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    पढ़ाई का नया पाठ : कौशल, एआई और अनुभव से सीखने का दौर

    Updated: Tue, 23 Dec 2025 12:58 PM (IST)

    राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रभावी क्रियान्वयन से 2025 तक भारतीय शिक्षा व्यवस्था में कई सकारात्मक बदलाव आए। शिक्षा अब ज्यादा लचीली, व्यावहारिक और छ ...और पढ़ें

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    नई दिल्ली, अनुराग मिश्र


    राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लगातार और प्रभावी क्रियान्वयन के साथ वर्ष 2025 भारतीय शिक्षा व्यवस्था के लिए एक अहम पड़ाव बनकर उभरा। यह वह साल रहा जब कई सुधार सिर्फ नीतिगत घोषणाओं तक सीमित नहीं रहे, बल्कि कक्षाओं, कॉलेज परिसरों और डिजिटल मंचों पर साफ दिखाई देने लगे। अंतर्विषयी पढ़ाई, शोध पर बढ़ता जोर, डिजिटल ढांचे का विस्तार और उद्योग के साथ मजबूत होते सहयोग ने शिक्षा को पहले से ज्यादा लचीला, व्यावहारिक और छात्र-केंद्रित बनाया। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क, कौशल-आधारित पाठ्यक्रमों और नियामकीय बदलावों के जरिए शिक्षा तक पहुंच बेहतर हुई, पढ़ाई की गुणवत्ता सुधरी और सीखने के नतीजों में भी ठोस सुधार दिखा। अब जब 2026 की ओर बढ़ते हुए शिक्षा व्यवस्था बहुविषयी, तकनीक-आधारित और अनुभव से सीखने वाले मॉडल की तरफ बढ़ रही है, तो सवाल सिर्फ यह नहीं है कि कितने सुधार हुए, बल्कि यह है कि क्या ये बदलाव हर छात्र तक पहुंच पाएंगे और क्या शिक्षा वास्तव में उन्हें भविष्य के लिए तैयार कर पाएगी।
    वर्ष 2025 की एक प्रमुख विशेषता शिक्षण में तकनीक का बढ़ता समावेश रहा, जिसमें एआई-सक्षम कक्षाएं, वर्चुअल प्रयोगशालाएं और हाइब्रिड लर्निंग मॉड्यूल शामिल हैं। इन बदलावों ने न केवल शिक्षा तक पहुंच को बेहतर बनाया, बल्कि देशभर के छात्रों के लिए व्यक्तिगत सीखने के मार्गों को भी सशक्त किया है। वर्ष 2025 का एक अहम पहलू कौशल विकास के लिए अकादमिक जगत और उद्योग के बीच बढ़ता सहयोग रहा। इसने विभिन्न विषयों से स्नातक हो रहे छात्रों के कौशल को वैश्विक औद्योगिक आवश्यकताओं के अनुरूप सफलतापूर्वक समन्वित किया। वर्ष 2026 में शिक्षा का भविष्य बड़े बदलाव की ओर अग्रसर है, जहां बहुविषयी और अंतरविषयी शिक्षा को केंद्र में रखा जाएगा। इंजीनियरिंग, विज्ञान, मानविकी और डिजाइन के क्षेत्र में समेकित शिक्षा छात्रों को भविष्य की अनदेखी चुनौतियों के लिए समग्र समाधान विकसित करने में सक्षम बनाएगी।
    विवेकानंद एजुकेशन सोसाइटी बिजनेस स्कूल के प्रिंसिपल डा. संदीप भारद्वाज कहते हैं कि नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क का कार्यान्वयन शिक्षा क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित हुआ है। इसने सीखने की प्रक्रिया में समानता स्थापित की है, चाहे वह औपचारिक शिक्षा हो या व्यावसायिक कौशल प्रशिक्षण, कक्षा में पढ़ाई हो या ऑनलाइन माध्यम, विज्ञान की पढ़ाई हो या मानविकी की। अब छात्र किसी भी स्ट्रीम से, किसी भी माध्यम के जरिए अपनी पसंद के अनुसार क्रेडिट अर्जित कर सकते हैं। इससे स्टेम (STEM) को शीर्ष पर और व्यावसायिक कौशल को निचले पायदान पर रखने वाली मानसिकता समाप्त होती है।
    डा. भारद्वाज कहते हैं कि शिक्षा में मल्टीपल एंट्री और एग्जिट विकल्पों ने उन बड़े वर्गों के लिए भी शिक्षा को सुलभ बनाया है, जो पारंपरिक और रैखिक शैक्षणिक मार्ग का अनुसरण करने में असमर्थ थे। उच्च शिक्षा में क्षेत्रीय भाषाओं पर बढ़ते जोर ने शिक्षा का लोकतंत्रीकरण किया है। भले ही इसकी शुरुआत धीमी रही हो, लेकिन आने वाले समय में इसके तेजी से विस्तार की संभावना है और यह शिक्षा से जुड़ी अभिजात्य प्रवृत्ति को समाप्त करने की क्षमता रखता है। इन सहित अनेक सुधारों ने यह सुनिश्चित किया है कि शिक्षा तक पहुंच बढ़े, गुणवत्ता में सुधार हो और सीखने के ठोस परिणाम सामने आएं।
    इस साल उच्च शिक्षा में दो बड़े बदलाव नजर आए: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साझेदारी बढ़ाना और शोध-उन्मुख नए सिस्टम तैयार करना।
    महिंद्रा विश्वविद्यालय के वाइसचांसलर डा. याजुलु मेदुरी कहते हैं कि विश्वविद्यालय अब सिर्फ पढ़ाई के लिए नहीं, बल्कि नवाचार और व्यावहारिक अनुभव का केंद्र बन रहे हैं। शोध सुविधाओं का विस्तार, उद्योग के साथ साझेदारी और छात्रों को वास्तविक दुनिया की समस्याओं में शामिल करना शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ा रहा है और छात्रों को भविष्य के लिए तैयार कर रहा है। इन पहलों से शिक्षा की पहुंच और सीखने के नतीजे दोनों बेहतर हुए हैं। भारत की कोशिश है कि देश शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में विश्व में आगे आए। इसके लिए इस साल कई नीति सुधार हुए। इनमें संस्थानों को ज्यादा स्वतंत्रता देना, शोध में निवेश बढ़ाना और डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देना शामिल है।

