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    26/11 की चौथी बरसी से पहले दफन हुआ कसाब

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    Updated: Thu, 22 Nov 2012 09:10 PM (IST)

    देश पर सबसे बड़े आतंकी हमले की चौथी बरसी के पांच दिन पहले ही एकमात्र जिंदा पकड़े गए आतंकी अजमल कसाब को फांसी दे दी गई। सुबह साढ़े सात बजे पुणे की यरवदा ...और पढ़ें

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    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। देश पर सबसे बड़े आतंकी हमले की चौथी बरसी के पांच दिन पहले ही एकमात्र जिंदा पकड़े गए आतंकी अजमल कसाब को फांसी दे दी गई। सुबह साढ़े सात बजे पुणे की यरवदा जेल में इस दुर्दात आतंकी का खेल खत्म हो गया। दुनिया को इसके बारे में तब पता चला जब उसे जेल में ही सुपुर्दे खाक किया जा चुका था।

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    सीधे प्रधानमंत्री की निगरानी में हो रहे इस आपरेशन के बारे में वरिष्ठ मंत्रियों और अधिकारियों को भी भनक नहीं लगी। इस अति गोपनीय आपरेशन को 'एक्स' नाम दिया गया।

    वैसे तो कसाब की नियति सुप्रीम कोर्ट के 29 अगस्त के फैसले के साथ ही तय हो गई थी। लेकिन पांच नवंबर को दया याचिका निरस्त कर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इसका रास्ता साफ किया। फांसी के लिए कसाब को 19 नवंबर को मुंबई के आर्थर रोड जेल से यरवदा जेल लाया गया। दया याचिका ठुकराए जाने के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आपरेशन की कमान अपने हाथ में ले ली।

    सात नवंबर को रोम से वापस लौटते ही सुशील कुमार शिंदे को साउथ ब्लाक तलब किया गया और रक्षा मंत्री एके एंटनी की उपस्थिति में पूरे आपरेशन की रूपरेखा तैयार की गई। इसमें संसद के शीतकालीन सत्र के पहले ही कसाब की फांसी का फैसला लिया गया। इस बीच कसाब की फांसी को देखते हुए गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने पाकिस्तानी गृह मंत्री रहमान मलिक की 22-23 नवंबर की प्रस्तावित भारत यात्रा से इन्कार कर दिया।

    पूरी तैयारी के साथ ही आठ नवंबर को महाराष्ट्र सरकार को राष्ट्रपति के फैसले के साथ कसाब की फाइल भेज दी गई। 11 नवंबर को राज्य सरकार ने विशेष अदालत से कसाब का डेथ वारंट लिया, जिसमें फांसी की तारीख और समय दोनों लिखा था। फांसी की पूरी तैयारी के बाद गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी सूचना पाकिस्तान को देने की जिम्मेदारी सौंपी गई।

    पूरे आपरेशन में गोपनीयता के साथ ही कसाब की दया याचिका को तेजी से निपटाने में भी सरकार सफल रही। 18 सितंबर की कसाब की दया याचिका पर राष्ट्रपति ने डेढ़ माह के भीतर फैसला कर लिया। दरअसल कसाब की दया याचिका राज्य सरकार और गृह मंत्रालय की सलाह के साथ ही राष्ट्रपति भवन पहुंची। और सभी स्तरों पर मात्र 15 से 20 दिन का वक्त लगा। सामान्य तौर पर दया याचिकाएं सीधे राष्ट्रपति के पास पहुंचती हैं और बाद में उन्हें गृह मंत्रालय एवं राज्य सरकार के पास राय के लिए भेजा जाता है।

    सिर्फ 13 दिन में सुना दिया राष्ट्रपति ने फैसला

    जागरण न्यूज नेटवर्क, नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अजमल कसाब की दया याचिका पर फैसला लेने में महज 13 दिन ही लिए। इससे पहले तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने सात दिन में ही एक दोषी की दया याचिका पर फैसला सुना दिया था।

