शिक्षक दिवस विशेष: विश्वास न्यूज के मंच पर आए 6 विश्वविद्यालयों के 6 प्रोफेसर
शिक्षक दिवस के अवसर पर विश्वास न्यूज के मंच पर 6 विश्वविद्यालयों के 6 प्रोफेसर ने मीडिया साक्षरता विषय पर अपने विचार साझा किए। इस वेबिनार में प्रोफेसर ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लेकर क्रिटिकल थिंकिंग और कंटेंट को सही ढंग से कैसे खपत किया जाए जैसे विषयों पर अपनी बात साझा की।

एजुकेशन डेस्क, नई दिल्ली: विश्वास न्यूज़ ने शिक्षक दिवस (5 सितम्बर) के अवसर पर एक विशेष वेबिनार का आयोजन किया। इस वेबिनार का विषय था “Media Literacy as a 21st Century Classroom Essential”। देश के छह राज्यों से छह प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के प्राध्यापकों ने इसमें हिस्सा लिया और आज की डिजिटल दुनिया में छात्रों को मीडिया साक्षरता सिखाने की ज़रूरत पर अपने विचार साझा किए।
पैनलिस्ट और उनकी भूमिकाएं
- डॉ. पवित्रा श्रीवास्तव, एचओडी, विज्ञापन और जनसंपर्क एवं सिनेमा अध्ययन विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल, मध्य प्रदेश
- डॉ. आतिश पराशर, प्रोफेसर, जनसंचार विभाग, साउथ बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया, बिहार
- डॉ. मनमीत कौर, एसोसिएट प्रोफेसर, जनसंचार विभाग आईआईएलएम यूनिवर्सिटी, ग्रेटर नोएडा
- डॉ. राशिद अंसारी, एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, जनसंचार विभाग, इंटीग्रल यूनिवर्सिटी, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
- डॉ. अतुल कुमार मिश्रा, असिस्टेंट प्रोफेसर, जनसंचार विभाग, एसजीटी यूनिवर्सिटी, गुरुग्राम, हरियाणा
- असिस्टेंट प्रोफेसर अंकिता कौशल, विभाग जनसंचार, चितकारा यूनिवर्सिटी, राजपुरा, पंजाब
- कार्यक्रम का संचालन देविका मेहता, डिप्टी एडिटर, जागरण न्यू मीडिया ने किया।
वेबिनार के मुख्य बिंदु
- इस वेबिनार में विशेषज्ञों ने साफ कहा कि 21वीं सदी में मीडिया साक्षरता छात्रों के लिए केवल एक अतिरिक्त कौशल नहीं, बल्कि शिक्षा का मूल हिस्सा बनना चाहिए। आज की डिजिटल दुनिया में जहाँ हर मिनट हजारों सूचनाएँ हमारे सामने आती हैं, वहाँ सही और गलत के बीच फर्क करना आसान नहीं रह गया है।
- पैनलिस्टों ने जोर दिया कि फेक न्यूज़ और अफवाहें न केवल समाज को गुमराह करती हैं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों और सामाजिक विश्वास को भी कमजोर करती हैं। ऐसे में छात्रों को आलोचनात्मक सोच विकसित करने की ट्रेनिंग देना ज़रूरी है, ताकि वे हर जानकारी को परख सकें।
- चर्चा में यह भी सामने आया कि शिक्षक अब केवल ज्ञान देने वाले नहीं, बल्कि गाइड और मेंटर की भूमिका निभाते हैं। इसलिए उनकी जिम्मेदारी है कि वे छात्रों को यह सिखाएँ कि किसी खबर या सूचना पर भरोसा करने से पहले उसकी विश्वसनीयता कैसे जांची जाए।
- इसके अलावा, विश्वविद्यालयों और शिक्षा संस्थानों को सलाह दी गई कि वे मीडिया साक्षरता को पाठ्यक्रम और कक्षा की गतिविधियों में शामिल करें। जैसे– डिबेट, वर्कशॉप और फैक्ट–चेकिंग से जुड़ी एक्सरसाइज छात्रों को व्यावहारिक समझ प्रदान कर सकती हैं।
- पूरा वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक करें -https://youtu.be/2R6zW9tL-ME
किसने क्या कहा?
