जीते जी पिता ने कर दिया था अंतिम संस्कार, डॉक्टर भी उड़ाते थे मजाक, ऐसी है ट्रांसजेंडर गौरी सावंत की कहानी
Success Story गौरी को गणेश बनकर रहना पसंद नहीं था।वे लड़कों की तरह रहना और कपड़े पहनना पसंद नहीं था। वे तो टीवी या फिर कहीं पर भी महिलाओं को देखकर सोचती थीं कि वे भी उनकी तरह दिखें। उनके इस व्यवहार को देखते हुए और अपनी सेक्सुएलिटी के बारे में पिता से बात न कर पाने की वजह से गौरी ने 15 साल की उम्र में घर छोड़ दिया।

एजुकेशन डेस्क। Success Story: आमतौर पर सक्सेस स्टोरी कॉलम में हम हर दिन में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में सफलता पाने वाले अभ्यर्थियों की कहानियां बताते हैं। कैसे उन्होंने देश की सबसे कठिन मुश्किल सिविल सेवा परीक्षा को पास किया। इस दौरान उनके सामने क्या चुनौतियां आई थीं। कैसा था उनका सफर। लेकिन आज हम एक अलग शख्सयित की बात करने वाले हैं, जिनका नाम है श्री गौरी सावंत। गौरी सावंत एक ट्रांसजेंडर सोशल वर्कर हैं। उन्होंने ट्रांसजेंडर्स को सम्मान और अधिकार दिलाने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी थी। अब हाल ही में उनकी जिंदगी पर सुष्मिता सेन की वेबसीरीज ताली रिलीज हुई है। आइए डालते हैं उनके सफर पर एक नजर।
ट्रांसजेंडर गौरी सावंत का जन्म पुणे में हुआ था। उनके पिता पुलिस में हैं। उनके बचपन का नाम गणेश था, जो कि आगे चलकर उन्होंने खुद गौरी कर लिया था। गौरी को गणेश बनकर रहना पसंद नहीं था। वे लड़कों की तरह रहना और कपड़े पहनना पसंद नहीं था। वे तो टीवी या फिर कहीं पर भी महिलाओं को देखकर सोचती थीं कि वे भी उनकी तरह दिखें। उनके इस व्यवहार को देखते हुए और अपनी सेक्सुएलिटी के बारे में पिता से बात न कर पाने की वजह से गौरी ने 15 साल की उम्र में घर छोड़ दिया।
पिता ने किया अंतिम संस्कार
गौरी ने कहा था कि उनके घर छोड़ देने के बाद पिता ने उनका जीते जी अंतिम संस्कार कर दिया था। उन्होंने इंटरव्यू में बताया कि कभी उनके अपनों उनका साथ नहीं दिया।
'सखी चार चौगी' एनजीओ की शुरुआत
परिवार के साथ छोड़ने के बाद उन्होंने ट्रांसजेंडर के हक के लिए लड़ना शुरू कर दिया। शुरुआत में वे हमसफर ट्रस्ट के साथ जुड़ी। इसके बाद, उन्होंने अपना एनजीओ शुरु किया, जिसका नाम 'सखी चार चौगी' है। इस एनजीओ के तहत, वे घर से भागे हुए ट्रांसजेंडर्स की मदद करती हैं। उन्हें सहारा देती हैं।
डॉक्टर्स ने भी उड़ाया था माजक
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार एक इंटरव्यू में उन्हाेंने कहा था कि, जब वे 'सेक्स वर्कर के साथ काम करर रहीं थीं तो उन्हें पता चला कि डॉक्टर्स तक हमें हाथ नहीं लगाते। अगर हम सरकारी अस्पताल में चले जाएं तो डॉक्टर्स हमें सवाल करते हैं कि मेल में जाएंगे या फीमेल में और ये कहकर वो हंसते थे।
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