    भारत में यह दूसरा ऐसा मामला है जिसमें दया याचिका पर इतने तेजी से निर्णय लिया गया है। राष्ट्रपति मुखर्जी के पास कसाब की दया याचिका 23 अक्टूबर को गृह मंत्रालय की ओर से भेजी गई थी, जिसे उन्होंने पांच नवंबर को खारिज कर दिया। इस तरह राष्ट्रपति ने उसकी दया याचिका पर फैसला लेने में 13 दिन लिए। दया याचिका पर सबसे तेजी से फैसला लेने का श्रेय पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा को जाता है। उन्होंने राजस्थान के रावजी उर्फ रामचंद्र की दया याचिका पर निर्णय करने में सात दिन लिए थे। वर्ष 1993 में अपनी पत्नी और बेटों की हत्या में फांसी की सजा पाने वाले रावजी की दया याचिका राष्ट्रपति सचिवालय को 12 मार्च 1996 को प्राप्त हुई थी और तत्कालीन राष्ट्रपति ने 19 मार्च को इस पर अपना फैसला सुना दिया। बाद में चार मई 1996 में उसे फांसी पर लटका दिया गया।

    वैसे देखा जाए तो कसाब के मामले में भी हर स्तर पर तेजी दिखाई दी। 26 नवंबर 2008 को हमले वाली रात पकड़े जाने के बाद निचली अदालत ने छह मई 2010 को कसाब को मौत की सजा सुनाई थी। कसाब को च्च न्यायालय में अपील का मौका मिला, लेकिन 21 फरवरी 2011 को हाई कोर्ट ने उसकी याचिका खारिज कर दी। 29 अगस्त 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने भी यही पाया कि कसाब के लिए फांसी से कम कोई सजा नहीं हो सकती। इसके बाद गृह मंत्रालय ने 23 अक्टूबर को राष्ट्रपति के पास उसकी दया याचिका भेजी थी, जिसे राष्ट्रपति ने 5 नवंबर को खारिज कर दिया, जिस पर गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने आठ नवंबर को महाराष्ट्र सरकार को कार्रवाई करने को कहा।

    कलेजे में पड़ी ठंडक

    नई दिल्ली। मुंबई हमले के दोषी आतंकी आमिर अजमल कसाब को बुधवार को फांसी देने की खबर जैसे ही सार्वजनिक हुई, देश में हर्ष की लहर दौड़ गई। सजा के अमल के इंतजार में बैठे उन तमाम लोगों की यादें फिर ताजा हुईं जिन्होंने चार साल पहले के उस हादसे में अपने दिल के करीबी को खोया था। कुछ ने चैन की सांस ली तो कुछ के कलेजे में ठंडक पड़ी लेकिन आंखें सभी की नम थीं।

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    शहीद कमांडो की मां ने कहा, मन हल्का हुआ

    कसाब को फांसी देने की खबर से नरीमन हाउस में शहीद हुए एनएसजी कमांडो देहरादून के रहने वाले हवलदार गजेंद्र सिंह के परिजनों ने चैन की सांस ली है। मां शांति देवी कहती हैं 'अच्छा हुआ जो फांसी लगी लेकिन इससे मेरा बेटा तो लौट कर नहीं आएगा।' यह कहते हुए उनकी आंखें भर आईं। कुछ देर बाद शहीद की पत्‍‌नी विनीता भी आ गईं और पति की फोटो अपलक निहारती रहीं। बोलीं, 'यह देर से लिया गया सही निर्णय है। यदि शुरू में ही फांसी दे दी गई होती तो अच्छा था।'

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    अब भी हरे हैं राजेंद्र के परिजनों के जख्म

    मुंबई हमले में मारे गए बिजनौर निवासी राजेंद्र के परिजनों के जख्म चार साल बाद भी हरे हैं। परिजनों का कहना है कि भारत सरकार को अब मुंबई हमले के साजिशकर्ताओं पर भी कार्रवाई करनी चाहिए। नजीबाबाद तहसील के ग्राम खिदरीपुरा निवासी राजेंद्र के बड़े भाई महेंद्र कहते हैं, गोलियों से छलनी भाई का शव आज भी हम सबकी आंखों में रहता है।

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    फांसी से मिली तसल्ली

    मुंबई हमले में अपने भाई विनोद कुमार को खो चुकी बिहार के जहानाबाद शहर की पंचमहला निवासी ललिता देवी ने कहा, 'कसाब की फांसी से उन्हें तसल्ली मिली है।'

