Move to Jagran APP

जानिए, जीरो के आविष्कार से पहले कैसे होता था जोड़-घटाव

किसी भी आकृति के निर्माण के पीछे अनुपात और आकार का पूरा गणित होता है। ऐसे में सवाल है कि जब जोड़ना और घटाना आसान नहीं था तो इतने बड़े निर्माण कैसे हुए?

By Rajat SinghEdited By: Published: Tue, 10 Sep 2019 07:18 PM (IST)Updated: Wed, 11 Sep 2019 07:18 PM (IST)
जानिए, जीरो के आविष्कार से पहले कैसे होता था जोड़-घटाव
जानिए, जीरो के आविष्कार से पहले कैसे होता था जोड़-घटाव

नई दिल्ली, जेएनएन। शून्य का कोई मतलब नहीं होता, लेकिन इसके बिना गणित की कल्पना भी अधूरी है। आज हम चांद तक पहुंच गए, इसके पीछे भी शून्य का ही कमाल है। अगर शून्य न होता, तो हम दूरी का अंदाजा ही  नहीं लगा पाते। न हम नंबर को जोड़ पाते और न ही घटा पाते। गणित के चमत्कारी अंक शून्‍य का आविष्कार सन् 498 में माना जाता है। जबकि इससे पहले 2560 ईसा पूर्व में मिस्र के लोगों ने मशहूर पिरामिड बना डाला। वहीं, चीन की दीवार भी 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में ही बननी शुरू हो गई थी। जबकि किसी भी तरह का निर्माण कार्य गणित के सहारे के बिना मुश्किल है।

loksabha election banner

किसी भी आकृति के निर्माण के पीछे अनुपात और आकार का पूरा गणित होता है। ऐसे में सवाल है कि जब जोड़ना और घटाना आसान नहीं था, तो इतने बड़े निर्माण कैसे हुए?  बिना शून्य के लोग जोड़ और घटाव कैसे करते थे? आज हम आपको इसी रहस्य से रूबरू कराएंगे...

जीरो के स्थान पर छोड़ देते थे खाली जगह
अंकों के पहले इस्तेमाल का अवशेष अब के इराक और पहले के बेबीलोनिया में मिलते हैं। वे शून्य का इस्तेमाल नहीं करते थे। वे शून्य की जगह खाली छोड़ देते थे। यह एक किस्म का प्लेस होल्डर था।

रोमन करते थे एबैकस का इस्तेमाल
ग्रीक के लोग जीरो की खोज से पहले इसके बारे में जानते थे, हालांकि वे इस अंक को नहीं मानते थे। वहीं, रोम में बिना इसके इस्तेमाल के ही जोड़-घटाव किया जाता था। द गार्जियन में छपी रिपोर्ट में George Auckland और Martin Gorst बताते हैं कि रोमन बिना अंकों का ही जोड़-घटाव करते थे। वे इसके लिए किसी एबैकस या फ्रेम का इस्तेमाल थे। इसमें शून्य की जगह डॉट का इस्तेमाल किया जाता था, जिसने आगे चलकर शून्य का स्थान ले लिया।

चीनी करते थे डेसिमल प्लेस वैल्यू सिस्टम का इस्तेमाल
चीनियों ने कॉलम का इस्तेमाल किया। वे जोड़ने या घटाने के लिए डेसिमल प्लेस वैल्यू सिस्टम का इस्तेमाल करते थे। हालांकि, बिना शून्य के वे बड़े अंक नहीं लिख पाते थे। ऐसे में वे अंकों के स्थान पर चित्रों का इस्तेमाल करते थे।

शून्य से पहले था दस अंकों का ज्ञान
इंसान शुरुआत से गिनती के लिए अंगुलियों का इस्तेमाल करता था। शून्य से पहले उसे दस अंकों का ज्ञान था। क्योंकि मनुष्य के हाथों में दस अंगुलियां थीं। बस अंतर यह था कि वे उसे लिख नहीं सकते थे। सीधे शब्दों में कहें कि अंक बोध था, बस उसे मान्यता नहीं मिली थी। इसे मान्यता भारत ने दिया।

Pic Credit-Yahoo

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.