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    नोटबंदी का 34वां दिन : बैंकों में 3 दिन की छुट्टी, ATM में कम नहीं हो रही कतारें

    By Kishor JoshiEdited By:
    Updated: Mon, 12 Dec 2016 02:56 PM (IST)

    सभी बैंकों में लगातार तीन दिन की छुट्टी के कारण देश के कई शहरोंं में लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

    नई दिल्ली (जेएनएन)। सोमवार को नोटबंदी का 34वां दिन है। 'मिलाद-उन-नबी' की छुट्टी होने की वजह से देश के ज्यादातर राज्यों में बैंक बंद हैं। बैंक में तीन दिन की छुट्टी होने की वजह से लोगों में पैसे की किल्लत साफ़ तौर पर देखने को मिल रही है। बता दें कि महीने का दूसरा शनिवार था, इसीलिए बैंकों में छुट्टी थी। बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और नार्थ ईस्ट में बैंक खुले हैं। शनिवार और रविवार को भी बैंक बंद रहे।

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    लोगों को पैसे निकालने के लिए सिर्फ एटीएम पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है। एटीएम में भी कैश की कमी होने के कारण अधिकतर एटीम काम नहीं कर पा रहे हैं, जिस वजह से ग्राहकों की परेशानी बढ़ती जा रही है। जहां कैश मिल जा रहा है, वहां लोगों की काफी लंबी लाइन लगी हुई है।

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    सरकार ने नोटबंदी के बाद से ही कई तरह के नियम बनाए या पुराने नियमों में फेरबदल किया। एटीएम के अलावा लोग बिग बाजार, पेट्रोल पंप से भी स्वाइप करके 2 हजार रुपये तक निकाल सकते हैं। बैंकों में अभी नगदी की समस्या बरकरार है। ऐसे में लोगों को बैंकों से तय सीमा तक भी पैसा नहीं मिल पा रहा है।

    कतार है कि सिकुड़ने का नाम नहीं ले रही

    उत्तर प्रदेश में बैंकों व एटीएम में लगी लंबी कतार सिकुड़ने का नाम नहीं ले रही है। बैंकरों ने शिकायत की है कि उन्हें आरबीआई से पर्याप्त राशि नहीं मिल रही। राज्य के अधिकतर एटीएम खाली पड़े हैं, जबकि आरबीआइ द्वारा तय की गयी अधिकतम 24,000 रुपये की राशि जगह बैंकों में 5000, 10000 और 24000 रुपये ही दिए जा रहे हैं। बैंकों में लगातार तीन छुट्टियों के कारण उत्तर प्रदेश में काफी दिक्कतें आ रही हैं।

    नोटबंदी के बाद बढ़ी कैश की मांग

    देखें तस्वीरें : तीन दिन बैंक बंद, एटीएम का निकल गया दम

    एक सरकारी बैंक के कैश अधिकारी ने बताया, ‘नोटबंदी से पहले हमारी प्रतिदिन की जरूरत 40-50 लाख रुपये थी, लेकिन 9 नवंबर के बाद प्रतिदिन की मांग करीब 1.5 करोड़ रुपये हो गई है, क्योंकि लोगों ने आपात परिस्थिति के लिए पैसे जमा करने शुरू कर दिए हैं। दूसरी ओर आरबीआई हमारी प्रतिदिन की जरूरतों का मात्र 40 फीसद ही दे रहा है।‘