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    Jaipur Rugs: 44 वर्ष पहले 5000 रुपये से शुरू हुई कंपनी, आज 750 करोड़ का है टर्नओवर; 75 देशों में फैला कारोबार

    By Amit SinghEdited By:
    Updated: Fri, 22 Jul 2022 05:57 PM (IST)

    Jaipur Rugs आज 75 से ज्यादा देशों में कार्पेट एक्सपोर्ट कर रही है। इटली रूस चीन के अलावा भारत के कई बड़े शहरों में इसके स्टोर्स हैं। दुनिया के शीर्ष डिजाइनर कंपनी से जुड़े हैं। शुरूआत में इसका नाम जयपुर कार्पेट था।

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    Jaipur Rugs: उद्यमी से परिवार और रिश्तेदारों ने मुंह मोड़ लिया, बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।

    अंशु सिंह। चार दशक पहले 1978 में जयपुर रग्स की यात्रा शुरू हुई थी। नंद किशोर चौधरी ने ग्रेजुएशन के बाद अपने पिता से पांच हजार रुपये उधार लेकर इस कारोबार की नींव रखी थी। आज यह 750 करोड़ रुपये से ऊपर टर्नओवर वाला ग्रुप बन चुका है। 75 से अधिक देशों में इनके कारपेट एक्सपोर्ट किए जा रहे हैं। इटली, रूस (फ्रेंचाइजी), चीन के अलावा मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, जयपुर, अहमदाबाद, कानपुर एवं हैदराबाद में स्टोर्स हैं। दुनिया के शीर्ष डिजाइनर्स के साथ टाइअप कर डिजाइन तैयार किए जाते हैं। कंपनी के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक नंद किशोर चौधरी के अनुसार, उद्यमिता की यह पूरी यात्रा अदम्य इच्छाशक्ति, प्रेम, करुणा एवं धैर्य की कहानियों से भरी पड़ी है। वह कहते हैं कि हम तब तक सफल उद्यमी नहीं बन सकते, जब तक कि हम असफलता का सामना करने के लिए तैयार न हों।

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    सरकारी बैंक नौकरी ठुकरा, पिता के जूतों के बिजनेस में किया सहयोग

    ग्रेजुएशन के बाद नंद किशोर ने सरकारी बैंक की नौकरी को ठुकराकर पहले पिता के साथ जूतों के उनके पारिवारिक बिजनेस में हाथ बंटाना शुरू किया। लेकिन वहां अधिक गुंजाइश न देख खुद का कुछ नया करने का मन बनाया। पिता से कुछ पैसे उधार लेकर दो लूम खरीदे और नौ बुनकरों को साथ लेकर कारपेट का बिजनेस शुरू किया। वह बताते हैं, ‘उस दौर में जाति प्रथा बहुत हावी थी। चूंकि मैं हरिजनों के साथ काम करता था, उनके साथ भोजन आदि भी कर लेता था, इसलिए परिवारवालों एवं रिश्तेदारों ने मुझसे एक तरह से संबंध विच्छेद कर लिया था। सामाजिक आयोजनों में आमंत्रित नहीं किया जाता था। लेकिन उनके तानों एवं आलोचनाओं के बावजूद मैं काम करता रहा। मैं इस बात को कभी स्वीकार नहीं कर पाया कि जो बुनकर इतने सुंदर कालीन बुन सकते हैं, वे केवल अपनी जाति के कारण बुरे दिल के कैसे हो सकते हैं? क्यों नहीं किसी व्यक्ति को उसके अच्छे कामों की वजह से पहचाना जाए? नंदकिशोर पहले कुछ निर्माताओं के साथ मिलकर काम कर रहे थे, फिर सीधे अमेरिका एक्सपोर्ट करना शुरू कर दिया। तब कंपनी का नाम ‘जयपुर कारपेट’ था। 2003 में इसे ‘जयपुर रग्स’ का नाम दिया गया।