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    पहले ही मिलनी चाहिए थी फ ांसी

    इन दिनों बेटी नजमा के साथ मायके नरहट प्रखंड के शेखपुरा में रह रही साबरा खातुन ने कहा, 'मेरे दोनों बेटों मुहम्मद सरफराज तथा मुहम्मद मुर्तजा के हत्यारे को और पहले ही फांसी की सजा मिलनी चाहिए थी।'

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    दिल को सुकून मिला

    नवादा के ढाब गांव निवासी अली अंसारी उर्फ सहबली मियां ने कहा कि कसाब को फांसी से उन्हें सुकून मिला है। अंसारी के छह परिजन उक्त घटना में मारे गए थे। कहा कि विलंब से ही सही, लेकिन दुश्मन का अंत हुआ।

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    भतीजे की आत्मा को मिलेगी शांति

    नवादा जिले के हिसुआ प्रखंड अंतर्गत तिलैया बिगहा निवासी रामचंद्र गुप्ता कसाब को फांसी मिलने की खबर से खुश हैं। कहते हैं, 'अब मेरे भतीजे की आत्मा को शांति मिलेगी।' मुंबई आतंकी हमले में छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर उनके भतीजे विनोद कुमार गुप्ता की मौत हो गई थी।

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    बहुत अच्छा हुआ

    शेखपुरा जिले के ककड़ार तथा गोहदा गांव के लोगों ने कसाब की फांसी पर संतोष व्यक्त किया है। 26/11 के आतंकी हमले में मुंबई के छत्रपति शिवाजी रेल टर्मिनस पर ककड़ार के मुख्तार आलम तथा गोहदा गांव के नौसाद की जान चली गई थी।

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    मिठाइयां बांटीं

    कटिहार के मनिहारी प्रखंड के महुवर गांव निवासी मुहम्मद अली ने कहा कि देर से ही सही आतंकी कसाब को फासी मिली, काफी खुशी है। बूढ़े दिल को तसल्ली मिली। आतंकी हमले में उनके इकलौते पुत्र अमानत की मौत हो गई थी। अमानत के परिजनों ने एक दूसरे को मिठाई खिलाकर खुशी का इजहार किया।

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    धमाकों से जांबाज के सुनने की क्षमता खत्म

    झज्जर। कसाब को फांसी पर पहले ही लटका देना चाहिए था। देर से ही सही पर फैसला दुरुस्त हुआ। यह कहना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) के पूर्व कमांडो और मुंबई के ताज होटल में आतंकियों से दो-दो हाथ करने वाले सुरेंद्र सिंह का। मुंबई ऑपरेशन के दौरान उन्होंने दो आतंकियों को मार गिराया। एक ग्रेनेड की चपेट में आकर वह जख्मी हो गए। धमाके से उनके सुनने की क्षमता खत्म हो गई है।

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    अफजल को भी मिले फांसी

    आतंकियों की गोली का शिकार हुए फरीदाबाद (हरियाणा) के युवा गौतम गोसाई के पिता देव सिंह ने कसाब को फांसी दिए जाने पर संतोष जताया है। उन्होंने कहा कि यदि कसाब के साथ संसद भवन पर हमले के आरोपी अफजल गुरु को भी फांसी दे दी जाती तो उन्हें बहुत सुकून मिलता। हमले के दौरान गौतम होटल ताज में शेफ की ट्रेनिंग कर रहा था।

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    बेटे की हत्या से पूरे देश की हुई थी क्षति

    रांची कॉलेज में रसायनशास्त्र विभाग के प्रो. मानवेंद्र बनर्जी कहते हैं, 'मलयेश की मौत से सिर्फ मेरा ही नहीं, बल्कि पूरे देश का नुकसान था। आज एक भारतीय होने के नाते मुझे सिर्फ इतना ही कहना है कि आज जो अनुभूति एक भारतीय को हो रही है उससे अलग मेरी अनुभूति नहीं है।' मलयेश मानवेंद्र बनर्जी आइआइटी खड़गपुर से इंजीनियरिंग करने के बाद होटल ताज में एक कार्यक्रम में शरीक होने गए थे, तभी फायरिंग में उनकी मौत हो गई।

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    मौत के दर्द को करीब से देखा है

