सम्मान करना भी है कला, खुद पाने के लिए पहले दूसरों को देना सीखें
आप समाज में मान-सम्मान पाएं कोई आपको नीची निगाहों से न देखे। हर व्यक्ति के जीवन में यही चाह भी होती है कि वह जीवन में खूब मान-सम्मान कमाए।
नई दिल्ली [रेणु जैन]। आपने भी यह लिखा हुआ जरूर पढ़ा होगा कि दूसरों के साथ वैसा आचरण मत करो, जैसा तुम अपने साथ नहीं चाहते। कहने को यह बड़ी साधारण बात है, लेकिन इसमें पूरी जीवनशैली को प्रभावित करने का सार छिपा है। यह लाजिमी भी है कि आप समाज में मान-सम्मान पाएं, कोई आपको नीची निगाहों से न देखे। हर व्यक्ति के जीवन में यही चाह भी होती है कि वह जीवन में खूब मान-सम्मान कमाए। मगर यह भी स्वाभाविक है कि आप अपना आचरण दूसरों के प्रति भी सकारात्मक रखें, क्योंकि हमारी पूरी सोसायटी समान लेन-देन के इसी फलसफे पर चलती है।
वैसे भी, सम्मान एक ऐसी कला है, जिससे हम परिचितों का आत्मविश्वास बढ़ा सकते हैं, रिश्तों में गर्माहट ला सकते हैं और अपनी तथा दूसरों की जिंदगी में खुशियां भर सकते हैं। एक वाकया है कि फ्रांस के पूर्व सम्राट हेनरी अपने अधिकारियों के साथ राजमार्ग से जा रहे थे। तभी एक भिखारी सड़क पर आकर खड़ा हो गया। जैसे ही सम्राट उसके नजदीक पहुंचे, उसने अपनी टोपी उतारी और झुककर राजा को प्रणाम किया। सम्राट उसे देखकर कुछ सेकंड के लिए खड़े हो गए फिर उन्होंने भी अपनी टोपी उतारी और भिखारी को प्रणाम किया। साथ चल रहे अधिकारियों में काना-फूसी होने लगी। सम्राट समझ गए। उन्होंने कहा कि अगर भिखारी प्रणाम करे, सम्मान करे तो क्या मैं किसी भिखारी को सम्मान देना नहीं जानता? बात साफ है कि सम्मान दोगे तो सम्मान पाओगे।
युवा पीढ़ी को समझाना एक कला
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि आज की जागरूक युवा पीढ़ी को समझाना भी एक कला है। जो माता-पिता इस कला को सीख जाते हैं, उनके बच्चे हर क्षेत्र में सफल होते हैं। किशोर होते बच्चे अपनी दिनचर्या के दौरान कई काम ऐसे करते हैं, जिनके लिए हमें उनका सम्मान करना चाहिए। यह छोटा-सा सम्मान उन्हें आत्मविश्वास से भरा रखेगा।
सभी को चाहिए सम्मान
चाहे मां हो, पत्नी, गृहिणी या कोई कामकाजी महिला, सम्मान की हकदार सभी स्त्रियां हैं। इसी तरह, बुजुर्गों के प्रति आपका रवैया हमेशा हौसला बढ़ाने वाला ही होना चाहिए।
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