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    मेडिकल फील्ड में जनेटिक काउंसलर की बढ़ रही मांग, जानें क्या होता है इनका काम

    By Neel RajputEdited By:
    Updated: Wed, 06 Nov 2019 03:18 PM (IST)

    स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट और दूसरे पहल किए जा रहे हैं जिसके बाद जेनेटिक काउंसलिंग की भूमिका काफी बढ़ गई है। ...और पढ़ें

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    मेडिकल फील्ड में जनेटिक काउंसलर की बढ़ रही मांग, जानें क्या होता है इनका काम

    नई दिल्ली, जेएनएन। मानव शरीर के क्रोमोजोम्स में करीब 25 से 35 हजार के बीच जीन्स होते हैं। कई बार इन जीन्स का शरीर में सही रूप में डिस्ट्रिब्यूशन नहीं होता है, जिससे थैलेसेमिया, हीमोफीलिया, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, क्लेफ्ट लिप पैलेट, न्यूरोडिजेनेरेटिव जैसी क्रोमोजोमल एबनॉर्मिलिटीज या आनुवांशिक समस्याएं हो सकती हैं। वैसे, इससे निपटने के लिए स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट और दूसरे पहल किए जा रहे हैं, जिसके बाद जेनेटिक काउंसलिंग की भूमिका काफी बढ़ गई है। ऐसे में जो लोग इसमें करियर बनाना चाहते हैं, उनके लिए संभावनाएं कहीं ज्यादा हो गई हैं...

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    संभावनाएं

    एक अनुमान के अनुसार, करीब 5 प्रतिशत आबादी में किसी न किसी तरह के इनहेरिटेड डिसऑर्डर पाया जाता है। ये ऐसे डिसऑर्डर्स होते हैं जिनका पता शुरुआत में नहीं चल पाता है। लेकिन एक जेनेटिक काउंसलर बता सकता है कि अमुक व्यक्ति में इस तरह की किसी समस्या होने की कितनी गुंजाइश है। इससे समय रहते बहुत सारे जेनेटिक डिसऑर्डर्स के बारे में जानकारी मिल जाती है। इस तरह जेनेटिक काउंसलर हेरिडेटरी डिजीज की जानकारी देने के अलावा परिवार के सदस्यों को भावनात्मक एवं मनोवैज्ञनिक सहयोग देते हैं। ये मरीज की फैमिली हिस्ट्री का अध्ययन कर इनहेरिटेंस पैटर्न का पता लगाते हैं।

    स्किल्जे

    नेटिक काउंसलिंग के लिए सबसे प्रमुख स्किल है कम्युनिकेशन। इसके अलावा, मुश्किल परिस्थितियों से डील करने का धैर्य। एक काउंसलर को नॉन-जजमेंटल होना भी जरूरी है ताकि सब कुछ जानने के बाद मरीज अपना निर्णय खुद से ले सके। मरीज को यह भरोसा भी होना चाहिए कि काउंसलर हमेशा उनकी भलाई के लिए सलाह देगा। 

    शैक्षिक योग्यता

    जेनेटिक काउंसलर बनने के लिए बायोलॉजी, जेनेटिक्स और साइकोलॉजी में स्नातक की डिग्री के साथ-साथ लाइफ साइंस या जेनेटिक काउंसलिंग में एमएससी, बीटेक या एमटेक की डिग्री होनी जरूरी है।

    भारत में इससे संबंधित कोर्स पंजाब की गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी, हैदराबाद के कामिनेनी इंस्टीट्यूट, ओस्मानिया यूनिवर्सिटी, लखनऊ के संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट, बेंगलुरु के सेंट जॉन्स मेडिकल कॉलेज, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस, औरंगाबाद के महात्मा गांधी मिशन, इंदौर के स्कूल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी, दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से किए जा सकते हैं। इनके अलावा, दिल्ली स्थित ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज और गंगाराम हॉस्पिटल से डॉक्टर्स शॉर्ट टर्म कोर्स कर सकते हैं। और भी हैं अवसर: अगर इस क्षेत्र के विकल्पों की बात करें, तो चार स्तरों पर अवसर हैं।

    पहली, क्लिनिकल स्तर पर। इसमें हॉस्पिटल में नौकरी के अलावा निजी प्रैक्टिस या इंडिपेंडेंट कंसल्टेंट के तौर पर काम कर सकते हैं। दूसरा मौका डायग्नॉस्टिक लेबोरेटरीज में मिलता है। यहां जेनेटिक काउंसलर फिजिशियन और लैब के बीच मीडिएटर का रोल निभा सकता है। तीसरा क्षेत्र शिक्षण और पब्लिक पॉलिसी से संबंधित है जिसमें कंपनियों को सलाह देने के साथ शिक्षण में हाथ आजमाया जा सकता है। वहीं, चौथा अवसर रिसर्च सेक्टर में है, जहां अभी काफी मौके हैं।

    आकर्षक सैलरी

    जेनेटिक काउंसलिंग के क्षेत्र में आर्थिक स्थिरता पूरी है। हालांकि जॉब प्रोफाइल और सेक्टर के मुताबिक सैलरी निर्भर करती है। एक प्राइवेट प्रैक्टिशनर या प्राइवेट हॉस्पिटल में काम करने वाला प्रोफेशनल महीने में 50 हजार रुपये तक कमा सकता है। जबकि सरकारी विभाग में काम करने वाले महीने में 25 से 40 हजार के बीच कमा लेते हैं।