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100 वर्ष पूर्व बोहरा समाज ने महू में बनाया था पहला शॉपिंग मॉल

इंदौर से 30 किलोमीटर की दूरी पर छोटा बाजार इलाके में खोला गया था स्टोर, 34 दुकानें वाले इस कॉम्प्लेक्स में पार्किंग की ऐसी व्यवस्था कि दुकानों के भीतर तक चली जाती थी बग्घी

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 29 Dec 2018 11:40 AM (IST)Updated: Sat, 29 Dec 2018 11:40 AM (IST)
100 वर्ष पूर्व बोहरा समाज ने महू में बनाया था पहला शॉपिंग मॉल

महू, आदित्य सिंह। मध्यभारत का पहला मॉल इंदौर से 30 किमी दूर सैन्य छावनी महू में खुला था...1891 में। एक बोहरा व्यापारी द्वारा छोटा बाजार में राजाबल्ली नाम से खोला गया यह स्टोर इंदौर के बाजारों से कहीं आगे था। उस जमाने में व्यापारी इंग्लैंड से सामान लाते थे और अंग्रेज अफसरों और राजे-रजवाड़ों को बेचते थे। यह इतना मशहूर था कि आसपास के रईस खरीदारी के लिए महू आते थे। लगभग 127 साल पुराने इस संदर्भ को किताब की शक्ल दी गई है। दाऊदी बोहरा समाज के धर्मगुरू सैयदना डॉ. मुफद्दल सैफुद्दीन साहब के 75वें जन्मदिन के मौके पर उन्हें यह किताब उन्हें भेजी गई।

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छावनी के निर्माण के साथ ही दाऊदी बोहरा समाज के लोग व्यापारी और कॉन्ट्रेक्टर के रूप में महू आए थे। छावनी परिषद और इंफेंट्री स्कूल की लाइब्रेरी के दस्तावेजों का हवाला देते हुए इस पुस्तक के लेखक और इतिहास के शोधकर्ता डेंजिल लोबो बताते हैं-‘1919 में एमजी रोड पर अमरजी बिल्डिंग में 34 दुकानों का एक शॉपिंग माल था। जहां अंदर तक बग्घियां जा सकती थीं। यह इमारत आज भी है। इसी इमारत के सामने महू की सबसे ऊंची इमारत अब्बास बिल्डिंग भी बोहरा व्यापारी ने ही बनवाई थी। यहां से पूरा शहर देखा जा सकता था। इससे भी पहले 18वीं सदी में भी यहां बोहरा व्यापारियों की कई प्रतिष्ठित दुकानें थीं। इनमें जी.केदारभॉय एंड सन्स के पास घोड़ों- बग्घियों के सामान का शोरूम था। जहां अंग्रेजों और रजवाड़ों द्वारा खेले जाने वाले पोलो के उपकरण भी मिलते थे।’

रेडक्रास अस्पताल भी बोहरा समुदाय की देन
महू में पहला प्रसूति अस्पताल लाने का बड़ा श्रेय भी बोहरा समुदाय को जाता है। जिसके पीछे एक दुखद और भीषण हादसा है। शहर के व्यापारी मुल्ला कायद जौहर बताते हैं- ‘1930 में शादी समारोह के लिए महू से इंदौर जा रही समाजजन की एक बस किशनगंज क्रॉसिंग में ट्रेन से टकरा गई थी। हादसे में एक छोटी बच्ची को छोड़कर बाकी सभी 40 बोहरा मारे गए थे। सभी परिवारों ने रेलवे से मिले मुआवजे की राशि दान कर दी थी। उससे रेडक्रॉस की मदद से अस्पताल बनवाया। घटना का जिक्र भी किताब में है।

2011 में 52वें सैयदना को भेंट करना चाहते थे
लोबो बताते हैं वे यह किताब 2011 में 52वें सैयदना मो. बुरहानुद्दीन साहब के सौंवे जन्मदिन पर भेंट करना चाहते थे, लेकिन किताब पूरी नहीं हो सकी थी। 53वें सैयदना अपना जन्मदिन पिता के जन्मदिन के दिन ही मना रहे हैं। इसकी वजह पारसी मिसरी कैलेंडर है, जिसमें कि अंग्रेजी कैलेंडर के मुकाबले साल भर में दस-बारह दिन कम होते हैं। ऐसे में 2011 में मार्च में पड़ने वाला वाला 52वें सैयदना साहब का जन्मदिन इस बार दिसंबर में आ गया है।  


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