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    एम्प्लॉयबिलिटी में हुआ सुधार


    इसके अतिरिक्त, प्रोजेक्ट-आधारित और उद्योग-संबद्ध शिक्षण मॉडलों का विस्तार एक प्रमुख सुधारक तत्व के रूप में उभरा है। इंडिया स्किल्स रिपोर्ट 2026 के आंकड़े दर्शाते हैं कि उद्योग की भागीदारी से सह-डिजाइन किए गए पाठ्यक्रमों ने स्नातकों की जॉब रेडीनेस में उल्लेखनीय सुधार किया है। आईआईटी मद्रास के वाधवानी स्कूल ऑफ डेटा साइंस एंड एआई, आईआईटी मद्रास, तथा समन्वयक, सेंटर फॉर इंटीग्रेटिव बायोलॉजी एंड सिस्टम्स मेडिसिन के प्रो. कार्तिक रमन कहते हैं कि इस वर्ष शिक्षा क्षेत्र में सबसे अहम उपलब्धियों में से एक स्नातकों की रोज़गार-योग्यता (एम्प्लॉयबिलिटी) में मापनीय सुधार रहा है। इंडिया स्किल्स रिपोर्ट 2026 के निष्कर्षों के अनुसार, भारत की रोज़गार-योग्यता दर बढ़कर 56.35 प्रतिशत तक पहुंच गई है। यह वृद्धि कौशल-आधारित पाठ्यक्रमों, डिजिटल लर्निंग प्लेटफॉर्म्स के विस्तार और उद्योग–अकादमिक सहयोग के सुदृढ़ होने का प्रत्यक्ष परिणाम मानी जा रही है। रोज़गार-योग्यता में यह बढ़ोतरी एआईसीटीई की प्रोजेक्ट प्रैक्टिस, एआई और क्लाइमेट सेल्स जैसी पहलों के माध्यम से उद्योग और शिक्षण संस्थानों के बीच मजबूत होते तालमेल तथा डिजिटल शिक्षण मंचों के बढ़ते उपयोग से भी जुड़ी हुई है।

