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    फिर वही वादा, अच्छा होता कि समान नागरिक संहिता को लेकर कोई मसौदा पेश कर दिया जाता

    By Jagran NewsEdited By: Praveen Prasad Singh
    Updated: Tue, 02 May 2023 12:37 AM (IST)

    समान नागरिक संहिता लागू करना भाजपा का पुराना संकल्प है लेकिन उसे पूरा करने के मामले में अभी तक न तो केंद्र सरकार के स्तर पर कोई ठोस पहल हुई है और न ही भाजपा शासित राज्य सरकारों की ओर से।

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    समान नागरिक संहिता केवल इसलिए लागू नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि संविधान निर्माताओं ने ऐसी अपेक्षा व्यक्त की थी।

    कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए अपना घोषणापत्र जारी करते हुए भाजपा ने समान नागरिक संहिता के साथ एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर लागू करने का जो वादा किया, वह इसलिए देश का ध्यान आकर्षित करने वाला है, क्योंकि इन दोनों विषयों पर पहले ही व्यापक बहस हो चुकी है और अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका है।

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    कर्नाटक के पहले भाजपा उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनावों के अवसर पर भी जारी अपने घोषणापत्रों में समान नागरिक संहिता लागू करने का वादा कर चुकी है। इन तीनों राज्यों में से वह उत्तराखंड और गुजरात में जीत हासिल करने में सफल रही, लेकिन अभी कहीं पर भी समान नागरिक संहिता की दिशा में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हो सकी है। अभी तक न तो उत्तराखंड और न ही गुजरात सरकार प्रस्तावित समान नागरिक संहिता का मसौदा प्रस्तुत कर सकी है।

    समान नागरिक संहिता लागू करना भाजपा का पुराना संकल्प है, लेकिन उसे पूरा करने के मामले में अभी तक न तो केंद्र सरकार के स्तर पर कोई ठोस पहल हुई है और न ही भाजपा शासित राज्य सरकारों की ओर से। यदि केंद्रीय सत्ता संग भाजपा शासित राज्य सरकारें समान नागरिक संहिता को लेकर वास्तव में संकल्पबद्ध हैं तो उन्हें इस दिशा में आगे बढ़ते हुए दिखना चाहिए।

    अच्छा तो यह होता कि अब तक समान नागरिक संहिता को लेकर कोई मसौदा देश की जनता के विचारार्थ पेश कर दिया जाता। इससे एक तो आम लोगों को समान नागरिक संहिता का रूप-स्वरूप समझ आता और दूसरे, उन तत्वों के दुष्प्रचार की काट होती, जो इस संहिता को लेकर हौवा खड़ा करते रहते हैं। यह हौवा इसके बाद भी खड़ा किया जाता है कि गोवा में समान नागरिक संहिता न जाने कब से लागू है। समझना कठिन है कि जब गोवा में समान नागरिक संहिता लागू हो सकती है और उससे किसी समुदाय को परेशानी नहीं तो फिर वह अन्य राज्यों और यहां तक कि संपूर्ण देश में लागू क्यों नहीं हो सकती?

    समान नागरिक संहिता को लागू करने में देरी का औचित्य इसलिए नहीं, क्योंकि विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और विरासत संबंधी अधिकारों को एक जैसा करने की आवश्यकता जताई जा रही है। इस आवश्यकता की पूर्ति सही तरीके से हो सकती है तो समान नागरिक संहिता के माध्यम से। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कई उच्च न्यायालयों के साथ सर्वोच्च न्यायालय भी समान नागरिक संहिता लागू करने की जरूरत जता चुका है। समान नागरिक संहिता केवल इसलिए लागू नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि संविधान निर्माताओं ने ऐसी अपेक्षा व्यक्त की थी। इसे इसलिए भी लागू किया जाना चाहिए, क्योंकि यह राष्ट्रीय एकता को बल प्रदान करने के साथ हर क्षेत्र, जाति और पंथ के लोगों के बीच इस भावना का संचार करेगी कि उन सबके अधिकार एक जैसे हैं।

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