    कसाब को फांसी दिए जाने के बाद दिल को सुकून मिला है। जो जैसा करता है, वह वैसी ही सजा पाता है। चूंकि मौत के दर्द को हमने नजदीक से देखा है इसलिए मैं अजमल की मौत पर खुशी नहीं मना पाऊंगी। इतना जरूर है कि पति शहाबुद्दीन की मौत की याद एक बार फिर ताजा हो गई। यह कहना है झारखंड के चतरा जिले के नवरतनपुर गांव की सदीफ खातून का। शहाबुद्दीन मुंबई हमले का शिकार हो गया था।

    भारत की संप्रभुता पर हमला था मुंबई आतंकी हमला

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। तेरह हफ्तों की सुनवाई के बाद देश की सबसे बड़ी अदालत से 29 अगस्त, 2012 को जब अजमल आमिर कसाब के लिए मौत की सजा मुकर्रर हुई तो इस फैसले ने कई अदालती नजीरें भी पेश कीं। न्यायमूर्ति आफताब आलम और सीके प्रसाद ने 20 मिनट में सुनाए फैसले में कहा था, कसाब के लिए मृत्युदंड के सिवा और कोई सजा हो ही नहीं सकती'। 'देश पर हमले' के खिलाफ सुनाए गए फैसले में मुंबई आतंकी हमले (26/11) के शहीद तुकाराम ओंबले, हेमंत करकरे, अशोक कामटे, विजय सालस्कर, संदीप उन्नीकृष्णन जैसे जांबाजों के लिए सलामी थी तो वहीं स्पेशल जज एमएल तहलियानी की कोर्ट में चले मुकदमे को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की सिफारिश भी थी।

    चार साल में गिरफ्तारी से फांसी तक पहुंची पाकिस्तानी आतंकी कसाब की अदालती कहानी में उसकी ओर से पेश दलीलों और अपीलों को भी उतनी ही तरजीह दी गई जितनी किसी आम भारतीय को मिलती। सुप्रीम कोर्ट में चली सुनवाई में महाराष्ट्र सरकार की ओर से पूर्व सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम थे तो कसाब को अपना पक्ष रखने के लिए देश का जाना-माना वकील मुहैया कराया गया। कसाब की पैरोकारी के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन को एमाइकस क्यूरी [न्याय मित्र] नियुक्ति किया गया ताकि उसके साथ कोई अन्याय न हो और उसे भी बचाव का पूरा मौका मिले। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में वकीलों के प्रोफेशनल एप्रोच को दर्ज करते हुए दोनों पक्षों के वकीलों की सराहना भी की थी।

    यह मुकदमा कितना बिरला और जटिल था इसका पता इसी से चलता है कि सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे का ट्रायल करने वाले जज तहलियानी की प्रशंसा करते हुए उन्हें कानून का सच्चा ध्वज वाहक कहा। ट्रायल के तरीके और साक्ष्य प्रबंधन को बहुत अच्छा बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे का रिकार्ड क्रिमिनल ट्रायल के मॉडल के तौर पर नेशनल ज्युडिशियल अथॉरिटी और राज्यों की ज्युडिशियल अथॉरिटी में शामिल करने की सिफारिश भी की।

    निर्दयता से निर्दोषों की हत्या करने वाले कसाब को सजा-ए-मौत देते वक्त जस्टिस आफताब आलम और सीके प्रसाद भी एकदम शांत और स्थिर चित्ता थे क्योंकि वे देश के सबसे बड़े आतंकी हमलावर की करतूतों को कानून के तराजू पर तौल चुके थे। फैसला पढ़ते हुए जब आफताब आलम ने कहा, मुंबई हमला भारत की संप्रभुता पर हमला है। क्रूरता, निर्ममता और बर्बरता की जो श्रेणी इस मामले में देखने को मिलती है वह बहुत कम मामलों में होती है। तो जस्टिस सीके प्रसाद ने उनसे सहमति जताई और कहा, यह मामला बिरला था। हमले की साजिश पाकिस्तान में रची गई थी। हमलावर पाकिस्तान में प्रशिक्षित किए गए थे और घटना को अंजाम मुंबई महानगर के विभिन्न स्थानों में दिया गया।