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    सीनियर सेकेंडरी स्तर पर एआई, रोबोटिक्स का दक्षता आधारित मूल्यांकन मॉडल शुरू करने का ऐलान


    प्रोफेसर रमन कहते हैं कि इसके साथ ही, काउंसिल फॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्ज़ामिनेशन्स (CISCE) ने सीनियर सेकेंडरी स्तर पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स जैसे विषयों और दक्षता-आधारित मूल्यांकन मॉडल शुरू करने की घोषणा की है। कम उम्र के छात्रों के लिए कंप्यूटर साइंस में एआई और कोडिंग को भी एकीकृत किया जा रहा है। इसके अलावा, सीआईएससीई द्वारा एक “होलिस्टिक प्रोग्रेस कार्ड” शुरू किया जा रहा है, जिसके माध्यम से छात्रों का मूल्यांकन केवल अकादमिक नहीं, बल्कि गैर-अकादमिक क्षेत्रों में भी किया जाएगा। इस पहल का उद्देश्य सीखने के परिणामों को अधिक व्यापक, संतुलित और प्रभावी बनाना है।
    डा. याजुलु मेदुरी कहते हैं कि तकनीक में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग, रोबोटिक्स और VLSI जैसी चीज़ें पढ़ाई में शामिल की जा रही हैं। अब छात्रों को सिर्फ किताबें पढ़ने की जगह, लाइव प्रोजेक्ट, इंटर्नशिप और वास्तविक अनुभव भी मिल रहा है। इससे उनकी पढ़ाई और कौशल दोनों मजबूत हो रहे हैं।

    एआई के उत्कृष्टता केंद्र बनाने को लेकर फंड


    केंद्रीय बजट 2025-26 में शिक्षा के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में उत्कृष्टता केंद्र (Centre of Excellence in AI for Education) की स्थापना हेतु ₹500 करोड़ का प्रावधान किया गया है। यह केंद्र आईआईटी मद्रास में स्थापित किया जाएगा और इसका उद्देश्य एआई-आधारित मूल्यांकन प्रणालियां, व्यक्तिगत शिक्षण (पर्सनलाइज़्ड लर्निंग) और स्मार्ट कंटेंट का विकास करना है। यह उत्कृष्टता केंद्र विशेष रूप से आधारभूत साक्षरता एवं संख्यात्मक दक्षता (FLN) के लिए एआई समाधान विकसित करने पर भी ध्यान केंद्रित करेगा, ताकि प्रारंभिक शिक्षा की गुणवत्ता और पहुंच में सुधार किया जा सके। हाल ही में आयोजित संसदीय परामर्श समिति की बैठक में भी शिक्षण और अधिगम में एआई की संभावनाओं पर व्यापक चर्चा हुई। इस दौरान इस बात पर बल दिया गया कि सरकार DIKSHA 2.0, ई-जादुई पिटारा, गुरु-मित्र और विद्या समीक्षा केंद्र जैसे राष्ट्रीय प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से एआई के विस्तार को बढ़ावा दे रही है। ये प्लेटफॉर्म व्यक्तिगत शिक्षण, शिक्षकों को अकादमिक सहयोग और छात्रों की प्रगति की रियल-टाइम निगरानी के लिए एआई का उपयोग कर रहे हैं।
    प्रो. कार्तिक रमन का मानना है कि सीबीएसई ने भी आगामी शैक्षणिक सत्र से स्कूल पाठ्यक्रम में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को शामिल करने की योजना की घोषणा की है, जो स्कूली शिक्षा में भविष्य-उन्मुख कौशलों को समाहित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
    उद्योग-नेतृत्व वाले प्रशिक्षण कार्यक्रम, जो एआई, साइबर सुरक्षा और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे उभरते क्षेत्रों में लाखों शिक्षार्थियों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखते हैं, यह दिखाते हैं कि बड़े पैमाने पर कौशल अंतर को पाटने में सहयोग कितना प्रभावी हो सकता है। एआईसीटीई की प्रोजेक्ट प्रैक्टिस जैसी पहलें और उद्योग-नेतृत्व वाले कार्यक्रम—जैसे आईबीएम की एआई, साइबर सुरक्षा और क्वांटम कंप्यूटिंग में 50 लाख युवाओं को कौशल प्रशिक्षण देने की योजना इस बात का स्पष्ट उदाहरण हैं कि अकादमिक-उद्योग सहयोग किस तरह भविष्य की कार्यबल आवश्यकताओं को पूरा करने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।


