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    कानूनों से जुड़े 183 प्रविधान होंगे खत्म, जन विश्वास संशोधन विधेयक, 2023 पर मोदी कैबिनेट ने लगाई मुहर

    By AgencyEdited By: Shashank Mishra
    Updated: Thu, 13 Jul 2023 05:04 AM (IST)

    केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को जन विश्वास विधेयक 2023 को मंजूरी दे दी। विधेयक बुधवार को मंत्रिमंडल की बैठक में चर्चा के लिए आया। वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने पिछले साल 22 दिसंबर को लोकसभा में जन विश्वास (प्रविधान संशोधन) विधेयक पेश किया था। इसके बाद विधेयक को विचार के लिए संसद की संयुक्त समिति के पास भेज दिया गया था।

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    जेल की सजा से जुड़े कई प्रविधान भी इनमें शामिल, घटेगा मुकदमों का बोझ।

    नई दिल्ली, एजेंसियां। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को जन विश्वास (प्रविधान संशोधन) विधेयक, 2023 को मंजूरी दे दी। कारोबार को सुगम बनाने और नागरिकों के दैनिक कामकाज को आसान करने के उद्देश्य से 42 अधिनियमों के 183 प्रविधानों को या तो खत्म कर दिया जाएगा या उनमें संशोधन कर छोटी-मोटी गड़बड़ियों को अपराध की श्रेणी से हटा दिया जाएगा। जिन अधिनियमों में संशोधन किया जा रहा है, वे 19 मंत्रालयों से जुड़े हुए हैं। इनमें जेल की सजा से जुड़े कई प्रविधान भी शामिल हैं। इन संशोधनों को लागू किए जाने से मुकदमों का बोझ घटेगा।

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    19 मंत्रालयों के साथ विस्तृत चर्चा

    सूत्रों ने बताया कि यह विधेयक बुधवार को मंत्रिमंडल की बैठक में चर्चा के लिए आया। वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने पिछले साल 22 दिसंबर को लोकसभा में जन विश्वास (प्रविधान संशोधन) विधेयक पेश किया था। इसके बाद विधेयक को विचार के लिए संसद की संयुक्त समिति के पास भेज दिया गया था। समिति ने विधायी और विधि मामलों के विभागों के साथ-साथ सभी 19 मंत्रालयों के साथ विस्तृत चर्चा की है।

    रिपोर्ट को इस साल मार्च में अंतिम रूप दिया गया। उसी महीने इसे राज्यसभा और लोकसभा में पेश किया गया। प्रस्तावित संशोधन के तहत कई कानूनी प्रविधानों में जेल के बदले सिर्फ आर्थिक दंड देने की सिफारिश की गई है। उदाहरण के लिए मर्चेंट शि¨पग अधिनियम, 1958 के तहत किसी दुर्घटना में जहाज की भागीदारी की सूचना अधिसूचित अधिकारी को देने में विफल रहने पर एक साल की सजा, 10 हजार तक जुर्माना या दोनों का प्रविधान है। संशोधित विधेयक में इस सजा को पांच लाख रुपये जुर्माना कर दिया गया है।

    अदालतों में लंबित मामलों को निपटाने में  मिलेगी मदद

    संसदीय समिति ने केंद्र को सुझाव दिया था कि वह छोटे-मोटे मामलों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को प्रोत्साहित करे। समिति ने कहा था कि सरकार को पिछली तिथि से प्रविधानों में संशोधन करना चाहिए। इससे अदालतों में लंबित मामलों को निपटाने में मदद मिलेगी। ये 42 कानून विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों से संबद्ध हैं। इन मंत्रालयों में वित्त, वित्तीय सेवाएं, कृषि, वाणिज्य, पर्यावरण, सड़क परिवहन और राजमार्ग, डाक, इलेक्ट्रानिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी शामिल हैं। 

    स्वतंत्रता से पहले के भी कई कानूनों में संशोधनजिन अधिनियमों में संशोधन किए जाने का प्रस्ताव है, उनमें कई कानून स्वतंत्रता से पहले के हैं। इनमें भारतीय डाकघर अधिनियम, 1898, औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940, सार्वजनिक ऋण अधिनियम, 1944, फार्मेसी अधिनियम, 1948, सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952, कापीराइट अधिनियम, 1957; पेटेंट अधिनियम, 1970, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, मोटर वाहन अधिनियम, 1988, ट्रेड मा‌र्क्स अधिनियम, 1999, रेलवे अधिनियम, 1989, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000, मनी लांड्रिंग रोकथाम अधिनियम, 2002, खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 आदि शामिल हैं।

    खास बातें

    • विधेयक में छोटे-मोटे अपराधों से संबंधित कई प्रविधानों को अपराध के दायरे से बाहर करने का प्रस्ताव किया गया है।
    • अपराध की गंभीरता के आधार पर आर्थिक दंड को तर्कसंगत बनाने और भरोसे पर आधारित शासन को बढ़ावा देने का भी प्रस्ताव किया गया है।
    • विधेयक में विभिन्न अपराधों के लिए जुर्माने में समीक्षा का प्रविधान है। हर तीन साल में जुर्माने की राशि 10 प्रतिशत बढ़ा दी जाएगी।
    • कुछ अपराधों को पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा। भारतीय डाकघर अधिनियम, 1898 के सभी अपराध खत्म कर दिए जाएंगे।