Janmashtami 2023: छात्रों को प्रेरित करते हैं भगवत गीता के ये श्लोक - अर्थ सहित यहां से पढ़ें
Janmashtami 2023 देश भर में आज श्री कृष्ण के जन्मोत्सव पर जन्माष्टमी बड़े ही धूम-धाम से सेलिब्रेट की जा रही है। स्कूलों से लेकर कॉलेज और विभिन्न जगह सांस्कृतिक कार्यक्रम और गीता श्लोक का पाठ होता है। अगर आप भी छात्रों को ऐसे गीता श्लोक के बारे में बताना चाहते हैं जिससे वे प्रेरित होकर आगे बढ़ें तो आप यहां दिए गए श्लोक से स्टूडेंट्स में उमंग भर सकते हैं।

Janmashtami 2023: देश भर में आज यानी बुधवार, 6 सितंबर 2023 को श्री कृष्ण के जन्म उत्सव के रूप में जन्माष्टमी मनाई जा रही है। पंचांग की मानें तो भाद्रपद की कृष्ण अष्टमी तिथि 6 सितंबर दोपहर 3 बजकर 38 मिनट पर शुरू होकर 7 सितंबर की शाम 4 बजकर 14 मिनट तक जारी रहेगी। कृष्ण जन्माष्टमी को लेकर बड़े-बुजुर्गों के साथ ही बच्चों और युवाओं में भी उत्साह होता होता। इस दिन जगह-जगह दही-हांडी के प्रोग्राम होते हैं तो वहीं बहुत सी जगहों पर भगवत गीता का पाठ भी करवाया जाता है। लेकिन क्या आपको है है कि श्री कृष्ण के द्वारा बोले गए गीता श्लोक छात्रों को भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने वाले होते हैं। अगर नहीं तो हम यहां कुछ ऐसे श्लोक बता रहे हैं जिनसे आप प्रेरित होकर अपने लक्ष्य की ओर से बढ़ सकते हैं।
भगवत गीता के प्रेरित करने वाले श्लोक
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन जो कहते हैं वो आप अपने जीवन में भी उतार सकते हैं। इस श्लोक का अर्थ है कि, तुम सिर्फ अपना कर्म करो, उसके फल की इच्छा मत करो। तुम्हें सिर्फ कर्म करने का अधिकार का, फल पाने के अधिकारी आप नहीं हो।
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु। युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा।।
यह श्लोक छात्र जीवन के लिए बेहद उपयोगी है। इस श्लोक का अर्थ है कि जो व्यक्ति अपनी दिनचर्या को नियमित रखता है, समय पर भोजन और पर्याप्त नींद लेता है उस व्यक्ति में अनुशासन अपने आप ही आ जाता है। ऐसे व्यक्ति दुखों और बीमारियों से दूर रहते हैं।
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:। स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
इस श्लोक का अर्थ है कि क्रोध करने से मनुष्य की बुद्धि कुंद हो जाती है और अगर मनुष्य की बुद्धि का नाश हो गया तो उसका सर्वस्व नाश हो जायेगा। इसलिए छात्र जीवन में किसी को भी क्रोध से बचना चाहिए।
कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन् | इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचार: स उच्यते ||
इस श्लोक का अर्थ है कि जो व्यक्ति बिना लगाव के अपनी इन्द्रियों पर काबू पाकर उन्हें अपने वश में कर लेता है और अपने कर्मों का फल भगवान को बिना क्षण लगाए अर्पित कर देते हैं ऐसा व्यक्ति कभी भी किसी के वश में नहीं रहेगा और वह किसी भी प्रकार से बंधन का कारण नहीं बन सकता है।
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