    शिक्षा की डिलीवरी प्रणाली पर दूरगामी प्रभाव डालेगा एचईसीआई विधेयक


    डा. भारद्वाज का कहना है कि वर्ष 2025 में शिक्षा क्षेत्र का सबसे प्रभावशाली नीतिगत निर्णय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) विधेयक का पारित होना रहा है। यह कदम भारत में शिक्षा की डिलीवरी प्रणाली पर दूरगामी प्रभाव डालेगा। इस विधेयक के तहत सभी शैक्षणिक संस्थानों के लिए एकल नियामक निकाय की परिकल्पना की गई है। इससे दोहराव और अनावश्यक नौकरशाही नियंत्रण समाप्त होंगे।

    1 (19)सरकारी मंजूरियों, विशेषकर शैक्षणिक सहयोग और अंतरराष्ट्रीयकरण से जुड़ी स्वीकृतियों को प्राप्त करना आसान होगा। इससे संस्थान विभिन्न एजेंसियों के चक्कर लगाने के बजाय अपने मूल शैक्षणिक उद्देश्यों और अध्ययन की गुणवत्ता पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकेंगे।
    गौरतलब है कि विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक को 2025 में पेश किया। इस विधेयक का उद्देश्य भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों (एचईआईएस) को प्रभावी समन्वय और मानकों के निर्धारण के माध्यम से उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए सशक्त बनाना है। वर्तमान परिदृश्य में उच्च शिक्षण संस्थानों को विभिन्न नियामक निकायों से कई स्वीकृति प्राप्त करने, कई तरह के निरीक्षण से गुजरने आदि की आवश्यकता होती है, जिसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र का अत्यधिक विनियमन और नियंत्रण का दोहराव होता है। देश में उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए सरलीकृत नियामक प्रणाली उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।
    ऐसे में प्रस्तावित विधेयक एक एकीकृत और सुव्यवस्थित नियामक संरचना को लागू करके जटिलताओं को दूर करने का प्रयास करता है। संपूर्ण नियामक ढांचा प्रौद्योगिकी-संचालित, फेसलेस, सिंगल विंडो इंटरएक्टिव सिस्टम के माध्यम से संचालित होगा, जो सार्वजनिक स्व-प्रकटीकरण और विश्वास-आधारित विनियमन के सिद्धांतों पर आधारित होगा। नियामक परिषद एक व्यापक सार्वजनिक डिजिटल पोर्टल का रखरखाव करेगी। यहां उच्च शिक्षा संस्थानों को वित्तीय ईमानदारी, शासन व्यवस्था, वित्त, लेखापरीक्षा, प्रक्रियाओं, बुनियादी ढांचे, फैकल्टी और कर्मचारियों, शैक्षणिक कार्यक्रमों और शैक्षिक परिणामों से संबंधित जानकारी देनी होगी। इस सार्वजनिक पोर्टल पर प्रस्तुत डेटा मान्यता के प्राथमिक आधार के रूप में भी काम करेगा, जिससे उच्च शिक्षा प्रणाली में पारदर्शिता, जवाबदेही और एकरूपता सुनिश्चित होगी।

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    अकादमिक पाठ्यक्रमों में एक्सपीरिएंशियल लर्निंग को समाहित करना आवश्यक


