उसके बाद से यायावरी जीवन अपना लिया। महा पडिंत राहुल साकृत्यायन का जन्म पश्चिम उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पंदहा गाव में नौ अप्रैल 1893 को एक भूमिहार ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उनका बचपन का नाम केदार पाडेय था।
हिन्दी अकादमी के उपाध्यक्ष और साहित्यकार अशोक चक्रधर ने कहा कि राहुल संाकृत्यायन उन लेखकों में से एक थे, जिन्होंने समाज को एक नई राह दिखाई। घुमंतू और यायावर साकृत्यायन अपने समय से बहुत आगे थे। राहुल के लेखन में समग्रता झलकती है। वह तार्किकता और वैज्ञानिकता के साथ अभिलेखों का अध्ययन करते थे। यात्रा वृत्तात लिखने में आज तक कोई उनके सामने नहीं ठहरता।
हालाकि, चक्रधर ने राहुल साकृत्यायन की रचनाओं को स्कूली और महाविद्यालईन पाठ्यक्रमों में उचित स्थान नहीं मिलने को लेकर अफसोस जताया। उन्होंने कहा कि उनके लेख आज के जमाने के लिए बेहद प्रासंगिक हैं और उन्हें पाठ्य पुस्तकों में उचित स्थान मिलना चाहिए।
देश यात्रा के अलावा महा पडिंत राहुल साकृत्यायन ने नेपाल, तिब्बत, श्रीलंका, ईरान, चीन और सोवियत संघ जैसे देशों का भी दौरा किया। हिन्दी, संस्कृत, पाली, भोजपुरी, उर्दू, फारसी, अरबी, तमिल, कन्नड़, तिब्बती, सिंघली, फ्रेंच, और रूसी भाषाओं में पारंगत साकृत्यायन 14 अप्रैल 1963 को पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में अपना साहित्य संसार सौंपकर इस दुनिया से विदा हो गए।
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