डॉ. पवित्रा श्रीवास्तव
डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि मीडिया साक्षरता की ज़रूरत आज केवल छात्रों के लिए ही नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग के लिए है। उन्होंने बताया कि माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में सभी मीडिया पाठ्यक्रमों में पहले ही सेमेस्टर से फैक्ट-चेकिंग और मीडिया लिटरेसी पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उनका मानना है कि नीति-निर्माताओं को इस विषय पर हर नैतिक पहलू का गंभीरता से ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने नए छात्रों को ‘रील और रियल’ के फर्क को समझने पर विशेष ज़ोर दिया।
डॉ. आतिश पराशर
डॉ. पराशर ने कहा कि सूचना की इस सुनामी में उपयोगकर्ताओं को सेलेक्टिव एक्सपोज़र और सेलेक्टिव रिटेंशन की आदत डालनी होगी। आज का उपयोगकर्ता डेटा से घिरा हुआ है और आने वाली पीढ़ियों की चिंता करना हमारी जिम्मेदारी है। उन्होंने छात्रों को सलाह दी कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का प्रयोग करते समय बेहद सतर्क रहें, क्योंकि गलत उपयोग से यह नुकसानदेह भी हो सकता है। उन्होंने SRIF (Strong Relevant Influential Factor) मीडिया थ्योरी का ज़िक्र करते हुए कहा कि पॉलिसी मेकर्स को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि तकनीक का दुरुपयोग न हो और मूलभूत सिद्धांतों का पालन किया जाए।
डॉ. मनमीत कौर
डॉ. कौर ने कहा कि आज के दौर में छात्रों को क्रिटिकल थिंकिंग सिखाना बेहद ज़रूरी है। उन्होंने सलाह दी कि जब भी छात्र सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स का कंटेंट देखें, तो उसका फैक्ट-चेक ज़रूर करें। बेहतर भविष्य के लिए मीडिया संस्थानों और शैक्षणिक संस्थानों के बीच सहयोग की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि छात्रों को विशेष रूप से भावना (Emotion), विश्वसनीयता (Credibility) और फैक्ट-चेकिंग – इन तीनों पहलुओं पर गहन ध्यान देना चाहिए।
डॉ. राशिद अंसारी
डॉ. अंसारी ने कहा कि आज कंटेंट खपत (Content Consumption) का पैटर्न पूरी तरह बदल गया है। लोग अब किसी एक स्रोत पर निर्भर नहीं हैं और हर समय मोबाइल से लगातार कंटेंट देखते रहते हैं। ऐसे में मीडिया लिटरेसी अब एक विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इसे कक्षा का एक अनिवार्य विषय बनाना चाहिए। छात्रों को यह समझना चाहिए कि किसी भी कंटेंट में अगर AI का उपयोग हुआ है, तो उसका फैक्ट-चेक करना बेहद ज़रूरी है। साथ ही उन्होंने कहा कि सूचनाओं की महामारी से बचने के उपाय सीखने चाहिए।
असिस्टेंट प्रोफेसर अंकिता कौशल
प्रो. अंकिता कौशल ने कहा कि सिर्फ़ किताबों तक सीमित ज्ञान पर्याप्त नहीं है, इसलिए स्कूल स्तर पर ही मीडिया लिटरेसी को शामिल किया जाना चाहिए। छात्रों को सिखाना होगा कि कंटेंट को सही ढंग से कैसे खपत (Consume) करना है। उन्होंने कहा कि क्रिटिकल थिंकिंग की आदत बच्चों में बचपन से ही विकसित करनी चाहिए। साथ ही AI Literacy को भी एक अलग विषय के रूप में शामिल करने की ज़रूरत है। उनका मानना है कि केवल Informed Student ही आगे चलकर Informed Citizen बन सकता है।
डॉ. अतुल कुमार मिश्रा
डॉ. मिश्रा ने कहा कि छात्रों को कक्षा में क्रिटिकल थिंकिंग सिखाना समय की ज़रूरत है, क्योंकि यही मीडिया लिटरेसी की नींव है। उन्होंने बताया कि तकनीक के हमेशा फायदे और नुकसान दोनों होते हैं, लेकिन समाज को Informed बनाना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। उनका कहना था कि मीडिया लिटरेसी अब हर वर्ग के लिए अनिवार्य बन चुकी है और शिक्षा प्रणाली की जिम्मेदारी है कि इसे केवल ग्रेजुएशन स्तर पर नहीं, बल्कि स्कूल की कक्षाओं से ही लागू किया जाए।
कार्यक्रम की प्रतिक्रिया
इस वेबिनार में शामिल सभी प्रोफेसरों ने माना कि इस तरह की चर्चाएँ समय की ज़रूरत हैं। शिक्षकों ने साझा किया कि मीडिया साक्षरता पर संवाद न केवल छात्रों के लिए, बल्कि पूरे शैक्षणिक जगत के लिए उपयोगी साबित होगा। उनका मानना था कि ऐसे कार्यक्रम शिक्षा व्यवस्था को नई दिशा देते हैं और शिक्षकों को भी छात्रों को बेहतर तरीके से मार्गदर्शन करने की प्रेरणा मिलती है।
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