गांठ बांध लें, ये 10 काम दूर करेंगे आपके अंदर की 10 बुराइयां
इन दस बुराइयों को यदि जीत की सकारात्मक दिशा दें, तो देश के किशोर-युवा न सिर्फ समाज, देश व परिवार, बल्कि खुद को भी संतुष्ट व खुशहाल बना सकेंगे...
[अंशु सिंह]। घर या बाहर, छोटी-छोटी बात पर गुस्सा करना या आक्रामक हो जाना...। क्रोध में बड़ों का आदर करना भूल जाना...,खुद को नुकसान पहुंचाना...,ये समस्याएं किशोरों में आम हो गई हैं। पैरेंट्स परेशान हैं कि आखिर इसे कैसे नियंत्रित किया जाए? कई बार गुस्सा करने वाले किशोरों को भी शांत होने पर एहसास होता है कि उनसे गलती हो गई। दरअसल, इसके लिए सिर्फ बच्चों-किशोरों को कसूरवार नहीं ठहराया जा सकता। यह उनकी उम्र का तकाजा है। मनोचिकित्सक नयामत बावा की मानें, तो किशोरों में आक्रामकता के कई कारण हो सकते हैं, जैसे-कोई बुरा हादसा, हिंसा का शिकार होना, मानसिक रोग, शारीरिक समस्या, कोई लत, पीयर प्रेशर आदि। यही क्रोध के रूप में फूटता है। ऐसे में वक्त रहते अगर विशेषज्ञों से परामर्श लिया जाए, तो अंदर के आक्रोश को किसी सृजनात्मक कार्य में लगाया जा सकता है।
धैर्य से जीतें अधीरता
नौवीं की छात्रा लतिका को दोस्तों के साथ स्कूल ट्रिप पर जाना था। उसने पैरेंट्स से पूछा, लेकिन उन्होंने तत्काल कोई जवाब नहीं दिया। लतिका के सब्र का बांध टूट गया। वह पैरेंट्स से बहस करने लगी और अपनी बात मनवाकर ही मानी। अक्सर किशोर मांग या अपेक्षाएं पूरी न होने या उसमें विलंब होने पर अधीर हो जाते हैं। इस स्थिति में पैरेंट्स की जिम्मेदारी बनती है कि उनके उत्तेजित होने पर भी अपना संयम न खोएं। बच्चे अपने पैरेंट्स का व्यवहार देखकर काफी कुछ सीखते हैं। सिंगर सागरिका कहती हैं, अगर किशोर अपने रूटीन में एक्सरसाइज, योग, मेडिटेशन या किसी स्पोट्र्स एक्टिविटी को शामिल करें, तो अपने अंदर ठहराव पाएंगे।
शेयर करें भावनाएं
मनोचिकित्सक डॉ. आरती आनंद कहती हैं कि किशोरावस्था में बच्चे शारीरिक,मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक बदलावों से गुजरते हैं। इस दौरान अक्सर वे अनिश्चितता के दौर से गुजर रहे होते हैं। मूड में तब्दीलियां आती रहती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, इन बदलावों को जितनी जल्दी स्वीकार कर लिया जाए, उतना अच्छा है। भावुक होना गलत नहीं है, लेकिन अतिभावुकता से मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। कई किशोरों को स्मोकिंग या अन्य नशे की लत तक लग जाती है। अगर आपकी दिनचर्या,पढ़ाई या कोई अन्य गतिविधि प्रभावित हो रही है, तो संभल जाइए। अपने मन की बात अंदर दबाने की जगह उसे अपने करीबी दोस्त या पैरेंट्स से शेयर करें। कई बार दूसरों की सलाह करिश्मा कर जाती है।
डेवलप करें पर्सनैलिटी