    तय कर लिया था बिजनेस करना है

    राजस्थान के चुरू जिले में एक पारंपरिक एवं रूढ़िवादी मारवाड़ी परिवार में जन्मे नंदकिशोर का बचपन सामान्य रहा। लेकिन छोटी उम्र से ही उनके अंदर उद्यमिता के बीज पड़ गए थे। 1970 में बागला सीनियर सेकंडरी स्कूल से हाईस्कूल करने के बाद उन्होंने लोहिया कालेज से कामर्स में स्नातक किया। वह बताते हैं, ‘मैं कभी भी नौ से पांच की नौकरी नहीं करना चाहता था। शुरू से ही सोच स्पष्ट था कि अपना बिजनेस करना है, जिसका आधार आपसी भाईचारा, करुणा एवं दया हो। पहले दिन से मन में यह तय कर लिया था कि ग्रामीण बुनकरों को सप्लाई चेन का प्रमुख हिस्सा बनाऊंगा। उन्हें आत्मनिर्भर, सशक्त बनाने के साथ पूरी दुनिया को उनके हुनर से अवगत कराऊंगा। एक किस्सा याद आता है जब हमारे कारपेट के पहले खरीदार जयपुर स्थित एक एक्सपोर्टर बुनकरों के काम को देखकर हैरान हो गए थे।'

    नौ बुनकरों और दो लूम के साथ हुई थी शुरुआत

    नंदकिशोर बुनकरों के साथ काफी समय बिताते थे। उनसे बुनाई सीखते थे, जिससे उनकी बुनाई की पूरी प्रक्रिया में गहरी दिलचस्पी उत्पन्न हो गई। उन्होंने बताया कि दो साल के अंदर ही उनके कारोबार में तेजी आ गई। दो के बजाय वह छह लूम से काम करने लगे। एक्सपोर्टर्स के साथ तो काम कर रहे थे, लेकिन उन्हें लगा कि बिजनेस को विस्तार देने के लिए कुछ और भी करना होगा। नंदकिशोर ने आसपास के कुछ अन्य गांवों में दो से तीन लूम इंस्टाल करने शुरू कर दिए। इससे बुनकरों का एक नेटवर्क तैयार होने लगा। जयपुर से निकलकर वे जोधपुर तक पहुंच गए और आठ साल के अंदर पूरे राजस्थान में अपनी पहुंच बना ली। आज वह पांच राज्यों के 600 से अधिक गांवों के 40 हजार से अधिक बुनकरों के साथ काम कर रहे हैं, जिनमें 85 प्रतिशत महिलाएं हैं। वह बताते हैं, बुनकरों के कौशल विकास के लिए हम कई तरह के कार्यक्रम चला रहे हैं, जैसे ट्रेनिंग एवं अपस्किलिंग च्‍वाइसेज, हुनरशाला, सोशल इनोवेशन लैब, आर्टिजन इंगेजमेंट प्रोग्राम आदि।

    महिला बुनकरों के सशक्तीकरण पर जोर

    देश तरक्की कर रहा है, लेकिन गांवों की तस्वीर अब भी ज्यादा नहीं बदली है। वहां की आबादी गरीबी के कुचक्र में फंसी हुई है। इसके कई कारण हैं। गांवों में रोजगार के अवसर सीमित हैं। इससे लोग वहां से बड़े शहरों की ओर पलायन करते हैं। इस चक्र को रोकने के इरादे से ही नंदकिशोर ने एचसीएल फाउंडेशन के साथ हाथ मिलाया है। इसके तहत वह उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले की 608 महिलाओं का कौशल विकास कर रहे हैं। उन्हें कालीन की बुनाई का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। बताते हैं नंदकिशोर, जयपुर रग्स में हम महिला बुनकरों को कच्चा माल उपलब्ध कराते हैं। वे अपने घर में रहते हुए ही कारपेट तैयार करती हैं, ताकि काम के साथ परिवार की जिम्मेदारी भी संभाल सकें। हमने राजस्थान, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश एवं गुजरात के बुनकरों के घरों में लूम स्थापित किए हैं। उनके द्वारा कारपेट तैयार किए जाने के बाद वह 18 फिनिशिंग स्टेप्स से गुजरता है, जैसे माप लेना, नाट की गिनती, पाइल की ऊंचाई मापना, रफू, रिपेयरिंग, ठुकाई, नाट बीटिंग, कच्ची कैंची, सुआ बुराई, धुलाई आदि। हाथ से होने वाली इन सभी प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद करीब एक महीना और लगता है फाइनल प्रोडक्ट तैयार करने में।