    धूर्त और शातिर था कसाब: निकम

    मुंबई [प्राची बारी]। पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब को फांसी के फंदे तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाने वाले सरकारी वकील उज्ज्वल निकम ने कहा है कि वह धूर्त और बेहद शातिर था। मैंने अपने 30 साल के कॅरियर में ऐसा अपराधी नहीं देखा।

    निकम ने कहा, गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान के जियो टीवी ने सबसे पहले यह खुलासा किया था कि कसाब पाकिस्तानी नागरिक था, लेकिन उसने अदालत में जियो टीवी पर ही भारतीय खुफिया एजेंसी का एजेंट होने का आरोप लगा दिया। यह उसकी धूर्तता का नमूना है।

    दरअसल, 26/11 के हमलावर अपनी पाकिस्तानी पहचान छुपाना चाहते थे। ताकि वे यह दिखा सकें कि मुंबई हमले को सरकार से असंतुष्ट अल्पसंख्यकों ने अंजाम दिया था। इसका मकसद देश के सांप्रदायिक सौहा‌र्द्र पर हमला करना था।

    कसाब की फांसी को अपने जीवन का महत्वपूर्ण पड़ाव बताते हुए निकम ने कहा, '26/11 के नरसंहार में 166 लोगों की मौत और 34 लोगों को घायल करने के गुनाह में शामिल कसाब को अंतत: फांसी पर लटकाए जाने से मुझे बहुत खुशी हुई।'

    एक सवाल के जवाब में निकम ने कहा कि कसाब को फांसी देकर हमने आतंकी संगठनों को कड़ा संदेश देने के साथ ही दुनिया को यह बता दिया है कि भारत ऐसे हमले चुपचाप नहीं सहता रहेगा। उसे सही सजा दी गई है। उसे फांसी पर लटकाकर हमने मुंबई हमले में मारे गए हर पुलिसकर्मी और निर्दोषों कच्च्च्च्ची श्रद्धांजलि दी है।'

    यरवदा जेल में ही फांसी दिए जाने के बारे में निकम का कहना था कि महाराष्ट्र में ऐसे दो कारागार हैं जहां फांसी दी जाती है। पहला यरवदा सेंट्रल जेल और दूसरा नागपुर सेंट्रल जेल। पुलिस और अदालत ने मुंबई से नजदीक होने के कारण कसाब को फांसी देने के लिए यरवदा जेल का चुनाव किया।

    कसाब को फांसी से मिली दीपावली जैसी खुशी

    मुंबई। मुंबई आतंकी हमले के पीड़ितों के परिवारों और उस भयावह घटना में जिंदा बचे लोगों ने अजमल कसाब को फांसी दिए जाने का स्वागत किया है। उनके मुताबिक इससे आतंकियों को यह सबक मिलेगा कि भारत आतंकवाद के मामले में कठोरता से कार्रवाई करता है। एक ने तो इसे दीपावली जैसी खुशी करार दिया।

    ताज होटल में छिपे आतंकियों पर कार्रवाई के दौरान शहीद हुए एनएसजी कमांडो संदीप उन्नीकृष्णन के पिता के उन्नीकृष्णन ने कहा, जिस तरीके से फांसी को अंजाम दिया गया, वह आदर्श तरीका है। दया याचिका खारिज होने पर विरोध शुरू होने से पहले ही सबकुछ खत्म। उन्होंने यह भी जोड़ा कि हमले के असली साजिशकर्ता अब भी पाक में जिंदा घूम रहे हैं।

    आतंकियों के अचानक हमले में जान गंवाने वाले महाराष्ट्र एटीएस के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालस्कर की पत्नी स्मिता ने कहा, देरी तो हुई है लेकिन अंतत: कसाब को सूली पर लटका दिया गया। इस फांसी के साथ मेरे पति को श्रद्धांजलि दी गई है। हमले में शहीद पुलिस अधिकारी अशोक काम्टे की पत्नी विनीता के भी यही उद्गार थे।

    हमले में मारे गए रेल टिकट कलेक्टर एसके शर्मा की पत्नी रागिनी ने न्याय मिलने पर खुशी जताई। कई लोगों की जान बचाने वाले सीएसटी रेलवे स्टेशन के एनाउंसर विष्णु जेंडे को उम्मीद नहीं थी कि उन्हें यह खबर इस तरीके से मिलेगी। उन्होंने कहा, कसाब को फांसी देकर हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी गई है।