किशोर उम्र में चीजों का टशन भी काफी होता है। जैसे हेमंत और अभिषेक के बीच लेटेस्ट गैजेट को लेकर रहता है। अभिषेक के पैरेंट्स बेटे की हर ख्वाहिश पूरी कर देते हैं, दूसरी ओर हेमंत के पिता फिजूल खर्च के खिलाफ हैं। लेकिन वह अपनी मां के जरिये सारे काम करवा लेता है। दोस्तो, दिखावा अच्छी बात नहीं है। हमारे पास जितना है, उसमें खुश रहने की कोशिश करनी चाहिए। दूसरों को देखकर गैजेट, ड्रेस या कुछ और खरीदने का क्या मतलब, अगर उसका सही से इस्तेमाल भी न कर पाएं। इमेज कंसल्टेंट नैन्सी कात्याल कहती हैं कि अच्छा रहेगा कि किशोर अपनी पर्सनैलिटी डेवलप करने पर ध्यान दें। इससे उनका मनोबल बढ़ेगा।
गाइड से दूर होगा भटकाव
आज के किशोरों-युवाओं में भटकाव यानी कंफ्यूजन की समस्या भी है। लेखक एवं स्पीकर अवधेश सिंह के अनुसार, जैसे-जैसे विकल्प बढ़ रहे हैं, युवाओं का कंफ्यूजन बढ़ता जा रहा है। वे आत्मविश्वासी होने से ज्यादा कंफ्यूज्ड हैं। वे खुद क्या चाहते हैं, इस पर ध्यान देने की बजाय दोस्तों और रिश्तेदारों को देखकर करियर संबंधी या अन्य निर्णय लेते हैं। इससे मौके तो अनेक मिल जाते हैं, लेकिन नाकामी की आशंका बढ़ जाती है। एक बार असफल होने पर दोबारा से कोशिश करने का हौसला या आत्मविश्वास भी नहीं रहता। भारतीय क्रिकेट टीम के चाइनामैन गेंदबाज कुलदीप यादव का ही उदाहरण लें। वे जहीर खान जैसा तेज गेंदबाज बनना चाहते थे, लेकिन उनके कोच को लगा कि उनमें स्लो लेफ्ट आर्म गेंदबाज यानी चाइनामैन गेंदबाज बनने की काबिलियत है। दोनों ने इस पर काम करना शुरू किया। आज नतीजा सबके सामने है। कहने का आशय यह है कि कई बार हमें खुद भी अपने हुनर का पता नहीं होता। तब एक गुरु या मेंटर ही जौहरी के रूप में आपकी पहचान करता है।
पैरेंट्स बढ़ाएं आत्मविश्वास
कई बार लगातार असफलता मिलने, बड़ों या दोस्तों की आलोचना करने, रिजेक्ट महसूस करने, इच्छानुसार मान या तारीफ न मिलने से किशोरों-युवाओं का आत्मविश्वास घटता जाता है। इसका असर उनकी पढ़ाई से लेकर सोशल सर्किल पर पड़ता है। मनोचिकित्सक नियामत बावा कहती हैं कि लो सेल्फ एस्टीम के मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते हैं। अवसाद से घिरने के कारण बच्चों की एकेडमिक्स पर असर पड़ने लगता है। इस स्थिति में पैरेंट्स ही बच्चों के सर्वश्रेष्ठ सहयोगी बन सकते हैं।ाच्चों को मोटिवेट करें। मुमकिन है कि उन्हें स्पोट्र्स, म्यूजिक, ड्रामा, आर्ट्स में मन लगता हो। उसे प्रोत्साहित करने की कोशिश करें। उसकी कमजोरियों व अच्छाइयों को समान रूप से स्वीकार करें। उनके दोस्त बनें।
भरोसा हो भरपूर
कहते हैं कि किसी भी रिश्ते या कार्य में विश्वास न हो, तो वह संपूर्ण नहीं होता। पैरेंट्स व बच्चों में विश्वास की कमी रिश्तों में दूरियां लाती है। दोस्तों में अविश्वास अकेला कर सकता है। समाजशास्त्री सुभाष महापात्रा के अनुसार, विश्वसनीय व्यक्ति दृढ़निश्चयी और ईमानदार होता है। वह मुश्किल वक्त में भी भरोसा नहीं टूटने देता। किशोरों- युवाओं को भी अपने पैरेंट्स, टीचर्स पर विश्वास रखना चाहिए। अगर वह डांटते हैं या किसी चीज के लिए रोकते हैं, तो उनकी मंशा पर शक नहीं करना चाहिए।
खुद से करें प्रतिस्पर्धा
