नेपाल की रेत से पटे भारत के खेत
गोरखपुर [ज्ञानेन्द्र त्रिपाठी]। नेपाल की नारायणी नदी का जल भारत के खेतों के लिए मुसीबत बन रहा है। हजारों हेक्टेयर खेत इसकी रेत से अब तक पट चुके हैं। यही हाल रहा तो नेपाल से निकली नहरें गोरखपुर मंडल के उपजाऊ खेतों को रेगिस्तान में तब्दील कर देंगी। यह स्थिति पैदा हुई है वाल्मीकि बैराज में सिल्ट इजेक्टर के पूरी तरह बंद होने से। नहरें नारायणी नदी के पानी के साथ ही रेत ढो रही हैं। नहरों की क्षमता भी 4800 क्यूसेक घट गई है। 77 हजार हेक्टेयर खेतों में रेत पहुंच गई है।
वाल्मीकि बैराज 1976 में बना था। तब नेपाल में नारायणी से सटे तीन हजार फुट नीचे सिल्ट इजेक्टर स्थापित किया गया। इजेक्टर का काम नारायणी से नहरों में पहुंचने वाले 18800 क्यूसेक पानी को छानना था। पानी जब नदी से नहर में पहुंचता था, तो इजेक्टर के दबाव से तलछट का सिल्ट वाला पानी नदी में वापस चला जाता था। इससे नहरों में सिल्ट नहीं पहुंचती थी। पांच वर्ष पहले तक ऐसा चलता रहा। इसके पश्चात सिल्ट इजेक्टर की क्षमता घटती चली गयी। अब वह पूरी तरह बंद है। ऐसे में नारायणी की समूची सिल्ट पानी के साथ नहरों में पहुंच रही है। नहरें सिल्ट से पट गयी हैं। हालत इतनी खराब है कि 18800 क्यूसेक पानी ढोने वाली इन नहरों की क्षमता 14 हजार क्यूसेक पानी ढोने की भी नहीं रह गयी है। ऐसे में 4800 क्यूसेक पानी कम छोड़ा जा रहा है। जो पानी छोड़ा जा रहा है, वह रेत के साथ खेतों में पहुंच रहा है। नहरों से सटे ऐसे खेतों को देखा जा सकता है जो नारायणी की रेत से रेगिस्तान बनने की राह पकड़ चुके हैं।
बेचन शाह, मुख्य अभियंता सिंचाई ने कहा कि विभाग के स्तर से शासन को पत्र लिखा गया है। इजेक्टर के लिए बिहार की सरकार कदम उठाने जा रही है। यहां सिल्ट सफाई एवं अन्य कार्य के लिए परियोजना स्वीकृत हो गई है। इसी वित्तीय वर्ष में धन मिलते ही काम शुरू हो जाएगा।
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