Savitribai Phule ने लड़कियों के लिए खोला था पहला स्कूल, पुण्यतिथि पर जानिए उनसे जुड़े अन्य योगदान
Savitribai Phule Death Anniversary सावित्रीबाई की पढ़ाई-लिखाई में रुचि देखकर उनके पति ने उन्हें शिक्षा के लिए मदद की थी। सावित्रीबाई ने प्रारंभिक पढ़ाई पूरी करने के बाद अहमदनगर और पुणे में टीचर की ट्रेनिंग ली और शिक्षक बनीं।इसके बाद उन्होंने ठाना कि वे अन्य लड़कियों को भी शिक्षित करेंगी।

एजुकेशन डेस्क। Savitribai Phule Death Anniversary: आज लड़कियों के पास समान शिक्षा और नौकरी के विकल्प मौजूद हैं। वे न केवल पुरुषों के बराबर हाईली क्वालिफाईड हो रही हैं, बल्कि वे देश- दुनिया के किसी भी कोने में और किसी भी फील्ड में जॉब कर रही हैं। हालांकि, एक वक्त ऐसा भी था, जब हालात काफी बदतर थे। लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई पर पांबदी थी। ऐसे में लड़कियों को एजुकेशन के समान अवसर देने के लिए देश की पहला महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले ने कई कदम उठाए। सावित्रीबाई फुले ने देश में पहला स्कूल खोला था। यह स्कूल सिर्फ लड़कियों के लिए खोला गया था। देश की पहली महिला शिक्षिका और समाज सुधारिका सावित्रीबाई फुले ने गर्ल्स एजुकेशन के अलावा महिलाओं की स्थिति बेहतर करने के लिए कई अन्य कदम उठाए थे। वहीं, आज 10 मार्च, 2024 को उनकी पुण्यतिथि है। इस मौके पर आइए जानते हैं, उनसे जुड़े अन्य योगदान।
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के नायगांव में हुआ था। वह, जब 9 साल की थी उस उम्र में उनकी की शादी ज्योतिराव फुले से हो गई थी। ज्योतिराव खुद उस वक्त 13 साल के थे।
सावित्रीबाई की पढ़ाई-लिखाई में रुचि देखकर उनके पति ने उन्हें शिक्षा के लिए मदद की थी। सावित्रीबाई ने प्रारंभिक पढ़ाई पूरी करने के बाद अहमदनगर और पुणे में टीचर की ट्रेनिंग ली और शिक्षक बनीं। इसके बाद उन्होंने ठाना कि वे अन्य लड़कियों को भी शिक्षित करेंगी।
सावित्रीबाई फुले ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए अपने पति के साथ, 1848 में भिडे वाडा में लड़कियों के लिए भारत का पहला स्कूल शुरू किया था।
सावित्रीबाई फुले सिर्फ एक समाज सुधारक ही नहीं बल्कि एक दार्शनिक और कवि भी थीं। उनकी कविताएं ज्यादातर प्रकृति, शिक्षा और जाति व्यवस्था पर आधारित होती थीं।
वे बाल विवाह और सती प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
सावित्रीबाई ने विधवाओं के लिए एक आश्रम खोला था। विधवाओं के अलावा वह निराश्रित महिलाओं, बाल विधवा बच्चियों और परिवार से त्यागी गई महिलाओं को भी शरण देती थी।
छात्रों को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने और ड्रॉप-आउट दर को कम करने के लिए वह स्कूल जाने के लिए बच्चों को वजीफा देती थीं।
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