जमशेदपुर में क्रिटिकल मिनरल अनुसंधान को मिला नया सहयोग
जमशेदपुर स्थित सीएसआईआर-राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला (एनएमएल) और मिनरल एक्सप्लोरेशन एंड कंसल्टेंसी लिमिटेड (एमईसीएल) ने क्रिटिकल मिनरल्स के अनुसंधान के लिए समझौता किया है। इस साझेदारी का उद्देश्य देश में रणनीतिक खनिजों के अनुसंधान, परिशोधन और निष्कर्षण को बढ़ावा देना है। यह सहयोग 'आत्मनिर्भर भारत' नीति के अनुरूप है और खनिज क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देगा।

सीएसआईआर-एनएमएल में करार पर हस्ताक्षर करते पदाधिकारी।
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। भारत में आत्मनिर्भर खनिज विकास की दिशा में एक और बड़ा कदम उठाते हुए जमशेदपुर स्थित सीएसआईआर–राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला (एनएमएल) और मिनरल एक्सप्लोरेशन एंड कंसल्टेंसी लिमिटेड (एमईसीएल) ने मंगलवार को समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह साझेदारी देश में क्रिटिकल मिनरल्स यानी रणनीतिक और तकनीकी रूप से आवश्यक खनिजों के अनुसंधान, परिशोधन और निष्कर्षण को नई दिशा देगी।
बर्मामाइंस स्थित सीएसआईआर-एनएमएल में मंगलवार को आयोजित एक औपचारिक समारोह में एनएमएल और मिनरल एक्सप्लोरेशन एंड कंसल्टेंसी लिमिटेड (एमईसीएल) के बीच समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इस समझौते का उद्देश्य भारत में खनिज अनुसंधान के क्षेत्र में गुणवत्ता, स्थिरता और नवाचार को सुदृढ़ करना है, विशेष रूप से उन क्रिटिकल मिनरल्स पर ध्यान केंद्रित करना जो देश की ऊर्जा सुरक्षा और तकनीकी आत्मनिर्भरता के लिए आवश्यक हैं।
अनुसंधान परियोजनाएं होंगी लागू :
सहयोग के तहत दोनों संस्थान संयुक्त रूप से अनुसंधान परियोजनाओं को लागू करेंगे। साथ ही, एमईसीएल की स्वतंत्र परियोजनाओं में तकनीकी सहयोग भी देंगे। करार के तहत क्रिटिकल मिनरल अनुसंधान, खनिज परिशोधन (बेनिफिशिएशन), धातु निष्कर्षण तकनीक, तकनीकी अंतराल मूल्यांकन, और विश्लेषणात्मक सहायता प्रमुख सहयोग क्षेत्र होंगे। यह पहल भारत सरकार की आत्मनिर्भर भारत नीति के अनुरूप है। एनएमएल और एमईसीएल द्वारा स्थापित सेंटर आफ एक्सीलेंस इन क्रिटिकल मिनरल्स एंड मेटल्स इस समझौते से और सशक्त होगा। यह केंद्र देश में लिथियम, कोबाल्ट, टंगस्टन, टाइटेनियम, गैलियम, जर्मेनियम, नियोडाइमियम, डिस्प्रोसियम जैसे महत्वपूर्ण तत्वों के अनुसंधान और संसाधन विकास पर कार्यरत है।
जसनिए क्रिटिकल मिनरल्स का महत्व :
लिथियम, कोबाल्ट और निकल इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरियों के लिए जरूरी हैं। टंगस्टन और टाइटेनियम रक्षा एवं एयरोस्पेस उद्योगों की रीढ़ हैं। गैलियम और जर्मेनियम सेमीकंडक्टर तथा इलेक्ट्रानिक्स निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं, जबकि नियोडाइमियम और डिस्प्रोसियम उच्च-प्रदर्शन मैग्नेट बनाकर पवन टरबाइनों में उपयोग किए जाते हैं। इसके अलावा, दुर्लभ मृदा तत्व और ग्रेफाइट, टैंटालम, मोलिब्डेनम, मैंगनीज जैसे खनिज भी आधुनिक तकनीकी विकास की नींव हैं।
ज्ञान साझेदारी और प्रशिक्षण पर दिया जोर :
समझौते का एक प्रमुख उद्देश्य अनुसंधान और औद्योगिक क्षेत्र के बीच ज्ञान के आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करना है। संयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रमों और विश्लेषणात्मक कौशल विकास के माध्यम से देश में खनिज विज्ञान की नई पीढ़ी तैयार करने की योजना है। एनएमएल के निदेशक डा. संदीप घोष चौधरी ने कहा कि यह साझेदारी भारत को क्रिटिकल मिनरल्स की वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अग्रणी स्थान दिलाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी। एमईसीएल के चेयरमैन इंद्र देव नारायण ने कहा कि यह पहल खनिज क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देगी। सतत विकास और ऊर्जा सुरक्षा के राष्ट्रीय लक्ष्यों को भी सशक्त बनाएगी। समझौते पर एमईसीएल की ओर से कार्तिक रामचंद्रन, जबकि एनएमएल की ओर से डा. एसके. पाल ने हस्ताक्षर किए। मौके पर इंद्र देव नारायण, पंकज पांडे तथा डॉ. संदीप घोष चौधरी सहित दोनों संस्थानों के वरिष्ठ अधिकारी और वैज्ञानिक उपस्थित थे।
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