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    GIS Remote Sensing Jobs: आपदा मैनेजमेंट से अर्बन प्लानिंग तक में युवाओं के लिए अवसर

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Wed, 26 Aug 2020 11:18 AM (IST)

    आपदाओं की जानकारी एवं उसके प्रबंधन में GIS एवं रिमोट सेंसिंग काफी कारगर साबित होता है। इनके विशेषज्ञों की मांग वर्तमान के साथ-साथ भविष्य में भी बरकरार रहने की पूरी संभावना है...

    GIS Remote Sensing Jobs: आपदा मैनेजमेंट से अर्बन प्लानिंग तक में युवाओं के लिए अवसर

    नई दिल्ली, अंशु सिंह। कोविड-19 के अलावा, भारत से लेकर दुनिया के कई अन्य देशों में अक्सर बाढ़, भूकंप, भूस्खलन, चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप देखा जाता है। आपदाओं की जानकारी एवं उसके प्रबंधन में ज्योग्राफिक इंफॉर्मेशन सिस्टम एवं रिमोट सेंसिंग काफी कारगर साबित होता है। इसके अलावा, ड्रोन से लेकर अर्बन प्लानिंग, ई-गवर्नेंस कृषि, परिवहन जैसे तमाम क्षेत्रों में भी इसका इस्तेमाल होता है। जाहिर है, इससे इनके विशेषज्ञों की मांग वर्तमान के साथ-साथ भविष्य में भी बरकरार रहने की पूरी संभावना है...

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    वर्ष 1856 में भौतिकशास्त्री जॉन स्नो ने लंदन में स्थित पानी के स्रोतों का एक मैप बनाया था। इसके अलावा, उन्होंने ऐसे स्थानों का मैप बनाया, जहां हैजा से पीड़ित लोग रहते थे और फिर दोनों की तुलना कर वह इस नतीजे पर पहुंचे कि पीड़ित पानी के स्रोत के किनारे रहते थे। इस तरह, यह निष्कर्ष भी निकला कि हैजा गंदे पानी से फैला। ज्योग्राफिकल इंफॉर्मेशन सिस्टम यानी जीआइएस का वह पहला प्रयोग था। धीरे-धीरे इसका विकास होता गया। 1990 के दशक में तकनीकी विकास के साथ ही मानचित्रों की समीक्षा और सरल हुई।

    आज जीपीएस, जीआइएस, रिमोट सेंसिंग, जियोइंफॉर्मेटिक्स की भूमिका रोजमर्रा के जीवन में कहीं ज्यादा बढ़ गई है। दूरसंचार, तेल एवं गैस परिवहन, मिसाइल डेवलपमेंट, वैज्ञानिक अनुसंधान, पुरातत्व, नागरिक योजना, विपणन, शिपिंग, जियो फॉरेंसिक, टाउन प्लानिंग, कार्टोग्राफी, स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट, एग्रोनॉमिक एवं एग्री इंजीनियरिंग में जीआइएस का सार्थक प्रयोग हो रहा। इसकी मदद से पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन को कहीं बेहतर समझा जा सका है। यहां तक कि बाढ़, भूस्खलन, भूकंप जैसी आपदाओं से समय रहते निपटने में मदद भी मिली है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण खासतौर पर जीआइएस तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है। 2019 में फेनी साइक्लोन से निपटने की पू्र्व तैयारी में यह तकनीक बेहद कारगर साबित हुई थी। केरल में आई बाढ़ एवं राहत व बचाव कार्य में इसका बखूबी प्रयोग किया गया था।

    क्या है जीआइएस-रिमोट सेंसिंग?: जीआइएस सूचना के स्ट्रक्चर, क्लासिफिकेशन, स्टोरेज, प्रोसेसिंग एवं प्रयोग का विज्ञान है। इसके माध्यम से पृथ्वी की भौगोलिक आकृतियों, सीमाओं, भू-भागों, प्राकृतिक संसाधनों आदि का तकनीकी अध्ययन कर, उन्हें डिजिटल रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह एक उच्च तकनीक है, जिसमें किसी भी डाटा को एनालॉग से डिजिटल तकनीक में बदला जाता है। इससे प्राप्त मानचित्रों को हाईटेक मानचित्र कहा जाता है। दूसरी ओर, रिमोट सेंसिंग डाटा प्राप्त करने की तकनीक है, जिसमें सैटेलाइट के माध्यम से एकत्रित डाटा से किसी भी स्थान की स्थिति को वहां जाए बिना ही जाना जा सकता है। जानकारों के अनुसार, जीआइएस एवं रिमोट सेंसिंग एक दूसरे के पूरक भी माने जाते हैं। पश्चिमी देशों में यह तकनीक काफी उन्नत है, लेकिन अब भारत में भी इसका तेजी से विकास हो रहा है। इसमें युवाओं का सामना एक बिल्कुल नई दुनिया से होता है। वे पर्यावरण की सुरक्षा से लेकर लोगों की जिंदगियों पर प्रभावशाली असर डाल सकते हैं।

