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    क्यों होता है प्यार

    By Edited By:
    Updated: Fri, 10 Feb 2012 10:43 PM (IST)

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    प्यार क्या होता है.. क्यों होता है.. कैसे होता है.. सदियों से लिखी जा रही प्रेम कथाओं में भी इन सवालों का जवाब नहीं मिल सका, क्योंकि हर एक के लिए प्यार की परिभाषा, उसका वजूद और उसका महत्व अलग होता है। प्यार के इस मौसम में इसके कारणों पर एक नजर

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    प्यार एक बड़ा ही पेचीदा विषय है। इस गुत्थी को जब भी किसी ने सुलझाने की कोशिश की, वह और भी उलझा नजर आया। शुरुआत के लिए अगर आपको यह जवाब मिल भी जाए कि प्यार क्या होता है तो इसके कारणों पर आकर बात हमेशा रुक जाती है। प्यार, जिस पर दुनिया टिकी है, उसका आधार ही कई बार एक पहेली सा नजर आता है। एक शायर से पूछिए तो प्यार उसके अशआरों में नजर आता है, लेकिन डॉक्टर के लिए प्यार एक केमिकल लोचा है। लॉजिक बहुत सारे हैं। कुछ एक का जिक्र आपके लिए..।

    उर्दू के मशहूर शायर अहमद फराज अब नहीं रहे, पर वर्ष 2008 में एक मुलाकात में उन्होंने बताया था कि उन्हें जीवन में कई बार प्यार हुआ और हर बार उनका प्यार उन्हें कुछ सिखा गया। वह प्यार की भावना ही थी जो फराज साहब शायर बन गए। उनके लफ्जों में कहें तो उनके पहले प्यार ने उन्हें शायर बना दिया। उन्होंने बताया, तब मैं 9वीं में पढ़ता था। मेरी मां अक्सर अपनी एक दोस्त से मिलने जाया करती थीं और मैं भी उनके साथ जाता था। इस दौरान मेरी मुलाकात एक लड़की से हुई जो मुझसे एक साल सीनियर हुआ करती थी। वह मुझे मैथ पढ़ाने लगी, लेकिन शायरी में गहरी रुचि रखती थी। मैं और वह मैथ क्लास के दौरान ही बैतबाजी का मुकाबला कर लिया करते थे। वह मुझसे जीत जाती थी, क्योंकि उसे मुझसे ज्यादा शेर आते थे। बस, उसे रिझाने के लिए मैंने अपने शेर कहने शुरू कर दिए। एक दिन मैं उसके घर उससे मिलने गया तो ताला लगा देखा। पता चला कि उसकी शादी हो गई है और उसके माता-पिता कहीं गए हुए हैं। उसी दिन अहसास हुआ कि मैं उससे प्यार करता था। अपनी नाकामी से ही मुझमें शायरी का जुनून सवार हुआ। शादी हो गई तो क्या, मुझे उसकी याद हमेशा सताती थी। मैं उससे एक मुलाकात को तरसता था, लेकिन जब वह पल आया तब तक सब कुछ बदल चुका था। मेरे तसव्वुर में वह नाजुक सा वजूद कायम था, जिसे मैंने देखा था, लेकिन जब वह सामने आई तो इतनी ज्यादा मोटी थी कि सब खत्म हो गया। इसके बाद फराज साहब को दो बार और प्यार हुआ और इन रिश्तों पर कोई तर्क देने के बजाय उन्होंने इन्हें जिया। इन जैसी शख्सियतों के जीवन पर नजर डालें तो प्यार का मसला और भी ज्यादा उलझा हुआ नजर आता है।

    इस उलझन को सुलझाने के लिए हमने कुछ रिसर्च भी खंगाले। विभिन्न रिसर्चों में ये चार कारण सामने आए हैं जिनसे दो लोगों में प्यार होने की संभावना बढ़ जाती है।

    पहला इम्प्रेशन

    किसी का पहला इंप्रेशन उसे याद रखने के लिए काफी होता है और अगर पहली मुलाकात कुछ खास बन जाए तो प्यार के पनपने की संभावना बढ़ जाती है। विभिन्न अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि किसी व्यक्ति की स्माइल, कपडे़, जूते, हाथों की बनावट और सफाई आदि फ‌र्स्ट इंप्रेशन में एक अहम् भूमिका रखते हैं। साथ ही दोस्ताना स्वभाव वाले व्यक्ति, अच्छे श्रोता और हंसमुख स्वभाव के व्यक्तियों के प्रति भी लोगों का आकर्षण खासतौर पर दिखता है।

    एक-जैसे गुण

    प्यार उन दो लोगों के बीच आसानी से होता है जिनमें ज्यादा समानताएं होती हैं। एक साधारण मान्यता है कि विपरीत शख्सियतों के बीच प्यार आसानी से हो जाता है, लेकिन रिसर्च इस मामले में जरा अलग ही हैं। रिसर्चों की मानें तो विपरीत लोगों से प्यार होना जरा मुश्किल है, क्योंकि आप उनकी अलग शख्सियत के साथ खुद को सहज नहीं महसूस करते।

    बराबरी

    किसी भी मामले में बराबरी प्यार को पैदा करने का एक बड़ा कारण हो सकती है। मामला चाहे बुद्धिमता का हो या पढ़ाई-लिखाई या फिर सास्कृतिक परिवेश का, किसी भी मामले में बराबरी दो लोगों में प्यार को प्रेरित करने के लिए काफी है।

    संप्रेषण

    अच्छे श्रोताओं के प्रति लोग अक्सर आकर्षित हो जाते हैं, क्योंकि उनके साथ बेहतर संप्रेषण संभव होता है।

