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    सहयोग से समाधान: आयुर्वेद की वैज्ञानिक व्याख्या से राह हुई आसान, आमलोगों को मिला प्राकृतिक निदान!

    By Manish MishraEdited By:
    Updated: Mon, 12 Oct 2020 12:19 AM (IST)

    कारोबार या करियर में सफलता के लिए आपकी स्किल जुनून सबसे अहम रोल अदा करता है। इन्हीं की मदद से लोग उन क्षेत्रों में भी मुकाम हासिल करते हैं जहां सफलता ...और पढ़ें

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    Scientific interpretation of Ayurveda has made the way easier for Dr Parmeshwar Arora

    गुरुग्राम, जेएनएन। कारोबार या करियर में सफलता के लिए आपकी स्किल, जुनून सबसे अहम रोल अदा करता है। इन्हीं की मदद से लोग उन क्षेत्रों में भी मुकाम हासिल करते हैं, जहां सफलता का प्रतिशत कम होता है। कुछ ऐसी ही कहानी 'अथ आयुर्धामः' के डॉक्टर परमेश्वर अरोड़ा की है। आयुर्वेद के क्षेत्र में कुछ बेहतर करने के जुनून ने इन्हें कोरोना संकट के दौरान खुद के कारोबार और इनके ग्राहक यानी मरीजों, दोनों को मुश्किल से बाहर निकालने में मदद की। कोरोना की बाधाओं के बीच डॉ. अरोड़ा ने अपनी आयुर्वेद की दक्षता को नई तकनीक और सोशल मीडिया से जोड़ा। मरीज केंद्रित अप्रोच और लगातार सेवा-संवाद से मुश्किलें आसान हुईं। 

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    संघर्ष से बनाया मुकाम

    डॉक्टर परमेश्वर अरोड़ा हरिद्वार के रहने वाले हैं। वह बताते हैं कि 2002 में मैंने आयुर्वेद से एमडी की थी। मेरे पेशे में अन्य मेडिकल प्रोफेशनल की तुलना में असफलता की दर अधिक थी। पर मैंने इस बात को ठान लिया था कि मुझे इस विशेषज्ञता के आधार पर ही काम करना है। धीरे-धीरे मेरी प्रैक्टिस चल निकली और अब मेरे पास पचास से अधिक लोगों की टीम है। हम दवाइयां भी बनाते हैं। उनके लिए कोरोना के संकट का समाधान कैसे निकला, आइए उन्हीं से जानते हैं: 

    समाधान 1: सोशल मीडिया ने राह बनाई आसान

    आयुर्वेद में आपदा वाली बीमारी को जनपदोध्वंस कहा जाता है। आयुर्वेद में गरारे करना, स्टीम लेने आदि की बात कही गई है। मैंने लोगों को जागरूक करने के लिए सोशल मीडिया पर शुरू से ही अभियान चलाया था। च्यवनप्राश के इस्तेमाल के लिए लोगों को प्रेरित किया गया। इम्युनिटी बढ़ाने, अकेलेपन को काउंटर करने, भाप को मददगार बनाने, मसालों के सही इस्तेमाल, कोरोना से बचाव के तरीकों और हल्दी व गिलोय के उचित इस्तेमाल के बारे में सोशल मीडिया पर जानकारी दी गई। मैंने सोशल मीडिया पर सौ से अधिक वीडियो डाले। 

    समाधान 2: लॉकडाउन में भी खोला क्लीनिक 

    मैंने लॉकडाउन के समय में भी अपना क्लीनिक बंद नहीं किया। लॉकडाउन के दौरान सिर्फ जनता कर्फ्यू के दिन ही मेरा क्लीनिक बंद था। इसके अलावा मैंने सुबह-शाम लगातार मरीज देखे। मरीजों को मैंने क्लीनिक के साथ ऑनलाइन भी देखा। कोरोना के अलावा सिर दर्द, आर्थराइटिस, पेट की बीमारियों, पथरी आदि के मरीज भी परेशान थे। ऐसे मरीजों को भी मैंने लगातार देखा। 

    ('अथ आयुर्धामः' के डॉक्टर परमेश्वर अरोड़ा)

    समाधान 3: ट्रैवल करने वालों को ऑनलाइन दी सलाह

    मेरे पास कई ऐसे मरीजों के सवाल आते थे कि अमुक कार्य के लिए उन्हें बाहर जाना है। ऑफिस खुलने के बाद भी लोगों के मन में इस बात का डर था कि बाहर कैसे जाए, वहीं फ्लाइट या ट्रेन या बस से यात्रा करने वाले भी काफी सशंकित थे। मैंने ऐसे लोगों को ऑनलाइन लगातार उचित सलाह दी। 

    समाधान 4: कर्मचारियों ने दिया सहयोग 

    कोरोना काल में मेडिकल पेशे से जुड़े लोगों की जिम्मेदारी काफी बढ़ गई थी। ऐसे में मेरे स्टाफ ने भी इस काल में पूरी कर्मठता से काम किया। उन्होंने छुट्टियां नहीं लीं और अपने काम को बेहतर तरीके से अंजाम दिया। इससे मुझे बल मिला। सुरक्षा के उपायों का पालन करने से मेरा एक भी कर्मचारी कोरोना संक्रमण का शिकार नहीं हुआ। 

    समाधान 5:  कुरियर से भेजी दवाएं

    कई ऐसे मरीज थे जो कि वृद्ध थे या कोरोना की वजह से आ सकने में सक्षम नहीं थे। कई मरीज दूर से आते थे। ऐसे मरीजों को सहयोग करना मेरी जिम्मेदारी थी, ताकि वे अपनी दवाइयां नियमित रूप से ले सकें। इसमें भारत सरकार का भी काफी सहयोग रहा। दवाइयों की कुरियर डिलीवरी की अनुमति थी। इससे मरीजों को नियमित तौर पर दवाएं पहुंचती रही। मैंने देश के कई हिस्सों में दवा पहुंचाई। 

    समाधान 6: गांव और झुग्गियों में किया लोगों को जागरूक

    मैं हरियाणा में आस-पास के ग्रामीण इलाकों, स्लम एरिया में जाकर लोगों को जागरूक करता था। लोगों को दवाएं देता था। इम्युनिटी बेहतर करने के उपाय के बारे में बताता था। दूसरी स्वास्थ्य समस्याओं के निदान की भी कोशिश करता था। मैं कार के सनरूफ से माइक लगाकर लोगों को रोज नई जानकारियों से अपडेट करता था। इसकी वजह से इलाकों में मुझे ऑडी वाले डॉक्टर के नाम से पहचान मिल गई। 

    समाधान 7: भ्रामक जानकारियों से लड़ी लड़ाई

    कई बार आयुर्वेद के नाम पर भ्रामक और गलत बातें बताई जाती हैं, जिससे नुकसान होता है। मसलन विटामिन सी के नाम पर लोग खट्टा खाने की सलाह देते हैं, यह सही है। पर कई लोगों का गला संवेदनशील होता है। ऐसे लोगों को खट्टे का सेवन सीमित मात्रा में करना चाहिए। वहीं हल्दी, काढ़े का सेवन भी एक समुचित मात्रा में करना चाहिए। तमाम भ्रामक जानकारियों को दूर करने के लिए लोगों को सही बातें बताई गईं।

    (न्‍यूज रिपोर्ट: अनुराग मिश्रा, जागरण न्‍यू मीडिया)