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12वीं पास कर रहे थे अस्पताल के आइसीयू में इलाज, अब देना होगा पांच-पांच लाख रुपये हर्जाना

उपभोक्ता आयोग ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए ग्वालियर के दो अस्पतालों पर पांच-पांच लाख रुपये अर्थदंड लगाया है। यह रकम एक महीने में चुकानी होगी अन्यथा छह प्रतिशत की दर से ब्याज लगेगा। एक अस्पताल में खुद को शिशु रोग विशेषज्ञ बताने वाले के पास नहीं थी डिग्री।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Wed, 10 Aug 2022 02:04 PM (IST)Updated: Wed, 10 Aug 2022 02:04 PM (IST)
12वीं पास कर रहे थे अस्पताल के आइसीयू में इलाज, अब देना होगा पांच-पांच लाख रुपये हर्जाना
बेटी की मौत के बाद पिता ने दायर किया था परिवाद

इंदौर, जेएनएन। इंदौर जिला उपभोक्ता आयोग ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए ग्वालियर के दो अस्पतालों पर पांच-पांच लाख रुपये अर्थदंड लगाया है। यह रकम एक महीने में चुकानी होगी अन्यथा छह प्रतिशत की दर से ब्याज लगेगा। आयोग ने अस्पतालों से कहा है कि वे परिवादी को 40 हजार रुपये परिवाद व्यय के रूप में अलग से अदा करें।

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मामला ग्वालियर के मेहरा बाल चिकित्सालय और मेस्काट अस्पताल एंड रिसर्च सेंटर का है। परिवादी मनोज उपाध्याय ने पौने तीन वर्षीय बेटी गार्गी को 24 जनवरी 2013 को मेहरा बाल चिकित्सालय में भर्ती किया था। उसे तेज बुखार था और सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। अस्पताल में खुद को शिशु रोग विशेषज्ञ बताने वाले डा. अंशुल मेहरा इलाज कर रहे थे। बच्ची की हालत बिगड़ने लगी तो यहां से उसे मेस्काट अस्पताल रेफर कर दिया गया। यहां बच्ची को आइसीयू में भर्ती किया गया। मेस्काट अस्पताल की आइसीयू में शैलेंद्र साहू और अवधेश दिवाकर नामक दो युवक डाक्टर बनकर भर्ती बच्चों का इलाज कर रहे थे, जबकि ये दोनों सिर्फ 12वीं पास थे। 26 जनवरी 2013 को गार्गी की मौत हो गई।

बेटी की मौत से आहत उपाध्याय ने दोनों अस्पतालों के खिलाफ जिला उपभोक्ता आयोग ग्वालियर में परिवाद प्रस्तुत किया। राज्य उपभोक्ता आयोग के आदेश के बाद प्रकरण इंदौर आयोग को भेज दिया गया। इंदौर जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद का निराकरण करते दोनों अस्पतालों पर पांच-पांच लाख रुपये अर्थदंड लगाया है।

आयोग ने फैसले में कहा कि पोस्टमार्टम नहीं होने से यह तो स्पष्ट नहीं है कि बच्ची के इलाज में किस तरह की लापरवाही बरती गई, लेकिन यह साबित हुआ है कि मेस्काट अस्पताल के आइसीयू में 12वीं पास युवक डाक्टर बनाकर बच्ची का इलाज कर रहे थे। मेहरा अस्पताल में डा. अंशुल मेहरा ने विशेषज्ञ नहीं होने के बावजूद खुद को शिशु रोग विशेषज्ञ बताकर बच्ची का इलाज किया था। दोनों अस्पतालों ने सेवा में गंभीर लापरवाही की है।


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