    दिमाग की कारस्तानी है इश्क

    इश्क को भले ही आग का दरिया कहा जाए। फिर भी लोग इसमें कूदने से नहीं चूकते। इसमें इंसान दिल ही नहीं, दिमाग भी हार बैठता है। अमेरिका स्थित सिराक्यूज यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिकों ने इश्क के लिए इंसान के दिमाग को भी दिल जितना ही जिम्मेदार ठहराया है। उनके मुताबिक प्यार में पड़ने में आशिकों को सिर्फ एक सेकेंड के पाचवें हिस्से जितना ही वक्त लगता है। इसके बाद उनके मस्तिष्क में ऐसे रसायनों का उत्पादन होने लगता है, जो उन्हें नशे सरीखा सुकून देता है। प्रमुख शोधकर्ता स्टेफनी ऑर्टिग की मानें तो जब कोई इंसान किसी से प्यार करता है, तब उसके दिमाग के 12 हिस्से एक के बाद एक डोपामाइन, ऑक्सीटॉसिन, एड्रीनलिन और वैसोप्रेशन जैसे रसायनों का स्राव करने लगते हैं। उन्होंने कहा, इश्क में इंसान के हाव-भाव, सोच-विचार और चाल-ढाल बदल जाते हैं।

    ऑटोमैटिकली होता है प्यार

    [डॉ. जीवन लाल, औरा एक्सपर्ट]

    प्यार किया नहीं जाता, प्यार हो जाता है। कम से कम औरा का कॉन्सेप्ट तो यही कहता है। हर व्यक्ति का औरा 49 परतों का बना होता है। इसमें से किसी व्यक्ति, पशु, पक्षी या पेड़-पौधे से भी औरा मिल सकता है। इनमें से कुछ लेयर्स भी व्यक्ति को आकर्षित कर सकती हैं। इस क्रिया को औरा की पुलिंग या पुशिग कहते हैं। कुछ चीजें या व्यक्ति अगर दिल को छूते हैं तो वो सिर्फ इसलिए, क्योंकि हमारा औरा उनसे मिलता है। ऐसा भी हो सकता है कि जिस व्यक्ति से हमारी कुंडली मैच न करे, उससे औरा मैच कर सकता है और इसकी विपरीत स्थिति भी हो सकती है। प्यार में औरा का एक महत्वपूर्ण रोल होता है। जब भी औरा मैच करता है, तभी प्यार जन्म लेता है। प्यार किया नहीं जा सकता.. औरा मैचिंग से प्यार ऑटोमैटिकली हो जाता है।

    दिल और प्यार का कोई नाता नहीं

    [डॉ. अंशुल जैन, कार्डियोलॉजिस्ट]

    प्यार को अकसर दिल से जोड़ दिया जाता है, लेकिन साइंटिफिकली दिल और प्यार का कोई संबंध नहीं होता। दरअसल प्यार होने में दिमाग के हॉरमोन फेरोमोंस का अहम् रोल होता है। अगर मैं लॉजिकली इस संबंध पर बात करूं तो शायद दिल को इससे इसलिए जोड़ते हैं, क्योंकि दिल की धड़कन को फील किया जा सकता है। जब भी किसी व्यक्ति को देखकर आपमें एक्साइटमेंट का भाव आता है, धड़कन के माध्यम से दिल का इस एक्साइटमेंट के प्रति रिएक्शन भी तुरंत महसूस होने लगता है। इसीलिए दिल धड़कना प्यार का सूचक होता है।

    प्यार के साथ क्यों न जोड़िए

    [इमरोज, आर्टिस्ट]

    प्यार के साथ क्यों या क्या जैसे शब्दों का प्रयोग करना गलत है। प्यार के पीछे कोई लॉजिक नहीं होता। इस अहसास को सिर्फ वही समझ सकता है जिसे प्यार हुआ हो। प्यार बॉय-चास होता है। न किया जाता है, न ही इसके पीछे कोई वजह होती है। अगर आप पूछो कि मुझे अमृता से प्यार कैसे हुआ तो मैं नहीं बता सकूंगा। मुझे पता ही नहीं है कि उन पलों को कैसे बया करना है। उन्हें बुक कवर बनाने के लिए किसी की जरूरत थी और मैं डिजाइनर था। हम मिले और एक-दूसरे को पसंद करने लगे। कुछ मुलाकातों के बाद यह पसंद गहरी होती गई, लेकिन अपने पूरे जीवन में शायद ही मैंने या उन्होंने कभी आई लव यू जैसे अल्फाजों का प्रयोग किया होगा। हम कहने-सुनने से ऊपर थे। जब मैं अमृता से मिला, मैं 32 का था और वह 40 की। वह शादीशुदा थीं और उनके दो बच्चे भी थे। उस वक्त वह अपने पति के साथ ही रहती थीं, लेकिन मानसिक रूप से उनसे जुदा हो चुकी थीं। हमारा कोर्टशिप पीरियड सात साल चला। इस दौरान मैं अमृता के साथ पूरा दिन बिताता। उनके बच्चों को स्कूल छोड़ने जाता, उन्हें लेकर आता। दोपहर का खाना हम साथ खाते। रात को मैं अपने घर वापस चला जाता था। अमृता का साहिर के प्रति भी एक गहरा अपनत्व था। न साहिर की तरफ से हुई। जब हम मिले तो एक-दूसरे के प्रति समर्पित हो गए। इस समर्पण में कहीं भी एक-दूसरे पर हावी होने का भाव नहीं था। हमारी अपनी शख्सियतें थीं, हमारी अपनी सोच थी। हम रहते दूसरे कमरों में थे, लेकिन हमारा दिल एक-दूसरे के लिए ही था। किसी को प्यार करने से पहले खुद को प्यार करना और दूसरे का सम्मान करना बेहद जरूरी है।

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