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    No Confidence Motion: छह दशक में लाए गए 28 अविश्वास प्रस्ताव, सर्वाधिक 15 इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ

    By Versha SinghEdited By: Versha Singh
    Updated: Thu, 27 Jul 2023 03:35 PM (IST)

    संसद का मानसून सत्र जारी है। इस दौरान संसद में मणिपुर में हो रही हिंसा को लेकर दोनों सदनों में खूब हंगामा हो रहा है। इस बीच भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लोकसभा उपाध्यक्ष और उत्तर पूर्व नेता गौरव गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है। अब तक 28 बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है।

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    छह दशक में लाए गए 28 अविश्वास प्रस्ताव, सर्वाधिक 15 इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ

    नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। No Confidence Motion: भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में अविश्वास प्रस्ताव का इतिहास छह दशक पुराना है। सरकार के कामकाज में अविश्वास व्यक्त करने के लिए लोकसभा के कामकाज में विपक्ष को दिए गए इस अधिकार का प्रयोग अब तक 28 बार किया जा चुका है। इसमें पीएम नरेन्द्र मोदी के कुल 9 साल के कार्यकाल में दूसरी बार लाया गया अविश्वास प्रस्ताव भी शामिल है।

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    जानिए क्या रहा है भारत में अविश्वास प्रस्ताव का इतिहास:

    जब किया गया अविश्वास प्रस्ताव का प्रविधान

    • सरकार के खिलाफ लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव निचले सदन के किसी सदस्य द्वारा लोकसभा के प्रक्रिया और व्यवहार संबंधी नियम 198 के अंतर्गत लाया जा सकता है।
    • वर्ष 1952 में यह प्रविधान किया गया कि 30 लोकसभा सदस्यों (अब यह संख्या 50 है) के समर्थन से सदन में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। प्रविधान होने के बावजूद पहली दो लोकसभा के कार्यकाल में एक भी अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत नहीं किया गया।

    चीन से हार के बाद पहला प्रस्ताव

    देश का पहला अविश्वास प्रस्ताव साल 1963 में जवाहरलाल नेहरू की सरकार के खिलाफ कांग्रेस नेता आचार्य जेबी कृपलानी ने पेश किया था। चीन से युद्ध में हार के बाद लाए गए इस प्रस्ताव के पक्ष में 62 और विरोध में 347 मत पड़े थे।

    1964 से 1975 तक पेश किए गए 15 प्रस्ताव

    भारतीय लोकतंत्र में 1964 से 1975 की अवधि में सबसे अधिक 15 अविश्वास प्रस्ताव पेश किए गए। इनमें से तीन लाल बहादुर शास्त्री की सरकार के खिलाफ थे। देश में सर्वाधिक 15 अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गाधी की कांग्रेस सरकार के खिलाफ पेश किए गए। यह सभी प्रस्ताव गिर गए। वर्ष 1964 में लाल बहादुर शास्त्री सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर सबसे लंबी अवधि (24 घंटे) तक बहस हुई।

    • मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के लोकसभा सदस्य ज्योतिर्मय बसु ने वर्ष 1973 से 1975 तक लगातार चार बार इंदिरा गांधी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किए। यह प्रस्ताव नवंबर 1973, मई 1974, जुलाई 1974 और मई 1975 में लाए गए। इनमें से एक अविश्वास प्रस्ताव आपातकाल की घोषणा से करीब एक माह पहले लाया गया था।

    • इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ वर्ष 1981 और 1982 में भी अविश्वास प्रस्ताव लाए गए। वर्ष 1987 में राजीव गाधी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ध्वनि मत से गिर गया था।

    अब तक केवल एक बार गिरी है सरकार

    भारत में अविश्वास प्रस्ताव के प्रभाव से केवल एक बार ही सरकार गिरी है। तब वोटिंग से पहले ही पीएम मोरारजी देसाई ने इस्तीफा दे दिया था। यह वर्ष 1979 की घटना है जब कांग्रेस के वाईबी चव्हाण ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। मोरारजी देसाई के खिलाफ इससे पहले एक और अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था।

    नजदीकी अंतर से बची राव सरकार

    पीवी नरसिंह राव के सामने दो बार अविश्वास प्रस्ताव के कारण सरकार बचाने का संकट उत्पन्न हुआ। वर्ष 1992 में पहला अविश्वास प्रस्ताव जसवंत सिंह ने पेश किया जो 46 मत से पराजित हो गया। इसी वर्ष अटल बिहारी वाजपेयी के दूसरे अविश्वास प्रस्ताव में नरसिंह राव आराम से सरकार बचाने में सफल रहे।

