प्यार में क्या चाहती है स्त्री
प्यार एक ऐसा खूबसूरत एहसास है, जो हर इंसान के दिल के किसी न किसी कोने में बसा होता है। इस एहसास के जागते ही कायनात में जैसे चारों ओर हजारों फूल खिल उठते हैं और जिंदगी को जीने का नया बहाना मिल जाता

प्यार एक ऐसा खूबसूरत एहसास है, जो हर इंसान के दिल के किसी न किसी कोने में बसा होता है। इस एहसास के जागते ही कायनात में जैसे चारों ओर हजारों फूल खिल उठते हैं और जिंदगी को जीने का नया बहाना मिल जाता है। स्त्री के जीवन में प्यार बहुत मायने रखता है। प्यार उसकी सासों में फूलों की खुशबू की तरह रचा-बसा होता है, जिसे वह ताउम्र भूल नहीं पाती।
शायद जब इस संसार की रचना हुई होगी और धरती पर पहली बार आदम और हौवा ने धरती पर कदम रखा होगा, तभी से औरत ने आदमी के साथ मिलकर जिंदगी की मुश्किलों से लड़ते हुए साथ मिलकर रहने की शुरुआत की होगी और वहीं से उसके जीवन में पहली बार प्यार का पहला अंकुर फूटा होगा। प्रेम एक ऐसी अबूझ पहेली है, जिसके रहस्य को जानने की कोशिश में जाने कितने प्रेमी दार्शनिक, कवि और कलाकार बन गए। एक बार प्रेम में डूबने के बाद व्यक्ति दोबारा उससे बाहर नहीं निकल पाता। स्त्रियों का प्रेम पुरुषों के लिए हमेशा से एक रहस्य रहा है। कोई स्त्री प्यार में क्या चाहती है, यह जान पाना किसी भी पुरुष के लिए बहुत मुश्किल और कई बार तो असंभव भी हो जाता है।
क्या कहता है स्त्री मनोविज्ञान
आई.टी. प्रोफेशनल गीतिका कहती हैं, इस आधुनिक युग में पढ़ी-लिखी लड़किया भी प्रेम के मामले में अपने प्रेमी से ही इस बात की उम्मीद करती हैं कि पहले उनका प्रेमी उनके सामने अपने प्यार का इजहार करे। मैं और मेरे पति तरुण पिछले पाच वर्र्षो से अच्छे दोस्त थे और हमारी गहरी दोस्ती बहुत पहले प्यार में तब्दील हो चुकी थी, लेकिन मैं उस घड़ी का इंतजार कर रही थी कि कब वह अपने प्यार का इजहार करें, क्योंकि मेरे लिए अपने दिल की बात कह पाना बहुत मुश्किल हो रहा था। कभी-कभी मुझे इस बात पर खीझ भी होती थी कि तरुण मुझे इतने करीब से जानता है। फिर भी वह मेरी भावनाओं को क्यों नहीं समझ पा रहा? अंतत: पहले उसी ने मेरे सामने विवाह का प्रस्ताव रखा, तब जाकर हमारी शादी हुई। आज हमारी शादी को सात वर्ष हो चुके हैं और हम आज भी इस बात को याद करके बहुत हंसते हैं कि अगर तरुण ने मुझे प्रपोज नहीं किया होता तो शायद तरुण के लिए मेरा प्यार मेरे दिल के किसी कोने में ही दबा रह जाता।
आज भी समर्पित है स्त्री
[रवीना टंडन, अभिनेत्री]
कोई भी स्त्री प्यार के बदले ढेर सारा प्यार चाहती है। ईश्वर ने स्त्री को कुछ इस तरह बनाया है कि उसके दिल को समझ पाना बहुत मुश्किल होता है। मेरा मानना है कि दुनिया में प्यार करने वाले हमेशा मेड फॉर इच अदर नहीं होते, बल्कि मैं यह कहूंगी कि ऐसा ही होता आया है कि प्यार में जोडे़ कभी मेड फॉर इच अदर होने के बाद भी टिकते नहीं, तो कभी मेड फॉर इच अदर न होने के बाद भी टिकते हैं। यह आइंस्टाइन को भी न समझ में आने वाली एक अजीबोगरीब गुत्थी है। मशहूर साहित्यकार अमृता प्रीतम ने प्यार को जिस तरीके से समझा था और आत्मसात किया था वो लाजवाब था। कोई तो खास बात होगी उनके प्रेम में जिसकी वजह से उन्होंने बिना शादी के इकट्ठे बरसों बिताए। सच में अद्भुत प्यार था उनका। आज 21वीं सदी में स्त्री कई क्षेत्रों में पुरुषों से आगे निकल गई है। इसलिए उसकी पहचान बन गई। फिर भी वो अपने प्यार को समर्पित है। स्त्री के प्रेम में जितनी