अच्छे व्यवहार से बनेगी अच्छी पहचान
यह भी सही है कि कंपनी में अगर आपसी रिश्ते ठीक नहीं होंगे तो इसका प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव कमोबेश कंपनी के साथ-साथ कर्मचारियों के घर पर भी पड़ता है।
नई दिल्ली [मिलन सिन्हा]। इन दिनों सभागार से सड़क तक, स्कूल कॉलेज से वर्कप्लेस तक कमोबेश हर जगह हमें शिष्टाचार और सद्व्यवहार में कमी दिखाई पड़ती है। कथनी और करनी का अंतर भी बढ़ता जा रहा है, जब कि हम मर्यादा पुरुषोत्तम राम की खूब पूजा-अर्चना और गुणगान करते हैं। खासतौर से हायरिंग-फायरिंग के आम कॉरपोरेट कल्चर में लीडर के स्थान पर बॉस शब्द का प्रयोग भी आम हो चला है, जो मानवीयता की मूल भावना को भूलकर पद के अहंकार से ग्रस्त होकर अपने अधीनस्थ कर्मियों को बात-बेबात डांटते-फटकारते रहते हैं, हालांकि पद (इसका एक अर्थ पैर भी होता है) को सिर पर रखकर चलने से औंधे मुंह गिरना लाजिमी है, ऐसा ज्ञानीजन कहते रहे हैं। यह भी सही है कि कंपनी में अगर आपसी रिश्ते ठीक नहीं होंगे, तो इसका प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव कमोबेश कंपनी के साथ-साथ कर्मचारियों के घर पर भी पड़ता है। घरेलू माहौल तनावपूर्ण रहता है...
नकारात्मकता
सबसे पहले एक अहम विचारणीय तथ्य। मेडिकल साइंस भी कहता है कि किसी के साथ गलत या अमर्यादित व्यवहार करने से सबसे पहले हम स्वयं निगेटिव एनर्जी से भर जाते हैं, जिसका बुरा असर हमारे मेटाबॉलिज्म पर होता है। कहा भी गया है-‘जैसा बोएंगे, वैसा ही काटेंगे’ यानी आज नहीं तो कल ब्याज समेत उसी तरह का व्यवहार हमें भी मिलता है, जिससे हमारा तनाव और ज्यादा बढ़ता है। क्या जानबूझकर गलत व्यवहार करने वाले लोग इस तथ्य से अनभिज्ञ होते हैं? आखिर ऐसे सभी लोग इस तरह का व्यवहार क्यों करते हैं?
असुरक्षा की भावना
देखा गया है कि अंदर से कमजोर लोग, असुरक्षा की भावना या हीनभावना से ग्रसित लोग या फिर बहुत जल्दी सब कुछ पाने को लालायित लोग जाने-अनजाने में ऐसा अमानवीय व्यवहार ज्यादा करते हैं। आक्रामक या दबंग या सुपीरियरिटी कॉम्प्लेक्स से ग्रसित लोग भी ऐसा खूब करते हैं। पाया गया है कि इस श्रेणी के लोग भी कहीं-न-कहीं अंदर से दुर्बल और अनजाने भय के शिकार होते हैं, बुद्धि के मामले में भी वे कमतर पाए गए हैं। सो, अपनी कमियों को छिपाने और अपने को बड़ा और पावरफुल दिखाने के प्रयास में डराने-धमकाने का शॉर्टकट तरीका अपनाते हैं।
दिखावे का प्रयास
दिलचस्प बात यह भी है कि जिसे आपने भी नोटिस किया होगा कि कई लोग बस अपने आसपास के लोगों में अपना अच्छा इंप्रेशन बनाने के लिए अच्छा होने या अपने आचरण को अच्छा दिखाने का प्रयास करते हैं। इस काम को अंजाम देने के लिए अनेक पीआर फर्म की सेवाएं लेते हैं। इस अभिनय का उन्हें कुछ तात्कालिक लाभ भी हासिल हो जाता है। लेकिन देर-सबेर उनके इस कृत्रिम रूप का पर्दाफाश होना तय होता है। कहते हैं न कि झूठ का मुखौटा सत्य को बाहर आने से ज्यादा दिन तक नहीं रोक पाता है।
गरिमामय आचरण
कहने का आशय यह कि हम कितना भी कीमती और सुंदर कपड़े पहन लें, बहुत अमीर हों या बड़ी-बड़ी डिग्रियों के मालिक हों या दिखने-दिखाने के लिए कुछ भी कर लें, अगर आम लोगों से हमारा व्यवहार अमानवीय और नकारात्मक है, तो अंतत: सब कुछ निरर्थक साबित होता है। महात्मा गांधी का यह कथन बिल्कुल प्रासंगिक है, ‘मानवता की महानता मानव होने में नहीं है, बल्कि मानवीय होने में है।’
दरअसल, अच्छा और कुशल व्यवहार हमारे जीवन का आईना होता है। तथ्य, तर्क और संयम इसके साथी होते हैं। वस्तुत: हमारे आचरण से हमारे संस्कार का दर्शन होता है। हमारे व्यवहार से ही घर-बाहर हमारी अच्छी या बुरी छवि बनती है। चाणक्य तो कहते हैं कि अच्छे व्यवहार से दुश्मन तक को जीता जा सकता है। इतिहास के पन्नों में ऐसी हजारों घटनाएं मोटे अक्षरों में दर्ज हैं। कहने का अभिप्राय यह कि श्रेष्ठ पुरुष को सदैव अपने पद और गरिमा के अनुसार ही व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि वह जिस प्रकार का व्यवहार करेगा, आम लोग भी उसी का अनुसरण करेंगे। वे अच्छा आचरण करेंगे,तो उनके सहकर्मी के साथसाथ अधीनस्थ कर्मी भी अच्छे आचरण को प्रेरित होंगे, जिससे व्यक्ति, समाज, देश और अंतत: विश्व का कल्याण होगा। इसी कारण हम पाते हैं कि बड़े पदों पर बैठे जो भी अच्छे एवं सच्चे लोग हैं, उनका व्यवहार बहुत ही शालीन और हृदयस्पर्शी होता है। वे मूलत: ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ तथा ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ के सिद्धांत पर चलते हैं। इसके परिणामस्वरूप वे दूसरों की तुलना में ज्यादा परफॉर्मिंग, सरल, सामाजिक, मिलनसार एवं लोकप्रिय होते हैं।
(लेखक मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस कंसल्टेंट हैं।)
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