    डा. भारद्वाज का मानना है कि शिक्षा व्यवस्था में डिग्री से कौशल की ओर स्पष्ट बदलाव देखने को मिल रहा है। केवल कागजी डिग्रियां अब रोजगार की गारंटी नहीं रहेंगी। नौकरी बाजार में वही व्यक्ति मांग में होगा, जो नियोक्ताओं की वास्तविक आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम हो। यह बदलाव तभी संभव है, जब अकादमिक पाठ्यक्रमों में एक्सपीरिएंशियल लर्निंग को समाहित किया जाए। इसके तहत कंपनियों के साथ इंटर्नशिप और अप्रेंटिसशिप को पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाना होगा, ताकि छात्र रोजगार बाजार के अनुरूप प्रासंगिक बने रहें। विशेष रूप से उच्च शिक्षा में वही संस्थान सफल होंगे, जो अपने पाठ्यक्रम में अनुभवात्मक सीख को प्रभावी ढंग से शामिल करेंगे।

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    026 में इन बदलावों पर रहेगी नजर

    प्रोफेसर कार्तिक रमन कहते हैं कि आगामी वर्ष 2026 में शिक्षा व्यवस्था में कई महत्वपूर्ण बदलाव और नवाचार देखने को मिल सकते हैं, जिनका सीधा उद्देश्य छात्रों को भविष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप सक्षम बनाना होगा। सबसे बड़ा बदलाव उच्च शिक्षा संस्थानों और स्कूलों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के बढ़ते उपयोग के रूप में सामने आएगा। इसके साथ ही एआई के उपयोग, नैतिकता और नियमन से जुड़े नीतिगत विमर्श भी तेज़ होंगे। एआई साक्षरता, कम्प्यूटेशनल थिंकिंग, डिजिटल लिटरेसी और अंतर्विषयी (इंटरडिसिप्लिनरी) शिक्षण को पहले की तुलना में और अधिक प्राथमिकता दी जाएगी।

    इसके साथ-साथ राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत प्रस्तावित 5+3+3+4 संरचना, बहुविषयी उच्च शिक्षा और नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क (एनसीआरएफ) के और व्यापक क्रियान्वयन की संभावना है। इससे क्रेडिट ट्रांसफर, पढ़ाई के दौरान बाहर निकलने और दोबारा प्रवेश (एग्ज़िट–री-एंट्री) जैसे विकल्पों को सहज बनाया जा सकेगा। माइक्रो-क्रेडिट्स को अपनाने और इस तरह के पाठ्यक्रमों के प्रसार में भी तेज़ी आने की उम्मीद है। शिक्षण की प्रक्रिया में एडटेक कंपनियों और नई तकनीकों का प्रभाव और गहराने वाला है। इसके अलावा, शैक्षणिक प्रशासन में डिजिटल तकनीकों का व्यापक प्रसार देखने को मिलेगा। एपीएएआर आईडी, स्किलिंग से जुड़े डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और समग्र रूप से मजबूत होते डिजिटल व एआई स्टैक्स से प्रशासनिक प्रक्रियाएं अधिक पारदर्शी, कुशल और एकीकृत होंगी।

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    रमन कहते हैं कि हालांकि, इन तमाम बदलावों के साथ चुनौतियां भी कम नहीं होंगी। विशेष रूप से एआई शिक्षा और स्किलिंग के प्रभावी क्रियान्वयन में शिक्षक प्रशिक्षण एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आएगा। शिक्षकों को नई तकनीकों, एआई टूल्स और बदले हुए शिक्षण दृष्टिकोण के अनुरूप तैयार करना 2026 की शिक्षा नीति और व्यवस्था की सफलता के लिए निर्णायक कारक साबित होगा।

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    डा. याजुलु मेदुरी कहते हैं कि आने वाले साल में शिक्षा अब पुराने, कड़े पाठ्यक्रमों से हटकर ज्यादा लचीली और बहुविषयी होगी। सिर्फ अकादमिक ज्ञान पर नहीं, बल्कि समस्या सुलझाने, व्यावहारिक सीख और असली दुनिया में काम करने पर जोर रहेगा। इससे छात्र अपनी रुचि के अनुसार पढ़ाई कर सकेंगे और नई तकनीक व वैश्विक बदलावों के अनुसार खुद को तैयार कर सकेंगे।