    वैश्विक बाजार में दर्ज कराई उपस्थिति

    ‘जयपुर रग्स’ को लेकर एक दिलचस्प बात यह भी है कि 2016 में इसकी भारत में बिक्री शुरू हुई। लेकिन इससे कई वर्ष पहले विदेश में कारपेट का एक्सपोर्ट शुरू हो चुका था। नंदकिशोर बताते हैं, ‘राजस्थान में विदेशी पर्यटकों का काफी आना होता था। उन्हें हमारे कारपेट पसंद आते थे। हमें लगा कि क्यों न विदेशों में ही इसकी सप्लाई की जाए। फिर हमने वैश्विक बाजार में इसका निर्यात शुरू कर दिया। आज हम अमेरिका, जर्मनी, कनाडा, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, यूएई, दक्षिण अफ्रीका, फ्रांस, इटली, चीन एवं ब्राजील में कारपेट का आयात कर रहे हैं। अमेरिका में ‘जयपुर लिविंग’ के नाम से हमारा ब्रांच आफिस भी है। पूरा बिजनेस परिवार के सदस्य ही संभाल रहे हैं। जैसा कि आज टेक्नोलाजी का दौर है, तो इसमें भी हम पीछे नहीं हैं। हमने ‘ताना बाना’ नाम से एक एप लांच किया है, जिससे बुनकर सीधे तौर पर कंपनी से जुड़ सकते हैं। वे अपने काम का अपडेट दे सकते हैं। कच्चे माल को लेकर अपनी जरूरतों की जानकारी दे सकते हैं। इससे कंपनी को भी काम की प्रगति का अपडेट मिलता रहता है। हमारी एक ई-कामर्स टीम भी है, जो आनलाइन ग्राहकों का ध्यान रखती है।'

    बुनकर समुदाय के उत्थान को मानते हैं अपनी सफलता

    नंदकिशोर ने नये उद्यमियों की पूरी एक पीढ़ी को बढ़ते हुए देखा है। वह समझते हैं कि कैसे छोटी से नाकामी से लोग हार मान बैठते हैं। नये उद्यमियों को वह सलाह एवं चेतावनी देते हुए कहते हैं, ‘उद्यमिता के सफर का एक अहम हिस्सा होती है नाकामी। उससे घबराना नहीं चाहिए। हां, हर मोड़ पर अपने फैसलों की समीक्षा जरूर करनी चाहिए। जो सबक मिलते हैं, उसकी मदद से आगे बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए। मेरे बिजनेस करने का एक ही उद्देश्य रहा है। मैं वर्षों पुरानी उन परंपराओं को तोड़ना चाहता हूं जिसने महिलाओं, गरीबों एवं कारीगरों की कद्र नहीं की। उनकी काबिलियत को नजरअंदाज किया। आज इस समुदाय के लिए जो भी कर पाया हूं, वही मेरी सबसे बड़ी सफलता है।' नंदकिशोर कहते हैं कि जैसे-जैसे समय बदलता है, वैसे-वैसे उद्यमियों को समझना होता है कि उनके नेतृत्व में किस तरह का बदलाव आना चाहिए। उन्हें संगठन में नये सिरे से निवेश करने की भी जरूरत पड़ सकती है। इसलिए मैं हमेशा सभी उद्यमियों को यही कहता हूं कि निरंतर सीखने और ग्रहण करने का प्रयास करते रहें। अपने कौशल को बढ़ाते रहें।