    वर्ष 1993 में तीसरे अविश्वास प्रस्ताव में राव बमुश्किल 14 मत से जीत हासिल कर सके। तब झारखंड मुक्ति मोर्चा के लोकसभा सदस्यों पर पैसा लेकर राव सरकार के पक्ष में मतदान करने का आरोप लगा। मामला अदालत तक पहुंचा था।

    वाजपेयी सरकार के खिलाफ प्रस्ताव

    वर्ष 2003 में लोकसभा में नेता विपक्ष सोनिया गांधी ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था जो 189 के मुकाबले 314 मतों से गिर गया।

    मोदी सरकार के खिलाफ आया पहला अविश्वास प्रस्ताव

    वर्ष 2018 में पीएम मोदी की सरकार के खिलाफ टीडीपी के श्रीनिवास केसिनेनी ने अविश्वास प्रस्तुत किया था जो 11 घंटे की बहस के बाद पारिस नहीं हो सका था। इसके पक्ष में 126 जबकि विपक्ष में 325 मत पड़े थे। प्रस्ताव पर बहस के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी पीएम मोदी की सीट तक पहुंचे और उन्हें गले लगाया था। मोदी ने इल अविश्वास प्रस्ताव को अपनी सरकार के खिलाफ विपक्ष का अहंकार बताया था।

    विश्वास प्रस्ताव के बारे में भी जानिए

    लोकसभा में विश्वास प्रस्ताव का भी प्रविधान है। इसे सरकार की तरफ से प्रस्तुत किया जाता है। अब तक विश्वास प्रस्ताव पेश करने के बाद तीन सरकारें गिर चुकी हैं- 1990 में वीपी सिंह सरकार, 1997 में एचडी देवेगौड़ा की सरकार और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार।

    अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

    अविश्वास प्रस्ताव एक संसदीय प्रक्रिया है जो विपक्ष को सरकार के बहुमत और शासन करने की क्षमता को चुनौती देने की अनुमति देती है। यदि प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो सरकार को इस्तीफा देना पड़ जाता है।

    नियम 198(2): अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन होना चाहिए।

    आजादी के बाद से लोकसभा में 28 अविश्वास प्रस्ताव लाए गए हैं।

    पहला अविश्वास प्रस्ताव 1963 में तीसरी लोकसभा के दौरान प्रस्तावित किया गया था जब जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे।

    अविश्वास प्रस्ताव या नो कॉन्फिडेंस मोशन कई कारणों से सदन में लाया जा सकता है। जब किसी विपक्षी दल को लगता है कि लोकसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है, तो वो अविश्वास प्रस्ताव ला सकती है।

    अविश्वास प्रस्ताव एक संसदीय प्रक्रिया है, जिसके तहत विपक्ष सरकार को चुनौती दे सकता है। अगर प्रस्ताव पास हो जाता है, तो सरकार को इस्तीफा देना पड़ता है। हालांकि, यह प्रक्रिया इतनी सरल नहीं है। मॉनसून सत्र के दौरान सरकार के खिलाफ विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव की तैयारी की है।

    बहस के बाद लोकसभा अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग करेगी। यदि सदन के अधिकांश सदस्यों द्वारा इसका समर्थन किया जाता है तो प्रस्ताव पारित हो जाएगा। यदि अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो सरकार को इस्तीफा देना होगा।

    अपने उत्तर में, नेहरू ने टिप्पणी की, “अविश्वास प्रस्ताव का उद्देश्य सरकार में पार्टी को हटाना और उसकी जगह लेना है। वर्तमान उदाहरण में यह स्पष्ट है कि ऐसी कोई अपेक्षा या आशा नहीं थी।

    अविश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में बहस होती है। प्रस्ताव उस सदस्य द्वारा पेश किया जाएगा जिसने इसे पेश किया है, और सरकार तब प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देगी। इसके बाद विपक्षी दलों को प्रस्ताव पर बोलने का मौका मिलेगा।

    संसद में कोई भी पार्टी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकती है और सत्तारूढ़ सरकार को सत्ता में बने रहने के लिए बहुमत साबित करना होता है। अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा के नियमों के अनुसार लाया जाता है। लोकसभा के नियम 198(1) और 198(5) के तहत इसे स्पीकर के बुलाने पर ही पेश किया जा सकता है।