सबूतों का आभाव...बमों का ही नहीं चला पता, आखिर क्यों छूट गए मुंबई ट्रेन ब्लास्ट मामले के सभी 12 आरोपी?
मुंबई ट्रेन विस्फोट मामले में उच्च न्यायालय ने सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया है जिससे एटीएस को झटका लगा है। अदालत ने सबूतों के अभाव और अभियोजन पक्ष की विफलता को देखते हुए यह फैसला सुनाया। अदालत ने अभियुक्तों के इकबालिया बयानों को भी अस्वीकार्य करार दिया क्योंकि उन्हें यातना के माध्यम से प्राप्त किया गया था।

ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। मुंबई ट्रेन विस्फोट मामले में सोमवार को आया उच्च न्यायालय का फैसला इस मामले की जांचकर्ता एजेंसी एटीएस के लिए एक बड़ा झटका है। उच्च न्यायालय ने इस मामले के सभी 12 आरोपितों को बरी करते हुए अभियोजन पक्ष के सभी दावों की धज्जियां उड़ा दी हैं।
यह फैसला सुनाते हुए उच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ के एक न्यायमूर्ति अनिल किलोर ने साफ कहा कि किसी अपराध के वास्तविक अपराधी को दंडित करना आपराधिक गतिविधियों पर अंकुश लगाने, कानून के शासन को बनाए रखने और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक ठोस और आवश्यक कदम है।
लेकिन, यह दिखावा करके कि अभियुक्तों को न्याय के कटघरे में लाया गया है, मामले के सुलझने का झूठा दिखावा करना, समाधान का एक भ्रामक आभास देता है। यह भ्रामक समापन जनता के विश्वास को कमजोर करता है और समाज को झूठा आश्वासन देता है, जबकि वास्तव में, असली खतरा अभी भी बना हुआ है।
मामले के सभी 12 आरोपियों को किया गया बरी
न्यायमूर्तिद्वय ने इस मामले के सभी 12 आरोपितों को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष मामले को साबित करने में पूरी तरह विफल रहा और यह विश्वास करना कठिन है कि आरोपितों ने अपराध किया है।
उच्च न्यायालय ने सभी अभियुक्तों के इकबालिया बयानों को अस्वीकार्य घोषित करते हुए कहा कि अभियुक्तों ने सफलतापूर्वक यह स्थापित कर दिया है कि इन इकबालिया बयानों को दिलवाने के लिए उन्हें यातना दी गई। अदालत ने कहा कि यह सर्वविदित है कि अधिकांश मामलों में पुलिस अवैध और अनुचित तरीकों से, जिसमें यातना भी शामिल है, जबरन अपराध स्वीकार करवा लेती है।
सबूतों के अभाव में बरी हुए सभी आरोपी
बता दें कि ट्रेनों के प्रथम श्रेणी डिब्बों में हुए इन विस्फोटों के बाद एटीएस ने इन विस्फोटों के बाद ये विस्फोट प्रेशर कुकर बम से करवाए जाने की बात कही थी। लेकिन न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति श्याम चांडक की विशेष पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष अपराध में प्रयुक्त बमों के प्रकार को रिकार्ड में लाने में भी विफल रहा है तथा जिन साक्ष्यों पर उसने भरोसा किया है, वे आरोपियों को दोषी ठहराने के लिए निर्णायक नहीं हैं।
इन बातों को एजेंसियां नहीं कर सकीं साबित
पीठ ने कहा कि इकबालिया बयान कई पहलुओं पर अस्पष्ट हैं। जैसे कि साजिश की योजना, बम किस कंटेनर में भरे गए थे, उन्हें कैसे विस्फोटित किया गया, बमों को ट्रिगर करने के लिए किस उपकरण का इस्तेमाल किया गया आदि। एटीएस द्वारा अभियुक्तों में से कुछ के पाकिस्तान जाकर ट्रेनिंग लेने का दावा भी आरोपपत्र में किया गया था। अदालत ने उस पर भी टिप्पणी करते हुए कहा है कि पाकिस्तान जाकर ट्रेनिंग लेने की बात भी जांच एजेंसियां साबित नहीं कर सकी हैं।
मामले की जांच में जुटी थी एटीएस
बता दें कि यह आतंकी घटना होने के बाद जब एक ओर मुंबई पुलिस का आतंकवाद निरोधक दस्ता (एटीएस) इस मामले की जांच में जुटा था, उसके कुछ वर्ष बाद ही मुंबई पुलिस के ही संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध शाखा) राकेश मारिया के नेतृत्व में इंडियन मुजाहिदीन का पुणे मॉडल ध्वस्त किया गया था।
मारिया की टीम ने दावा किया था कि सात जुलाई, 2006 का ट्रेन विस्फोट कांड पुणे के आईएम मॉडल ने करवाया था। लेकिन राकेश मारिया की टीम की इस जांच रिपोर्ट को इस मामले की निचली अदालत में चल रही सुनवाई का कभी हिस्सा बनाया ही नहीं गया। लेकिन उस जांच रिपोर्ट में 2015 के बाद उच्च न्यायालय में शुरू हुई सुनवाई ने बचाव पक्ष के वकीलों ने अभियुक्तों के पक्ष में इस्तेमाल किया। वे दो अलग-अलग जांच एजेंसियों की ये विरोधाभासी रिपोर्टें अपने पक्ष में इस्तेमाल करने में बखूबी सफल रहे।
उच्च न्यायालय में बचाव पक्ष की ओर से कुछ अभियुक्तों का पक्ष रख रहे उड़ीसा उच्चन्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एवं अब वकील डा.एस.मुरलीधर ने इस मामले में की गई जांच को पक्षपातपूर्ण करार देते हुए कहा कि आतंकवाद से जुड़े मामलों में अक्सर पुलिस का ऐसा ही रवैया देखने को मिलता है। जिसके कारण अनेक निर्दोष लोगों जेल में जिंदगी गुजारनी पड़ती है। जबकि सरकारी वकील राजा ठाकरे ने इसे रेयरेस्ट आफ द रेयर केस बताते हुए निचली अदालत से मृत्युदंड की सजा पाए अभियुक्तों की सजा की पुष्टि की मांग की थी।
मकोका अदालत में किसने सुनाया था फैसला?
2015 में विशेष मकोका अदालत में इस मामले का फैसला सुनानेवाले जज थे - यतिन डी.शिंदे। वह आजकल कहां है, ये पता नहीं चल पा रहा है। उस समय सरकारी वकील थे -राजा ठाकरे। राजा ठाकरे ने उच्चन्यायालय में भी इस मामले का सरकार की ओर से प्रतिनिधित्व किया है।
उच्च न्यायालय में बचाव पक्ष की ओर से कुछ अभियुक्तों के वकील डा.एस. मुरलीधर थे। वह उड़ीसा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं। अब वकालत करते हैं।
मुंबई पुलिस (एटीएस) अभी इस फैसले पर विचार कर रहे है। राज्य सरकार के भी वरिष्ठ मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले का बयान है कि सरकार फैसले के गुण-दोष का आकलन करके फैसला करेगी कि उच्च न्यायालय में जाना है, या नहीं। वैसे इतने हाईप्रोफाइल केस में सरकार का सर्वोच्च न्यायालय में जाना लगभग सुनिश्चित है। लेकिन फैसला जल्दी आएगा, इसमें संदेह ही है।
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