प्रतिस्पर्धा यानी कॉम्पिटिशन का नाम सुनते ही अधिकतर लोगों के मन में असुरक्षा की भावना आ जाती है। मन में सवाल उठने लगते हैं कि क्या वह मुझसे बेहतर है? क्या वह मुझसे आगे निकल जाएगा? लेखिका नैन्सी पीयरसी की मानें, तो प्रतिस्पर्धा हमेशा अच्छी ही होती है। वह हमें अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए प्रेरित करती है। आइटी कंपनी आइबीएम की सीईओ गिन्नी रोमेटी का मानना है कि प्रतिस्पर्धा के कारण आप री-इंवेंट करते रहते हैं। नए इनोवेशंस करते हैं। इसलिए प्रतिस्पर्धा को कभी नकारात्मक रूप में नहीं लेना चाहिए। आप खुद से जितनी स्पर्धा करेंगे, उतना अच्छा रहेगा।
तकनीक की न डालें लत
मौजूदा दौर में स्मार्टफोन, फ्री डाटा, इंटरनेट, वीडियो गेम्स एवं सोशल मीडिया की लत किशोरों-युवाओं को अंदर से खोखला कर रही है। वे मानसिक, शारीरिक और अन्य व्याधियों से घिरते जा रहे हैं। घर में लोगों से संवाद कम हो गया है। बाहर वालों से वे मिलना नहीं चाहते। काउंसलर एवं मनोचिकित्सक इस स्थिति को भयावह बताते हैं। उनके अनुसार, तकनीक की लत मिटाने के लिए पैरेंट्स, शिक्षक एवं बच्चों को मिलकर काम करना होगा।
साफ -सफाई की आदत
सफाई एक आदत है, एक संस्कार है। इसका रोजमर्रा के जीवन में पालन करना चाहिए। कबाड़ीवाला डॉट कॉम के अनुराग असाती कहते हैं कि कचरे को डस्टबिन में ही फेंकने, प्लास्टिक वेस्ट से बचने और अन्य छोटे-छोटे उपाय कर साफ-सफाई की दिशा में काफी बदलाव लाए जा सकते हैं।
खुद से है मेरी प्रतिस्पर्धा
मैंने हमेशा खुद पर फोकस किया है। यह नहीं देखा कि मेरे आगे कितने लोग हैं, किसने क्या रिकॉर्ड बनाया या मेरी रैंकिंग इसके बाद कैसी होगी आदि। प्रतिस्पर्धा की भावना उस समय भी नहीं रहती जब कोई चैंपियनशिप चल रही होती है। हर वक्त मेरा ध्यान केवल अपने खेल पर रहता है और मेरी स्पर्धा खुद से रहती है। मेरे मां और पिताजी भी यही सिखाते हैं।
[मनु भाकर/ निशानेबाज]
जीता आत्मविश्वास में कमी को मैं बचपन में बहुत शांत स्वभाव का था। आत्मविश्वास की काफी कमी थी। पढ़ाई में भी औसत था इसलिए किसी से बात नहीं कर पाता था। हां, डांस का पैशन बचपन से था और उसी को लेकर आगे बढ़ा। अपने अनुभवों से मैं सीखता चला गया और आज मैं एक सफल टीवी एक्टर, एंकर हूं। यहां तक कि खतरों के खिलाड़ी के आठवें सीजन का विनर भी रहा।
[शांतनु माहेश्वरी/ एक्टर-डांसर]
सोच-समझकर निर्णय मैंने लोगों की परेशानियां यानी उस समय की सिचुएशन को देखकर किताब लिखी डिजिटलाइजेशन फॉर द प्रॉसपेरसनेशन। पर मुझे लगता है कि इस विषय पर और अधिक स्टडी या रिसर्च करना चाहिए था। इसलिए कभी जल्दबाजी या अधीरता के साथ निर्णय नहीं लेना चाहिए। निर्णय लेने से पहले उस विषय पर अपने परिजनों, दोस्तों के साथ जरूर डिस्कस कर लेना चाहिए। कई बार दूसरों के एक्सपीरिएंस से भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
[अतुल कुमार/ लेखक और सोशल रिफॉर्मर]
[इनपुट: यशा माथुर, सीमा झा व स्मिता]
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