शुभांशु शुक्ला के साथ अंतरिक्ष में जाने वाले थे जलीय भालू, लिक्विड ऑक्सीजन लीक के चलते Axiom-4 मिशन टला
स्पेसएक्स ने Axiom-4 मिशन को स्टैटिक फायर परीक्षण के बाद बूस्टर की जांच के दौरान लिक्विड ऑक्सीजन (LOx) रिसाव के चलते टाल दिया है। इस मिशन में इंडियन एयरफोर्स के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला के साथ अन्य साइंटिस्ट एवं जलीय भालू (Tardigrades) भी जा रहे थे। मिशन की नई डेट फाल्कन 9 रॉकेट की मरम्मत के बाद घोषित होगी।

एजुकेशन डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला को 11 जून 2025 शाम 5 बजे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) के लिए उड़ान भरनी थी लेकिन इस मिशन को अब स्पेसएक्स ने टाल दिया है। spacex ने Axiom-4 मिशन को 'स्टैटिक फायर' परीक्षण के बाद बूस्टर की जांच के दौरान लिक्विड ऑक्सीजन (LOx) रिसाव के चलते स्थगित किया है। इसके साथ ही स्पेसएक्स की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक नई डेट की घोषणा मरम्मत कार्य पूरा होने और रेंज के अनुसार तय की जाएगी।
शुभांशु शुक्ला के साथ कौन जा रहा ISS
एक्सिओम-4 मिशन में भारत के शुभांशु शुक्ल के साथ क्रू में पोलैंड और हंगरी के अंतरिक्ष यात्री भी शामिल हैं। इन सबके अलावा इन सबके साथ जलीय भालू यानी कि Tardigrades भी साथ जाने वाला है। अगर आप जानना चाहते हैं कि जलीय भालू अंतरिक्ष में क्या करने वाला था तो इसकी पूरी डिटेल यहां से चेक कर सकते हैं।
जलीय भालू को अंतरिक्ष में ले जाने का क्या है मकसद
Axiom-4 मिशन के जरिये अंतरिक्ष यात्रियों के साथ जलीय भालू (टार्डिग्रेड्स) को भी स्पेस स्टेशन पर भेजा जाना है। जलीय भालू बेहद सूक्ष्म होते हैं जो 0.5 मिमी से 2 मिमी तक हो सकते हैं। इन्हें अंतरिक्ष ले जाने का मकसद सर्वाइवर लेवल का पता लगाना है। चूंकि आठ पैरों वाले टार्डिग्रेड्स किसी भी परिस्थिति में खुद को जिंदा बचाए रखने में सक्षम है। भीषण ठंड हो या खौलते पानी जितना तापमान ये खुद को बचा सकते हैं। इसके साथ ही ये रेडिएशन से बच सकते हैं। ऐसे में यह एकमात्र जीव हैं जो अंतरिक्ष में भी जीवित रह सकते हैं।
टार्डिग्रेड्स वैक्यूम में रह सकता है जिन्दा
टार्डिग्रेड्स हर जगह पाए जाते हैं। यह वैक्यूम में भी जिंदा रह सकते हैं। स्पेस स्टेशन में इन्हें खास तरह के बायोकल्चर सिस्टम में रखा जाएगा। सबसे खास बात यह है कि शरीर से पानी निकालकर ऐसी अवस्था में चले जाते हैं। जिससे उनका मेटाबॉलिज्म लगभग बंद हो जाता है। इस प्रक्रिया को क्रिप्टो बायोसिस कहते हैं। इससे उनकी एनर्जी बची रहती है और यह किसी भी परिस्थिति में खुद को बचाने में कामयाब हो जाते हैं।
पहले भी हो चुका टार्डिग्रेड का उपयोग
अंतरिक्ष मिशन में पहले भी टार्डिग्रेड का उपयोग हो चुका है। इससे साइंटिस्ट यह पता करना चाहते हैं कि कैसे इंसानों को भी हर परिस्थितियों के लिए लचीला बनाया जा सकता है। जलीय भालू के जरिये वैज्ञानिक धरती से ही उनके जीने लायक पर्यावरण की निगरानी कर सकेंगे। इससे पहले 2007 में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने एक मिशन में रूसी कैप्सूल से 3 हजार टार्डिग्रेड्स को 10 दिनों के लिए अंतरिक्ष में रखा गया था। टार्डिग्रेड्स को 2 हजार किमी से कम ऊंचाई में छोड़ दिया गया था फिर भी दो तिहाई से अधिक टार्डिग्रेड बच गए और पृथ्वी में लौटने पर उन्होंने प्रजनन भी किया।
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