सच्चाई और निष्ठा है, उतनी पुरुषों में नहीं। वन नाइट स्टैंड की मानसिकता आज भी पुरुषों में ही अधिक पाई जाती है। प्रेम में स्त्री का नजरिया पहले की तुलना में इसलिए बदला नजर आ रहा है, क्योंकि आज की स्त्री आत्मविश्वासी और आत्मनिर्भर है, उसे अपनी मौलिक जरूरतों को पूरा करना आता है। स्त्री को यदि समर्पित प्यार मिले तो शायद उसे कभी शिकायत ही न हो। अपने व्यक्तिगत जीवन में प्यार को लेकर मुझे कुछ अच्छे-बुरे अनुभव हुए, मैंने उन बुरे अनुभवों को भी सकारात्मक ढंग से लिया। यदि उन भूली दास्तानों से कुछ पाठ न पढ़ती तो मुझे शायद जिंदगी जीने की समझ न आती। मेरा मानना है कि प्यार में उम्मीदों का टूटना स्त्री को परिपक्व बनाता है। मेरा ख्याल है कि स्त्री अपने जीवनसाथी की खामियों को आसानी से स्वीकार कर लेती है, पर कई बार उसका साथी उसकी कमियों को नजरअंदाज नहीं कर पाता।
आत्मसम्मान स्त्री और पुरुष दोनों में समान रूप से होता है, पर जब आत्मसम्मान उग्र रूप धारण करता है तो अहं का टकराव हो जाता है। मैंने अपनी विवाहित जिंदगी में आत्मसम्मान और रिश्ते के बीच संतुलन बनाए रखा है। यदि हम अपने उसूलों से समझौता न करें और केवल आत्मसम्मान के बारे में ही सोचते रहें तो न प्यार रहेगा और न ही रिश्ता। स्त्री को एक सीमा तक ही अपने आत्मसम्मान के बारे में सोचना चाहिए। रिश्ते बनाने में उम्र गुजर जाती है, पर टूटने के लिए कुछ पल काफी होते हैं।
चाहती है भावनाओं का सम्मान
[दिव्या गुरवारा, सीईओ ब्राइडल एशिया]
प्रेम के मामले में मेरे विचार बहुत पारंपरिक हैं। प्यार इंसान को भावनात्मक मजबूती देता है और उसे जिंदगी जीना सिखाता है। प्यार के प्रति आधुनिक स्त्री का नजरिया बदला जरूर है, पर प्रेम को लेकर जो मूल बातें हैं, उनमें कोई बदलाव नहीं आया है। एक-दूसरे के प्रति गहरे विश्वास और समर्पण की भावना आज भी देखने को मिलती है। अगर प्रेम के मामले में ये बुनियादी बातें न हों तो वह प्रेम सच्चा प्रेम नहीं कहा जा सकता। मेरे विचार से प्यार में कोई भी स्त्री कम से कम इतना तो जरूर चाहती है कि उसका साथी उसकी भावनाओं को समझे और उनका सम्मान करे। अगर दो लोगों के बीच सच्चा प्यार हो तो दोनों एक-दूसरे के व्यक्तित्व की खामियों को नजरअंदाज कर देते हैं और ऐसा करना जरूरी भी है, क्योंकि प्यार में स्थायित्व ऐसा करके ही आ सकता है। प्रेम और दापत्य संबंधों के प्रति आधुनिक भारतीय स्त्री का दृष्टिकोण पहले की तुलना में काफी बदला है। आज की स्त्री आजाद और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है, इस वजह से वह अपना भी ख्याल रखना और अपने आपसे भी प्यार करना सीख गई है। अब वह पहले की तरह अपनी सभी इच्छाओं और रुचियों का त्याग नहीं करती, बल्कि वह अपने व्यक्तित्व के गुणों को भी निखार कर अपने जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश करती है। चाहे प्रेम हो या शादी दोनों ही स्थितियों में वह अपनी तरफ से सामंजस्य स्थापित करने की पूरी कोशिश करती है, पर वह अपने आप को मिटा कर एडजस्टमेंट नहीं करती।
पहचानने लगी है
भावनात्मक जरूरतें
[सोनालिका सहाय, मॉडल]
