16 साल की दुष्कर्म पीड़िता को मिली बच्चे को जन्म देने की अनुमति, हाईकोर्ट बोला- प्रजनन की स्वतंत्रता मौलिक अधिकार
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में साफ किया है कि प्रजनन संबंधी विकल्पों और गर्भपात के मामलों में गर्भवती की सहमति सर्वोपरि है। संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत प्रजनन की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है। इसके आधार पर हाई कोर्ट ने नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता गर्भवती को उसकी इच्छा के अनुसार बच्चे को जन्म देने की अनुमति प्रदान की।

जेएनएन, जबलपुर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में साफ किया है कि प्रजनन संबंधी विकल्पों और गर्भपात के मामलों में गर्भवती की सहमति सर्वोपरि है। संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत प्रजनन की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है।
इसके आधार पर हाई कोर्ट ने नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता गर्भवती को उसकी इच्छा के अनुसार बच्चे को जन्म देने की अनुमति प्रदान की। दरअसल, मंडला जिले के नैनपुर सत्र न्यायालय ने नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता के गर्भवती होने के संबंध में हाई कोर्ट को पत्र लिखा था।
हाई कोर्ट ने पत्र की सुनवाई संज्ञान याचिका के रूप में करते हुए पीड़ित की मेडिकल रिपोर्ट पेश करने के आदेश जारी किए थे। मेडिकल बोर्ड की तरफ से पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया था कि पीड़िता की उम्र साढ़े 16 साल है और गर्भावधि 28 से 30 सप्ताह के बीच है। इस अवधि में गर्भपात से पीड़िता की जान को जोखिम हो सकता है।
हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि पीडि़ता और उसके माता-पिता ने गर्भपात से इनकार कर दिया। चूंकि माता-पिता ने अपने कथन में कहा कि वे पीड़िता के बच्चे को अपने पास नहीं रखना चाहते, पीड़िता बच्चे को जन्म देकर उसे अपने साथ रखना चाहती है।
ऐसे में, हाई कोर्ट ने पीड़िता को बाल कल्याण समिति के हवाले करने का आदेश दिया। कहा कि वयस्क होने तक पीड़िता सीडब्ल्यूसी के पास रहेगी और प्रसव व अन्य सभी चिकित्सा व्यय राज्य सरकार द्वारा उठाए जाएंगे।
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