ITI: इंटर्नशिप पर जोर देने सहित देश भर के आईटीआई संस्थानों में इन बड़े बदलावों की जरूरत, पढ़ें फुल डिटेल
ITI उद्योगों के साथ समझौता करके उनकी आवश्यकता के अनुसार अलग-अलग ट्रेड के प्रशिक्षणार्थियों को आखिरी छह महीने में अनिवार्य रूप से उनके यहां भेजा जाना च ...और पढ़ें

देश में बड़ी संख्या में संचालित आइटीआइ युवाओं को कौशलयुक्त और रोजगार सक्षम बनाने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं, पर इसके लिए उन्हें बदलते समय के अनुसार अपग्रेड करना कितना जरूरी है,चर्चा कर रहे हैं अरुण श्रीवास्तव...
पिछले दिनों नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में देशभर में चल रहे आइटीआइ (सरकारी व निजी दोनों) की निष्क्रियता का जो आईना दिखाया है, वह केंद्र के साथ-साथ राज्यों के लिए भी बड़ी चिंता का विषय होना चाहिए। एक तरफ जहां हम देश की युवा शक्ति पर गर्व करते रहते हैं, वहीं दूसरी तरफ संसाधन होने के बावजूद इच्छाशक्ति न होने से बदलते समय के अनुसार अपने युवाओं को आवश्यक कौशल से लैस नहीं कर पा रहे हैं। कहने को तो देशभर में सरकारी और निजी आइटीआइ संचालित हो रहे हैं, लेकिन क्या केंद्र या राज्य सरकारों ने कभी यह देखने जानने की जहमत उठाई है कि वहां शिक्षित प्रशिक्षित हो रहे युवाओं को सरकारी या निजी उद्योगों में आसानी से काम मिल पा रहा है या नहीं? इस बारे में नीति आयोग की रिपोर्ट स्पष्ट रूप से आंखें खोलने वाली है, जो बताती है कि देशभर के आइटीआइ की प्लेसमेंट दर 0.1 प्रतिशत से भी कम है।
ये हैं महत्वपूर्ण फैक्ट्स
14,789 आइटीआइ (औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान) हैं भारत सरकार के प्रशिक्षण महानिदेशालय (डीजीटी) से संबद्ध। 3,194 सरकारी और 11,595 निजी आइटीआइ हो रहे हैं संचालित।
-0.1 प्रतिशत से भी कम है देशभर के आइटीआइ की औसत प्लेसमेंट दर।
-राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर संचालित कौशल विकास योजनाओं और संबंधित संस्थानों (जैसे प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, राष्ट्रीय कौशल विकास निगम) के आपसी समन्वय और समुचित निगरानी तंत्र की व्यवस्था करके देश के आइटीआइ को कुशल मानव संसाधन उपलब्ध कराने वाले सबसे बड़े स्रोत में बदला जा सकता है।
-आइटीआइ से उद्योगों को सीधे तौर पर जोड़ कर उनकी आवश्यकता के अनुसार पर्याप्त कौशलयुक्त युवा उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की उपलब्धि हासिल कर लेने के बावजूद देश को विकास के रास्ते पर त्वरित गति से बढ़ाने के लिए केंद्र और राज्यों के स्तर पर उद्योगों को प्रोत्साहित करने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं, पर क्या किसी ने इस बात पर विचार किया है कि आखिर बड़ी संख्या में और लगातार कुशल कर्मियों की आवश्यकता होने के बावजूद हमारे उद्यमी क्यों आइटीआइ से प्रशिक्षित युवाओं अपने काम का न होना बताकर उन्हें नौकरी देने से परहेज करते हैं?
बड़े बदलाव की जरूरत : इतने बड़े पैमाने पर संचालित आइटीआइ देश के उद्योगों और अंतत: अर्थव्यस्था को गति देने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन इसके लिए इन औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में बड़े बदलाव करने होंगे। खानापूरी के रूप में इन संस्थानों को चलाने के बजाय उद्योगों की बदलती आवश्यकता और तकनीकी माड्यूल को समझते हुए इन्हें प्राथमिकता के आधार पर इस तरह से अपग्रेड करना होगा, ताकि यहां से निकलने वाले कौशलयुक्त युवाओं को उद्योग हाथोंहाथ लें। यहां तक कि औद्योगिक संस्थान प्लेसमेंट के लिए यहां सबसे पहले पहुंचें।
जुड़ें और जोड़ें उद्योगों से : वर्तमान और भविष्य की जरूरतों के अनुसार पाठ्यक्रम में आवश्यक बदलाव के साथ उद्योगों को इन संस्थानों से सीधे जोड़ने का भी उपक्रम व्यावहारिक रूप से काफी उपयोगी हो सकता है। इसके लिए या तो इंडस्ट्री को इस बात के लिए प्रेरित किया जा सकता है कि वह अपनी क्षमता के अनुसार एक या अनेक आइटीआइ को गोद लेकर वहां अपने विशेषज्ञों/इंजीनियरों की देखरेख में प्रशिक्षण कोर्स संचालित कराए। इससे आने वाले दिनों में कई लाभ होते दिखाई दे सकते हैं। कोर्स कर रहे छात्रों को उद्योगों की कसौटी पर व्यावहारिक रूप से सीखने का मौका मिलेगा और पूर्ण रूप से कौशलयुक्त होने के बाद वही उद्योग अपने यहां उन्हें काम पर रखने को प्राथमिकता देगा।
इससे न सिर्फ उन युवाओं का आत्मविश्वास बढ़ेगा, बल्कि अन्य युवा भी ऐसी आइटीआइ से कोर्स करने में रुचि लेंगे। गोद न ले पाने की स्थिति में उद्योगों को नियमित रूप से अपने विशेषज्ञ इन संस्थानों में विजिटिंग फैकल्टी के रूप में भेजने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। इससे प्रशिक्षणार्थियों को तो फायदा होगा ही, नियमित अध्यापकों को भी नयी तकनीक से अवगत होने का मौका मिलेगा। इसके अलावा, प्रशिक्षणरत विद्यार्थियों को बुनियादी सैद्धांतिक पढ़ाई के बाद शुरुआत से ही अलग-अलग उद्योगों में नियमित रूप से भेजा जाना चाहिए, ताकि वे वहां की कार्यपद्धति को करीब से देख और सीख सकें।
इंटर्नशिप पर हो जोर : उद्योगों के साथ समझौता करके उनकी आवश्यकता के अनुसार अलग-अलग ट्रेड के प्रशिक्षणार्थियों को आखिरी छह महीने में अनिवार्य रूप से उनके यहां भेजा जाना चाहिए। इससे उन्हें वहां उत्पाद तैयार करने, विपणन, प्रबंधन, रखरखाव आदि की पूर्ण व्यावहारिक जानकारी मिल सकेगी और वे कोर्स समाप्त होते ही उद्योगों के लिए पहले दिन से ही रेडी टु वर्क मानव बल के रूप में तैयार हो सकेंगे।

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