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Positive India: कोरोना से इस अनोखी मुहिम के तहत मिलकर लड़ रहे हैं देश के 500 वैज्ञानिक

प्रतिष्ठित कॉलेजों के वैज्ञानिकों शोधकर्ताओं इंजीनियरों डॉक्टरों पब्लिक हेल्थ शोधकर्ताओं साइंस कम्युनिकेटर्स ने इंडियन साइंटिस्ट्स रिस्पॉऩ्स टू कोविड-19 मुहिम चलाई है।

By Vineet SharanEdited By: Published: Mon, 18 May 2020 08:51 AM (IST)Updated: Tue, 19 May 2020 10:05 AM (IST)
Positive India: कोरोना से इस अनोखी मुहिम के तहत मिलकर लड़ रहे हैं देश के 500 वैज्ञानिक
Positive India: कोरोना से इस अनोखी मुहिम के तहत मिलकर लड़ रहे हैं देश के 500 वैज्ञानिक

नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। कोरोना के कहर के बीच इससे जुड़ी भ्रामक जानकारियां भी लोगों तक पहुंच रही हैं, जिनसे उनकी समस्याएं और बढ़ जा रही हैं। इसे ध्यान में रखते हुए देश भर के प्रतिष्ठित कॉलेजों के वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, इंजीनियरों, डॉक्टरों, पब्लिक हेल्थ शोधकर्ताओं, साइंस कम्युनिकेटर्स और छात्रों ने इंडियन साइंटिस्ट्स रिस्पॉऩ्स टू कोविड-19 नाम से एक मुहिम चलाई है।

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इस मुहिम से टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की संध्या कौशिका, आईएमएससी चेन्नई और मदुरई कामराज यूनिवर्सिटी के एस. कृष्णास्वामी, अशोका यूनिवर्सिटी और आईएमएससी चेन्नई के गौतम मेनन, साउथ अफ्रीकन रेडियो एस्ट्रोनॉमी ऑब्जरवेटरी और एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के मोहन रामानुजम, आईएमएससी चेन्नई के आर रामानुजम, अशोका यूनिवर्सिटी के एल एस शशिधरा, आईएमएससी, चेन्नई के राहुल सिद्धार्थन और निमहंस बेंगलुरु की रितिका सूद प्रमुख हैं।

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की एसोसिएट प्रोफेसर और इंडियन साइंटिस्ट्स रिस्पांस टू कोविड-19 की वालंटियर संध्या कौशिका ने बताया कि एक तरफ कोरोना से देश जूझ रहा है, वहीं दूसरी तरफ इसके बारे में हॉक्स (फेक) जानकारियां भी फैलाई जा रही हैं। ऐसे में हमने मार्च के अंतिम सप्ताह से कोरोना के बारे में फैल रही भ्रामक जानकारियों को दूर करने के लिए मुहिम शुरू की। हमारा मकसद है कि लोगों तक सही जानकारी वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर पहुंचे।

उन्होंने बताया कि चमगादड़ की वजह से पेड़ काट देने चाहिए, भारतीय अपनी इम्युनिटी से कोरोना से लड़ सकते हैं, इसीलिए ज्यादा परेशान नहीं होना चाहिए जैसी कई जानकारियां लोगों तक पहुंच रही हैं। ऐसे में हम व्हाट्सअप के द्वारा, जूम पर बेविनार के द्वारा, वीडियो के द्वारा गलत जानकारियों को सही करते हैं।

संध्या कौशिका ने बताया कि हॉक्स बस्टिंग के लिए प्रश्न-उत्तर सेशन भी करते हैं। मौजूदा समय में अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए हम 14 भाषाओं में जानकारी दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि अफवाहों/हॉक्स की जानकारी हमको टि्वटर या मेल के मार्फत मिलती है। बड़ी संख्या में एक जैसे या कुछ गंभीर सी लगने वाली अफवाहों को हम प्राथमिकता के आधार पर चुनते हैं। हम इलेस्ट्रेटर और डिजाइन के द्वारा सुंदर पोस्टर बनाते हैं, ताकि लोगों तक सुलभ और आसानी से जानकारी पहुंच सकें।

कौशिका ने बताया कि कभी-कभार ऐसा होता है कि शुरुआत में कोरोना को लेकर कोई जानकारी आई पर बाद में उसमें संशोधन या कुछ नया पक्ष जुड़ता है तो उसे भी हम जोड़ते हैं। मसलन पहले ये जानकारी आई थी कि पेट्स को कोरोना नहीं होगा पर बाद में इसमें बदलाव हुआ। नई जानकारी के आधार पर हमने उसे बदला। संध्या कौशिका ने बताया कि हम कोविड-19 को लेकर फैल रही भ्रामक जानकारी को लेकर चिंतित थे। हमारे साथ जुड़े लोग साइंस बैकग्राउंड और एनालिटिकल ट्रेनिंग की समझ रखने वाले हैं।

क्यूरोसिटी जिम की करीकुलम और इनोवेशन मैनेजर और इंडियन साइंटिस्ट्स रिस्पांस टू कोविड-19 की वालंटियर रोहिणी करिंदीकर ने बताया करीब 15 से 20 लोग प्रत्येक सवाल या हॉक्स पर काम करते हैं। हम वैज्ञानिक साक्ष्यों से लेकर उसकी टर्मिनोलॉजी तक पर काम करते हैं। एक व्यक्ति लेख लिखने के बाद फैक्ट चेकिंग के लिए दो लोगों को भेजता है। इसके बाद ऱेफरेंसेज पढ़ने के लिए दो अन्य लोगों को भी भेजा जाता है। इसके बाद उसका इलेस्ट्रेशन या डिजाइन होता है।

मौजूदा समय में हिंदी, मलयालम, मराठी, असमी, उड़िया, नेपाली, पुर्तगाली, पंजाबी, उर्दू, खांसी, कन्नड़, मणिपुरी और बंगाली भाषाओं में काम हो रहा है। रोहिणी हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं के लिए काम करती हैं। हर भाषा में चीजों को व्यक्त करने के लिए अलग शख्स है। उन्होंने बताया कि करीब दस हजार लोगों तक अपनी बात को हम पहुंचाते हैं।

रोहिणी करिंदीकर का कहना है कि इंडियन साइंटिस्ट्स रिस्पॉन्स टू कोविड-19 में भ्रामक जानकारियों को सही करना, आम शख्स को विज्ञान के सिद्धांतों और बारीकियों को समझाना, आस्क ए साइंटिस्ट, मेंटल हेल्थ एंड हाइजीन जैसे कैंपेन से लोगों को जागरूक कर रहे हैं। हम लोगों को तीन लाइन का व्हाट्सअप टेक्स्ट बनाते हैं और प्रादेशिक भाषाओं में भाषांतर कर सोशल मीडिया पर डालते हैं, क्योंकि कई बार लोग बड़े टेक्स्ट को नहीं पढ़ते हैं।  


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