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देश जब आजादी का जश्न मना रहा था, तब कहां थे महात्मा गांधी

गांधी जी उस वक्त दिल्ली के हर्षोउल्लास से हजारों किलोमीटर दूर उपवास पर बैठे थे।

By Rajat SinghEdited By: Published: Tue, 13 Aug 2019 01:48 PM (IST)Updated: Tue, 13 Aug 2019 03:51 PM (IST)
देश जब आजादी का जश्न मना रहा था, तब कहां थे महात्मा गांधी
देश जब आजादी का जश्न मना रहा था, तब कहां थे महात्मा गांधी

नई दिल्ली, जेएनएन। 15 अगस्त 1947, जब पूरा देश 200 साल की अंग्रेजों की गुलामी से मिली आजादी का जश्न मना रहा था और उस वक्त भारत की आजादी में अहम योगदान देने वाले मोहनदास करमचन्द गांधी इस जश्न में शामिल नहीं थे। वह उस ऐतिहासिक दिन दिल्ली में नहीं बल्कि वहां से हजारों किलोमीटर दूर उपवास पर बैठे थे। जी हां... जब प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने आजादी की घोषणा की, तब भी महात्मा गांधी वहां मौजूद नहीं थे। ऐसे में सवाल है कि देश में उस समय के इतने महत्वपूर्ण व्यक्ति जिन्होंने आजादी के लिए लंबा संघर्ष किया वह आखिर उपवास पर क्यों बैठे थे?  

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दंगे को शांत करने में लगे थे गांधी जी
दरअसल, महात्मा गांधी उस वक्त बंगाल में थे। उस वक्त वह कोलकता के हैदरी मंजिल में रुके थे। एक ओर दिल्ली में आजादी का उत्सव मनाया जा रहा था, तो दूसरी और बंगाल दंगों में जल रहा था। गांधी बंटवारे के फैसले से आहत थे। वह उस वक्त बंगाल में हिंदू-मुस्लिम दंगे को शांत कराने के लिए उपवास पर बैठे थे। ऐसा कहा जाता है कि बंटवारे और आजादी की शर्तों की पूरी जानकारी गांधी को नहीं दी गई थी। इस बात से वह नाराज भी थे। खाटी समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ने अपनी किताब 'भारत विभाजन के गुनहगार' में इस बात का जिक्र किया है। किताब में इस बात का जिक्र है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गांधी को बंटवारे के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं दी थी।

दिल्ली आने से किया था मना
पं. नेहरू और सरदार पटेल ने महात्मा गांधी को मनाने की कोशिश की। महात्मा गांधी को बुलाने के लिए उन्होंने अपना एक संदेशवाहक कोलकाता भेजा। लेकिन गांधी नहीं माने। उन्होंने मना कर दिया। उन्होंने कहा कि  जब बंगाल जल रहा है, तब मैं कैसे दिल में रोशनी लेकर दिल्ली आ सकता हूं।

आजादी के दिन लिखे खत
आजादी के दिन गांधी जी मुख्य रूप से दो काम किए थे। इसमें पहला काम था चरखा पर सूत कातने का और दूसरा पत्र लिखने का। गांधी ने उस दिन दो पत्र लिखे। इसमें पहला पत्र उन्होंने लंदन की अपनी मित्र अगाथा हैरीसन को लिखा, जबकि दूसरा पत्र उन्होंने रामेंद्र सिन्हा को लिखा। इसके अलावा इस दिन उन्होंने बंगाल के गवर्नर सी राजगोपालाचारी से भी मुलाकात की। 

आज से गांधी को अंग्रेजी नहीं आती
इस दिन के बारे में बताते हुए प्रख्यात गांधीवादी चिंतक कुमार प्रशांत कहते हैं ,'सुबह सबसे पहले बीबीसी का संवाददाता पहुंचा। उस संवाददाता ने आजादी पर गांधी जी से राय पूछी, तो उन्होंने कहा कि मैं तुम्हारे माध्यम से दुनिया से कहना चाहता हूं कि आज से गांधी को अंग्रेजी नहीं आती है। वह कहना चाहते थे कि आजाद देश से बात करनी है, तो आप उस देश की भाषा सीखनी चाहिए।' 

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