    आतंकी हमले में जख्मी हुई 13 वर्षीय देविका रानी ने कहा, मैं खुश हूं, लेकिन मुझे और ज्यादा खुशी होती अगर कसाब को सरेआम फांसी दी जाती। यह काम 26/11 हमले की बरसी पर किया जाता तो और बेहतर होता। खबाड़ हाउस से सटी बेकरी के मालिक कुरैश जोराबी ने फांसी को गोपनीय रखे जाने पर निराशा जताई। सारिका उपाध्याय ने तो इसे दीपावली जैसा जश्न बताया। हमले के वक्त सारिका अपनी दोस्त अनामिका के साथ लियोपोल्ड कैफे में डिनर कर रही थी, तभी आतंकियों ने गोलियां बरसानी शुरू कर दी थीं।

    मुंबई हमले में आपरेशन ब्लैक कैट की अगुआई करने वाले पूर्व एनएसजी प्रमुख जेके दत्ता ने कहा, हमले के जिम्मेदार असली गुनहगारों को मुंबई लाकर सजा दी जानी चाहिए।

    मेरे पिता की शहादत रंग लाई

    अजमल कसाब को फांसी दिए जाने पर तुकाराम ओंबले का परिवार बेहद खुश है। असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर तुकाराम ने अपनी जान देकर कसाब को जिंदा पकड़वाने में मदद की थी। पिता को याद कर भावुक हो उठी तुकाराम की बेटी वैशाली ने कहा, 'मेरे पिता की शहादत रंग लाई।' वैशाली ने कुछ दिनों पहले कहा था कि संसद पर हमले के दोषी मुहम्मद अफजल की तरह कसाब की फांसी में देरी नहीं की जानी चाहिए।

    खुशी से लबरेज तुकाराम के भाई एकनाथ ने अपनी प्रतिक्रिया में कसाब को सरेआम फांसी की मांग की लेकिन फिर बोले, मुझे मालूम है कि हमारा कानून इसकी इजाजत नहीं देता। गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने अपना वादा निभाया कि वह ऐसा निर्णय लेंगे जिससे सभी भारतीयों को संतुष्टि होगी। 26 नवंबर, 2008 की रात तीन पुलिस अफसरों की हत्या और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर खूनखराबे के बाद एक कार से भाग रहे कसाब और उसके साथी इस्माइल को तुकाराम और अन्य पुलिसकर्मियों ने रोका था। निहत्थे तुकाराम ने कसाब को जकड़ लिया था, लेकिन पाकिस्तानी आतंकी ने एके 47 से कई गोलियां उन पर दाग दीं। तुकाराम की गिरफ्त से छूटने के पहले अन्य पुलिसकर्मियों ने कसाब पर काबू पा लिया था।

    कसाब के वकीलों ने फांसी को गोपनीय रखने पर उठाए सवाल

    मुंबई। पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब की अचानक फांसी पर आश्चर्य जताते हुए उसके वकीलों ने इसे गोपनीय रखने पर सवाल उठाए हैं।

    सत्र न्यायालय और बांबे हाई कोर्ट में अमीन सोलकर व अब्बास काजमी के साथ फरहाना शाह ने कसाब की पैरवी की थी। शाह ने कहा, 'मैं आश्चर्यचकित हूं। फांसी को इतना गोपनीय क्यों रखा गया?' सोलकर का कहना था कि यह माना जा सकता है कि कसाब की सुरक्षा खर्च का बोझ सरकार पर लगातार बढ़ रहा था।

    लेकिन, इसे इतना गोपनीय रखने की बात समझ के परे है। उन्होंने फिलहाल यह जरूर कहा कि मामले को जल्दी निपटाकर सरकच्च्च्च्नच्च्च्च्छा किया। इससे निश्चित ही समाज में सही संदेश जाएगा। सत्र न्यायालय में कसाब के वकील रहे काजमी का मानना है कि यह असाधारण मामला था। यही वजह है कि शायद सरकार ने इस तरह की तत्परता दिखाई।

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