    शैक्षिक योग्यता: जीआइएस एक मल्टीडिसिप्लिनरी फील्ड है, जिसमें आट्र्स या साइंस के स्टूडेंट करियर बना सकते हैं। भूगोल, जियोलॉजी, एग्रीकल्चर के अलावा कंप्यूटर साइंस, मैथ्स, अर्थ साइंस, हाइड्रोलॉजी, सिविल इंजीनियरिंग, एमएससी, एमटेक कोर्स करने वाले युवाओं के लिए संभावनाएं और अधिक होती हैं। इसके अलावा, जियोइंफॉर्मेटिक्स और रिमोट सेंसिंग में पीएचडी करने से भी करियर को नई ऊंचाई दे सकते हैं। कई संस्थान डिप्लोमा कोर्स भी ऑफर करते हैं। इन्हें करने के पश्चात भी इस क्षेत्र में मौके तलाश सकते हैं। जानकारों के अनुसार, जो स्टूडेंट नौकरी करना चाहते हैं, उनके लिए ग्रेजुएशन या पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद विभिन्न मैपिंग रिलेटेड कंपनियों, अर्बन प्लानिंग से जुड़े संगठनों में अच्छे मौके हैं। वहीं, जो मास्टर्स करते हैं, वे हायर स्टडीज या रिसर्च का रुख कर सकते हैं।

    संभावनाएं: युवाओं के लिए निजी एवं सरकारी क्षेत्र में तमाम अवसर खुले हैं। वे कोर्स एवं क्वालिफिकेशन के आधार पर जीईएस मैनेजिंग टेक्निशियन, जीआइएस डाटा स्पेशलिस्ट, जीआइएस एप्लिकेशन स्पेशलिस्ट, जीआइएस बिजनेस एनालिस्ट, जीआइएस इंजीनियर, जीआइएस कंसल्टेंट, जियोस्पेशियल सॉफ्टवेयर इंजीनियर, जीआइएस प्रोग्रामर के रूप में अलग-अलग इंडस्ट्री में काम कर सकते हैं। इन सबके अलावा, हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर के अंतर्गत कार्य करने वाले क्षेत्रीय व राज्य स्तरीय रिमोट सेंसिंग सेंटर्स में भी अच्छे अवसर हैं। यहां साइंस एवं मैथ्स की पृष्ठभूमि वालों को अधिक प्राथमिकता दी जाती है।

    प्रमुख संस्थान

    आइआइटी कानपुर

    www.iitk.ac.in

    बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेसरा,रांची

    www.bitmesra.ac.in

    इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग, देहरादून

    www.iirs.gov.in

    जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली

    www.jmi.ac.in

    मोतीलाल नेहरू नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, इलाहाबाद

    www.mnnit.ac.in

    महत्वाकांक्षी योजनाओं में इस्तेमाल: भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया डायरेक्टर बेनिफिट ट्रांसफर प्रोग्राम हो या स्वच्छ भारत मिशन, स्मार्ट सिटी योजना, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, वाटर रिसोर्स मैनेजमेंट, माइनिंग या फिर टेलीकम्युनिकेशन का क्षेत्र, इन सभी में जीआइएस टेक्नोलॉजी का बखूबी इस्तेमाल किया जा रहा है। जियोस्पेशियल मीडिया एवं कम्युनिकेशन एजेंसी के एक अध्ययन के अनुसार, आने वाले समय में इस तकनीक के 13 फीसद सीएजीआर की दर से बढ़ने का अनुमान है। इससे राज्य एवं केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में जीआइएस एवं रिमोट सेंसिंग एक्सपट्र्स की अच्छी मांग रहेगी।

    निजी एवं सरकारी क्षेत्रों में बढ़ रहे अवसर: नई दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया के ज्योग्राफी डिपार्टमेंट के प्रो. मसूद ए सिद्दीकी ने बताया कि आज के दौर में चारों ओर डाटा का ही खेल चल रहा है। बात चाहे सोशल साइंटिस्ट की हो, फिजिकल या मेडिकल साइंटिस्ट की, वे सभी जीआइएस का इस्तेमाल कर रहे हैं। यहां तक कि स्मार्ट सिटी, स्मार्ट एग्रीकल्चर या फिर वाटरशेड मैनेजमेंट का पूरा कॉन्सेप्ट इसी के इर्द-गिर्द बुना गया है। इससे अर्बन प्लानिंग से लेकर लैंड, वाटर एवं एग्री मैनेजमेंट के साथ ही स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में इनके विशेषज्ञ की काफी मांग देखी जा रही है।

    अच्छी बात यह भी है कि सरकार की नीतियों में बदलाव आने से बीते 10 वर्षों में जीआइएस-रिमोट सेंसिंग एक्सपट्र्स की नियुक्तियों में इजाफा हुआ है। अगर जामिया की बात करें, तो हमारे यहां कई दशकों सेजीआइएस-रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन में पीजी डिप्लोमा कोर्सेज ऑफर किए जा रहे हैं। मार्केट ओरिएंटेड कोर्स होने के कारण समय के साथ इनकी मांग बढ़ती गई। इस विषय में प्लेसमेंट भी सौ फीसद के करीब रहा। कोई स्टूडेंट बेरोजगार नहीं रहा।