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सहयोग से समाधान: ग्राहकों संग 139 साल पुराना भरोसा रहा बरकरार, संकट में भी दौड़ा कपड़ों का कारोबार

कोरोना काल और लॉकडाउन की तालाबंदी के बावजूद समय की नब्ज को पहचानकर उसके अनुरूप कारोबार के तरीके में बदलाव लाकर मोहनलाल संस ने एक मिसाल पेश की है। इस दौर में भी उन्होंने परिधानों के अपने दो नए आउटलेट्स खोले हैं।

By Manish MishraEdited By: Published: Sat, 17 Oct 2020 12:37 AM (IST)Updated: Wed, 11 Nov 2020 06:27 PM (IST)
सहयोग से समाधान: ग्राहकों संग 139 साल पुराना भरोसा रहा बरकरार, संकट में भी दौड़ा कपड़ों का कारोबार
139 years old trust remains with customers, Mohanlal Sons clothing business runs into crisis

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। कोरोना काल और लॉकडाउन की तालाबंदी के बावजूद समय की नब्ज को पहचानकर उसके अनुरूप कारोबार के तरीके में बदलाव लाकर मोहनलाल संस ने एक मिसाल पेश की है। इस दौर में भी उन्होंने परिधानों के अपने दो नए आउटलेट्स खोले हैं। कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीइओ) व सहयोगी मयंक मोहन की सुझबूझ, दूरदर्शिता और 100 से अधिक पुराने ग्राहकों के भरोसे से ऐसा संभव हो पाया है। वह कहते हैं कि लॉकडाउन में सभी आउटलेट्स बंद थे। कर्मचारी और कारीगर बिना काम के बैठे थे। उन्हें सक्रिय रखने के साथ ग्राहकों से जुड़ाव बरकरार रखने के लिए उन्होंने मास्क बनवाए और उसे बेचा। यह बहुत आर्थिक लाभ का सौदा नहीं था, लेकिन इसकी मदद से वह अपने ग्राहकों के संपर्क में बने रहे। उनके उत्पादों पर विश्वास रखने वाले ग्राहकों का जुड़ाव कंपनी के साथ बना रहा। 

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139 साल पुराना भरोसा

मोहन लाल संस की कहानी 139 साल पुरानी है। यह दिल्ली समेत कई राज्यों में शादी के परिधानों का एक विश्वसनीय ब्रांड नाम है। इसकी स्थापना वर्ष 1881 में हुई थी। 1935 में यह कनॉट प्लेस में आया। तब इसे एक अंग्रेज कारोबारी ने ट्रेविलेन एंड क्लर्क नाम से शुरू किया था। यह वायसराय, राजा, बड़े उद्योगपति, नेताओं का पसंदीदा दुकान हुआ करती थी। तब सिलाई का जमाना था। कपड़े खरीदकर लोग सिलवाते थे। आजादी बाद मयंक मोहन के परदादा लाला मोहन लाल ने यह दुकान खरीदी। उसके बाद से जाने-माने राजनेताओं के लिए परिधान का यह पसंदीदा ठिकाना बना। मयंक इसे अब राष्ट्रीय पहचान दे रहे हैं। वर्तमान में दिल्ली समेत देश के विभिन्न राज्यों में इसके 14 शो रूम है। दिल्ली में तीन, गुरुग्राम में दो, नोएडा में दो तथा लखनऊ, कानपुर, बरेली, हल्द्वानी, देहरादून, चंडीगढ़ और जम्मू में एक-एक आउटलेट्स है। दिल्ली के टैगोर गार्डन और लखनऊ में आउटलेट्स तो इस कोरोना काल में खोला गया है। आइए जानते हैं कि कोरोना संकट के बीच उन्होंने कैसे समाधान खोजे, जिनसे कारोबार अपनी रफ्तार में चलता रहा।

समाधान 1: कंपनी के प्रोडक्ट ऑनलाइन लेकर आए

कोरोना लॉकडाउन के खाली समय का उपयोग उन्होंने कंपनी के प्रोडक्ट को ऑनलाइन प्लेटफार्म पर लाने में किया। वेबसाइट तैयार कराई। परिधानों का कैटलॉग तैयार कराया। इसी तरह जब लॉकडाउन हटा और आउटलेट्स खुले, कामकाज सामान्य होने लगा तो उन्होंने सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग किया। 

समाधान 2: ग्राहकों को बताया, कैसे सुरक्षित है उनका कारोबार

कोरोना से बचाव के उपायों और इंतजामों पर एक शॉर्ट वीडियो बनवाई गई और उसे वॉट्सऐप पर शेयर किया। इसमें बताया कि उनके यहां का उत्पाद किस तरह से सुरक्षित है और किस तरह से आउटलेट्स में आकर ग्राहक खुद को सुरक्षित महसूस कर सकते हैं। खरीददारी के लिए अप्वाइंटमेंट की व्यवस्था शुरू की। ग्राहकों को भरोसा दिया गया कि वह जब आउटलेट्स पर आएंगे तो वहां केवल वहीं होंगे। अन्य खरीददारों की भीड़ नहीं होगी। इसके बावजूद जिनके अंदर हिचक थी, उनके लिए परिधान पसंद कराने व नाप लेने की व्यवस्था घर पर ही उपलब्ध कराई। इस तरह से वह ग्राहकों के विश्वास को मजबूत बनाने में कामयाब रहे।  

समाधान 3: डिजिटल की ताकत को समय रहते पहचाना

मयंक के अनुसार, यह इसलिए संभव हो पाया, क्योंकि हमने समय की मांग को समझा। मैंने अपने कर्मचारियों को साफ कहा कि लॉकडाउन के बाद यह हमारा पुनर्जन्म हुआ है। हम हिम्मत नहीं हारे। इसलिए सारी चीजें नए तरीके से व्यवस्थित की गई। ग्राहकों की जरूरत को देखते हुए कामकाज के तरीके में बदलाव लाया गया। पहले परंपरागत तरीके से आउटलेट्स से कारोबार होता था, लेकिन हम ऑनलाइन प्लेटफार्म पर आएं। पूरे आउटलेट्स को ही ऑनलाइन लाए। इससे घर बैठे डिजाइन और कपड़े पसंद करने में लोगों को आसानी हुई। वॉट्सऐप से संपर्क बनाए रखा। अधिक से अधिक संपर्क रहित कारोबार पर जोर दिया। लोगों को अधिक से अधिक सुरक्षित महसूस कराने पर जोर दिया। इसके लिए हम लोगों के घरों तक में हर सुविधा पहुंचा रहे हैं। 

(मोहनलाल संस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीइओ) व सहयोगी मयंक मोहन)

समाधान 4: वित्तीय प्लानिंग से अनावश्यक खर्चों को किया नियंत्रित

पहले सामान्य दिनों में बेकार के खर्चों का पता नहीं चलता था। इस कोरोना काल में पता चला। अच्छी वित्तीय प्लानिंग से अनावश्यक खर्चों को नियंत्रित किया गया। इस बीच जो बेहद जरूरी था कि हम लोगों के जेहन में बने रहे। इसलिए मास्क बनाकर भी बेचे गए। कर्मचारियों से भी हमें काफी सहयोग मिला।


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