Gina Miller: कैंसर और राजनीतिक हिंसा का शिकार, ब्रेक्जिट को कोर्ट में चुनौती, 800 साल पुराने इतिहास को बदलकर अब कैम्ब्रिज को नई दिशा देना चाहती हैं
जिना मिलर न केवल ब्रिटिश में बदलावों की धरोहर हैं बल्कि वह एक व्यवसायी कार्यकर्ता एक अच्छी मां व बेटी के साथ-साथ लेखक भी हैं। कैंसर जैसी बीमारी को चुनौती देकर वह कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में महिला चांसलर बनने की दावेदारी में सबसे ऊपर हैं। हालांकि यह सफलता उन्हें इतनी आसानी से नहीं मिली है। पढ़िए जिना मिलर के बारे में...

एजुकेशन डेस्क, नई दिल्ली: कैंसर और ब्रिटेन की संवैधानिक लड़ाइयां जीतने से लेकर, सामूहिक दुष्कर्म झेलने तक जिना मिलर ने हर लड़ाई का सामना बड़ी ही बहादुरी से किया। जिना मिलर अब कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के इतिहास में पहली बार महिला चांसलर बनने की दौड़ में भी अपना नाम शुमार कर चुकी हैं। उन्होंने अपने जीवन में कई विषम परिस्थितियों का सामना बड़ी ही बहादुरी से किया। हालांकि कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में महिला चांसलर बनने की दावेदारी में शामिल होने का सौभाग्य उन्हें रातोंरात नहीं मिला है। इसके पीछे असहनीय पीड़ा और कई सालों का संघर्ष भी है।
कौन हैं, जिना मिलर
जिना मिलर एक सफल व्यवसायी और कार्यकर्ता हैं। उनका जन्म ब्रिटिश गयाना में हुआ था, जिसके बाद उनका परिवार ब्रिटेन में बस गया। जिना मिलर ने भारत की पुणे यूनिवर्सिटी से लेकर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में भी पढ़ाई की है। जिना 30 सालों से एक अभियानकर्ता भी हैं।
ब्रेक्जिट की जंग से आई सुर्खियों में
जिना मिलर सफल व्यवसायी के रूप में तो जानी जाती ही हैं, लेकिन वह तब अधिक सुर्खियों में आई जब उन्होंने साल 2016 में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कोर्ट में चुनौती दी। दरअसल ब्रिटिश सरकार ने बगैर संसद की मंजूरी के ब्रेक्सिट लागू करने का फैसला किया। ऐसे में जिना ने ब्रिटिश सरकार के फैसले को अदालत में चुनौती और तर्क दिया कि इस अहम फैसले में संसद की मंजूरी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने जिना के पक्ष में फैसला सुनाया। जिना अब अदालती लड़ाई तो जीत चुकी थी, लेकिन इन सब के बाद उन्हें राजनीतिक हिंसा का सामना करना पड़ा और धमकियां भी मिली, लेकिन जिना निडर होकर खड़ी रही।
कैंसर ने भी नहीं तोड़ी हिम्मत
मिलर बताती हैं कि जब वह साल 2023 में ब्रेस्ट कैंसर की बीमारी से जूझ रही थी, तभी कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के कुछ प्रोफेसरों का एक समूह मेरे पास आया और उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या आप कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में चांसलर के पद पर चुनाव लड़ना चाहती हैं। हालांकि पहले तो जिना ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया, क्योंकि उन्हें लगता था कि यह पद केवल कैम्ब्रिज के पूर्व छात्रों के लिए है, लेकिन बाद में उन्हें पता चला कि चांसलर के पद पर केवल पूर्व छात्र ही चुनावी दावेदारी में शामिल हो यह जरूरी नहीं है। लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने एक बार फिर इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। लेकिन जब उन्हें यह पता चला कि एक चांसलर भी प्रशासनिक कार्यों में हिस्सा ले सकता है, तो उन्होंने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और कैंसर से जूझते हुए इस दावेदारी में शामिल हो गई।
पिता को मानती हैं प्रेरणा
जिना बताती हैं कि मेरे जीवन में शिक्षा ही एक ऐसा हथियार है, जिसने मुझे हमेशा जीवित रखने में मदद की। जिना मिलर अपने पिता दूदनाथ सिंह को अपनी सबसे बड़ी प्रेरणा मानती है। वह कहती है कि उनके पिता गुयाना में एक पेट्रोल पंप अटेंडेंट के रूप में दिन में काम करते थे और रात को नाइट स्कूल में कानून की पढ़ाई भी करते थे। जिसके बाद वह देश के अटॉर्नी जनरल बने।
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