समय के साथ बदलाव एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। इसी वजह प्यार को लेकर भारतीय स्त्री का नजरिया भी पहले की तुलना में काफी बदल गया है। आधुनिक स्त्री शिक्षित और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है, इस वजह से अब वह अपनी जिंदगी की भावनात्मक जरूरतों को पहचानने लगी है। आज से 20 साल पहले इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि प्रेम में कोई लड़की खुद किसी लड़के को प्रपोज करे, लेकिन आज की लड़की किसी लड़के के सामने अपनी भावनाओं का इजहार करने में नहीं झिझकती। आधुनिक स्त्री आत्मनिर्भर और आत्मविश्वास से पूर्ण है, इस वजह से वह अपने रिश्तों में आत्मसम्मान को अहमियत देती है। मेरा मानना है कि चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, प्यार के मामले में दोनों में से किसी को भी डबल स्टैंडर्ड नहीं होना चाहिए और अपने रिश्ते के प्रति दोनों को ईमानदारी बरतनी चाहिए। जहा तक मेरे अनुभवों का सवाल है तो मेरे पति बैंकिंग के क्षेत्र में हैं और मैं मॉडलिंग में हूं। फिर भी हमारे बीच एडजस्टमेंट को लेकर कोई कभी कोई दिक्कत नहीं हुई। हम दोनों उस वक्त से अच्छे दोस्त थे, जब मैं मॉडलिंग के क्षेत्र में नहीं थी। एयरलाइंस की नौकरी छोड़कर मॉडलिंग के क्षेत्र में आने के मेरे निर्णय में पति की पूरी सहमति थी। दरअसल जब दो इंसानों के बीच सच्चा प्यार होता है तो व्यक्तित्व की थोड़ी-बहुत खामियों के बावजूद एक-दूसरे के साथ बिना किसी परेशानी के एडजस्मेंट हो ही जाता है।
बदली है नई पीढ़ी की सोच
[करीना कपूर, अभिनेत्री]
प्यार के प्रति स्त्री का नजरिया वक्त के साथ बदला है। कारण, स्त्री शिक्षित होती चली गई और उसका अपना स्वतंत्र वजूद होता गया। मुझे कल भी और आज भी महसूस होता है कि आज के युग की स्त्री की जीवन में प्यार की अहमियत जरूर है, पर वो उस प्यार को तवज्जो देती है जो प्यार उसे शादी के बाद मिलता है।
प्यार के मामले में स्त्री का दृष्टिकोण इसलिए बदल गया है, क्योंकि शिक्षित होने की वजह उसके जीवन की दिशा बदल गई है। वह जान चुकी है कि प्यार उसके जीवन का अंतिम लक्ष्य कभी नहीं बन सकता। यदि मैं अपनी बात करूं तो मुझे लगता है, जीवन में अब मेरी भी प्राथमिकताएं बदल चुकी हैं। जीवन की कुछ अनुभवों ने मुझे यह सिखा दिया है कि प्यार से अधिक महत्वपूर्ण है मेरा कॅरियर और वही मेरे जीवन का उद्देश्य है। हम खुशी पाने की चाहत में प्यार करते हैं, पर यह जरूरी नहीं कि हर बार हमारी उम्मीदें सच ही साबित हों। मैं अपने आने वाले कल के बारे में अब नहीं सोचती, पर मेरा भावी जीवनसाथी अपने रिश्ते के प्रति ईमानदार हो, इतनी मामूली बात तो कोई भी सोच सकता है। मुझे भी लगता है कि मेरा जीवनसाथी जिंदादिल और खुशमिजाज हो। मेरे कॅरियर ने मुझे उम्मीद से अधिक धन कम उम्र में ही दिलाया है। इस वजह से पैसा मेरे लिए अहमियत नहीं रखता। रिश्ता चाहे वो प्रेम का हो या दोस्ती का, सच्चाई और ईमानदारी तो हर संबंध की नींव है।
प्यार के रिश्ते में स्त्री का आत्मसम्मान बेहद महत्वपूर्ण होता है, इस बात को नई पीढ़ी की स्त्री बखूबी समझती है। हजारों प्रेम कहानिया हकीकत में बदल चुकी हैं, रोज ऐसा होता है, पर शायद ही कोई स्त्री के आत्मसम्मान की रक्षा के बारे में सोचता है। आज के दौर में स्त्री की तरफ से रिश्ते उस वक्त टूटते-बिखरते हैं जब उसके आत्मसम्मान को बार-बार ठेस पहुंचती है। गुजरे जमाने में स्त्री सिर्फ आत्मसमर्पण जानती थी। पुराने समय में रिश्ते इसलिए बने रहते थे, क्योंकि स्त्री अपने जीवनसाथी के अत्याचारों को चुपचाप सहती रहती थी। मेरे जीवन में मेरा अपना वजूद है, जिसने मुझे आत्मसम्मान दिलाया है और इसे बचाए रखना मेरी जिम्मेदारी है।
[जागरण सखी]
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