महाभारत सीरियल एक शब्द को लेकर 6 के खिलाफ वारंट
वाराणसी। दूरदर्शन पर 22 साल पूर्व लगातार प्रसारित धारावाहिक महाभारत में द्रौपदी के चरित्र को लेकर की गई अमर्यादित टिप्पणी के मामले से फिल्मकार बीआर चोपड़ा का पीछा उनकी मृत्यु के बाद भी छूटता नहीं दिख रहा है। इस मामले में स्थानीय अदालत ने 22 साल बाद सीरियल यूनिट के छह सदस्यों के खिलाफ फिर से वारंट जारी किया है। बताते चलें कि बीआर चोपड़ा का निधन पांच नवंबर 2008 को हो चुका है। आरोपी कलाकारों और निर्माता-निर्देशक की पेशी के लिए सात जून की तिथि तय की गई है।
न्यायिक मजिस्ट्रेट [तृतीय] की अदालत में उस्मानपुरा [जैतपुरा] के रामजी गुप्ता ने 18 सितंबर 1989 को सीरियल के निर्माता- निर्देशक बीआर चोपड़ा, निर्देशक रवि चोपड़ा, कलाकार पंकज धीर, पुनीत इस्सर, विनोद कपूर और गूफी पेंटल के खिलाफ परिवाद दाखिल किया।
परिवाद में कहा गया कि 20 अगस्त 1989 को वह दूरदर्शन पर महाभारत सीरियल का 47वां एपिसोड देख रहे थे। इसमें द्रौपदी के लिए कर्ण की भूमिका निभा रहे पंकज धीर ने वेश्या जैसा अमर्यादित व घृणित शब्द का प्रयोग कर हिंदू धर्मशास्त्र और नारी जाति को अपमानित किया। इससे हिंदू धर्मशास्त्र में आस्था रखने वालों को काफी मानसिक आघात पहुंचा। द्रौपदी भारतीय नारियों में आदर्श और पवित्र नारी मानी जाती है। धार्मिक पुस्तकों में भी द्रौपदी के लिए इस शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है।
इस शब्द का प्रयोग साजिशन करने के साथ ही निर्माता-निर्देशक एवं कलाकारों द्वारा एक राय होकर दूरदर्शन पर प्रसारित कराया गया। धारावाहिक में कलाकार पंकज धीर ने कर्ण, पुनीत इस्सर दुर्योधन, विनोद कपूर दु:शासन तथा गूफी पेंटल शकुनि मामा की भूमिका अदा कर रहे थे। रामजी गुप्ता के आरोप के समर्थन में कई गवाहों गणपति शास्त्री, ज्ञानप्रकाश, डॉ. रामरंग शर्मा तथा रुद्रकांत पांडेय ने अदालत में गवाही दी।
गवाहों के बयान देखने के बाद तत्कालीन न्यायिक मजिस्ट्रेट [तृतीय] रमेश तिवारी ने नौ नवंबर 1989 को आरोपियों को दफा 500 [मानहानि], 295 [धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाना] एवं 120बी [षड्यंत्र रचना] के तहत मुकदमा की सुनवायी के लिए तलब करने का आदेश दिया। उनके हाजिर न होने पर अदालत ने जमानती वारंट जारी करने का आदेश दिया।
इस आदेश को आरोपियों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने 13 मार्च 1991 को न्यायिक मजिस्ट्रेट की अग्रिम कार्रवाई पर रोक लगा दी। 26 अप्रैल 2007 को स्थगन आदेश समाप्त भी हो गया। इस फैसले के बाद जब मुकदमे की सुनवाई की तैयारी शुरू हुई तो अदालत से पत्रावली ही गायब हो चुकी थी। काफी खोजबीन के बाद पत्रावली नहीं मिली तो जिला जज ने पांच अगस्त 2010 को गुमशुदा अभिलेखों के पुनर्गठन का आदेश दिया। मुकदमे के पक्षकार रामजी गुप्ता ने अधिवक्ता विवेक शंकर तिवारी [माइकल] के मार्फत अभिलेखों की प्रतियां अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट [प्रथम] की अदालत में दाखिल किया। इस पर ही सुनवाई के दौरान जमानती वारंट जारी किया गया।
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