'धमकाने की कोशिश हो रही', 56 पूर्व जजों ने की न्यायाधीशों पर महाभियोग चलाने की कड़ी आलोचना; पढ़ें पूरा मामला
56 पूर्व जजों ने न्यायाधीशों पर महाभियोग चलाने के प्रयासों की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने इसे न्यायपालिका को धमकाने की कोशिश बताया है। पूर्व जजों का य ...और पढ़ें

56 पूर्व जजों ने न्यायाधीशों पर महाभियोग चलाने की कड़ी आलोचना की। (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। तिरुप्पारनकुंड्रम सुब्रमण्यस्वामी मंदिर मामले अपना फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन को विपक्ष अब महाभियोग द्वारा पदच्युत करना चाहता है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट में सेवा दे चुके न्यायाधीशों सहित छप्पन पूर्व न्यायाधीशों ने मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समर्थ में एक पत्र जारी किया है।
दरअसल, अपने समर्थन पत्र के माध्यम से 56 न्यायाधीशों ने महाभियोग प्रस्ताव पर गंभीर आपत्ति व्यक्त की है। न्यायाधीशों ने चेतावनी दी कि यदि इसे जारी रहने दिया गया, तो यह हमारे लोकतंत्र और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की जड़ों को ही नष्ट कर देगा।
अपने इस पत्र के माध्यम से इन न्यायाधीशों ने इसे समाज के एक विशेष वर्ग की वैचारिक और राजनीतिक अपेक्षाओं के अनुरूप न चलने वाले न्यायाधीशों को धमकाने का एक बेशर्म प्रयास करार दिया है। अपने पत्र में न्यायाधीशों ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में घोषित आपातकाल का भी उल्लेख किया।
इन न्यायाधीशों का कहना है कि यह याद किया जा सकता है कि आपातकाल के अंधकारमय दौर में भी, तत्कालीन सरकार ने 'सत्ता का पालन करने' से इनकार करने वाले न्यायाधीशों को दंडित करने के लिए विभिन्न तंत्र अपनाए थे, जिनमें पदोन्नति को रद करना भी शामिल था। इस पत्र में उन्होंने तीन उल्लेखनीय निर्णयों का हवाला दिया, जिनमें 1973 का केशवानंद भारती मामला भी शामिल है
विपक्ष ने महाभियोग का प्रस्ताव पेश किया
गौरतलब है कि इस सप्ताह की शुरुआत में कांग्रेस की सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव सहित 100 से अधिक इंडी गठबंधन के सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को यह प्रस्ताव प्रस्तुत किया है।
हालांकि, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने महाभियोग के इस प्रयास की कड़ी आलोचना करते हुए विपक्ष पर तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप लगाया। लोकसभा में बोलते हुए उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद से ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी न्यायाधीश को किसी फैसले के लिए महाभियोग का सामना करना पड़े। उन्होंने यह कदम अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए उठाया है।
मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश ने कौन सा फैसला दिया?
उल्लेखनीय है कि तिरुप्पारनकुंड्रम सुब्रमण्यस्वामी मंदिर का मामला तमिलनाडु के मदुरै में एक पहाड़ी पर स्थित दो प्राचीन स्तंभों में से एक पर 'दीपाथन' नामक एक उत्सव दीपक जलाने के इर्द-गिर्द घूमता है। इस पहाड़ी पर छठी शताब्दी का एक मंदिर और 14वीं शताब्दी की एक दरगाह दोनों स्थित हैं।
इसी मंदिर से और दिया से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने राज्य सरकार और मंदिर के अधिकारियों के विरोध को खारिज कर दिया और आदेश दिया कि दीपक को पहाड़ी के तल पर स्थित स्तंभ के बजाय पहाड़ी के मध्य में बने स्तंभ पर जलाया जाए, जो कि 100 से अधिक वर्षों से चली आ रही परंपरा है।
उन्होंने तर्क दिया कि ऊपरी स्तंभ भी मंदिर की संपत्ति है और इसलिए इसे अनुष्ठान में शामिल किया जाना चाहिए। न्यायालय ने कब्जे के दावे की आवश्यकता पर बल दिया। हालांकि, इस पूरे मामले में डीएमके ने तर्क दिया था कि ऐसा आदेश सांप्रदायिक तनाव को भड़का सकता है।

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