किसी दशहरे पर नहीं हुआ समाज में फैले इन रावणों का दहन
ऐसी ही जीत का इंतजार हमारे समाज को भी है जो उन बुराई को मात देने का सुनहरा अवसर तलाश रहा है जिन्होंने ना जाने कितनी महिलाओं की जिंदगियो को बर्बाद किया है।
हम हर साल दशहरे पर रावण का पुतला जलाते हैं और बुराई पर अच्छाई की जीत के साक्षी बनते है। ये जीत हमे संदेश देती है कि बुराई चाहे कितनी ताकतवर क्यों ना हो जीत हमेशा अच्छाई की ही होती है। ऐसी ही जीत का इंतजार हमारे समाज को भी है जो उन बुराई को मात देने का सुनहरा अवसर तलाश रहा है जिन्होंने ना जाने कितनी महिलाओं की जिंदगियो को बर्बाद किया है। हम 21 वीं सदी में जी रहे हैं एक ऐसे युग में जहां पुरुषों और महिलाओं को अब दुनिया में समान अधिकार और स्वतंत्रता दी जाती है।लेकिन आज भी भारत में महिलाओं को वो दर्जा नहीं मिला है जिसकी वो असल में हकदार हैं। जानते है उन बुराइयों के बारे में जो रावण बनकर ना जाने कितनी महिलाओं की जिंदगी को बर्बाद करती है।
इन सवालो को आज भी असली जवाबों का इंतजार है
क्यों लड़कियों छोड़ देती है स्कूल ?
अगर किसी देश में महिला साक्षरता दर कम है तो उस देश की विकास दर सुस्त होगी क्योंकि एक औरत के शिक्षित ना होने का प्रभाव परिवार के हर सदस्य पर पड़ता है। भारत में राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार में महिलाओं की साक्षरता दर सबसे कम है। सैम्पल रजिस्ट्रेशन सिस्टम बेसलाइन सर्वे 2014 की रिपोर्ट के अनुसार 15 से 17 साल की लगभग 16 प्रतिशत लड़कियां स्कूल बीच में ही छोड़ देती हैं।
क्यों सबसे ज्यादा महिलाएं होती है घरेलू हिंसा की शिकार ?
महिलाओं के खिलाफ हिंसा भारत में अत्यधिक प्रचलित है। भारत में लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हैं।राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, तीन विवाहित किशोरियों में से एक को अपने पति से शारीरिक हिंसा का अनुभव प्राप्त होता है। 15-49 आयु वर्ग की 83,000 महिलाओं पर किए गए सर्वेक्षण से पता चला है कि 34% महिलाओं को शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ा था। वहीं थप्पड़ मारना ,घर मे बन्द रखना के अलावा, लगभग 15% भावनात्मक और 9% यौन हिंसा का अनुभव किया है।
कब खत्म होगी कन्या भूर्ण हत्या?
हमारे समाज की पितृसत्तात्मक प्रकृति ने सदियो इस बुराई को आज भी जिंदा रख रखा है। इंडिया टुडे की रिपोर्ट की मुताबिक कन्या भ्रूण हत्या के लगभग 2,500 मामले राजस्थान में होते हैं। यह महिलाओं के रहने के लिए एक भयावह स्थिति है। कई दाइयों का कहना है कि लड़कियों को बेरहमी से निपटाया जा रहा है। इस भयानक अपराध मे डॉक्टरों शामिल हो रहे हैं।
कब वेश्यावृत्ति मासूम बच्चों का जीवन जलाना बंद करेगी ?
जर्मनी जैसे कुछ देशों में, वेश्यावृत्ति कानूनी है, लेकिन भारत में वेश्यालय चलाना एक अपराध है।बाल वेश्यावृत्ति भारत में एक बड़ी समस्या है। समय - समय पर इसके कानूनी मान्यता को लेकर चर्चायें गर्म होती रहती हैं। लेकिन बगैर कानूनी मान्यता के भी पूरे देश में यह कारोबार धरल्ले से चल रहा है। एक अनुमान के मुताबिक करीब 12 लाख बच्चे इस दलदल में फंसे हुए हैं। 1997 में यौनकर्मियों की संख्या 20 लाख थी जो 2003-04 तक बढ़कर 30 लाख हो गई। 2006 में महिला और बाल विकास विभाग द्वारा तैयार रिपोर्ट में यह भी पाया गया था कि देश में 90 फीसदी यौनकर्मियों की उम्र 15 से 35 साल के बीच है।
कब खत्म होगी ये दहेज प्रथा?
विवाह के अवसर पर कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को दी जाने वाली धन, सम्पत्ति और सामान इत्यादि को ‘दहेज’ कहा जाता है। वर पक्ष विवाह तय करने से पूर्व ही कन्या पक्ष से दहेज में दी जाने वाली राशि एवं सामान के विषय में मांग करता है और मिलने का आश्वासन प्राप्त होने पर ही विवाह पक्का होता है। 2011 में दहेज के नाम पर 8618 महिलाओं की हत्या की गई। 2012 में 8233, 2013 में 8083 और 2014 में 8455। शर्मनाक है कि दहेज के लिए हत्या वे करते हैं, जो शादी के बाद लड़की के परिजन हो जाते हैं। यह हत्या सिर्फ रिश्तों और विश्वास की नहीं, विवाह जैसे सांस्कृतिक विधान को भी नकारने जैसा है। दहेज हत्याओं की बढ़ती संख्या ज्यादा चिंताजनक है। 2000 में दहेज के लिए 6996 हत्याएं हुर्इं। 2011 में इनकी संख्या 8618 हो गई। 2014 में यह आंकड़ा 8455 पर रहने से साबित हो जाता है कि लोगों में पहले जैसा लालच कायम है।
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