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    Jail Tourism In Maharashtra: महाराष्ट्र में 26 जनवरी से ‘जेल पर्यटन’ की होगी शुरुआत

    Jail Tourism In Maharashtra अनिल देशमुख के अनुसार महाराष्ट्र में जेल पर्यटन की शुरुआत फिलहाल पुणे की यरवदा जेल से की जाएगी। यह जेल स्वतंत्रता से पहले और बाद में भी कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है।

    By Sachin Kumar MishraEdited By: Updated: Sat, 23 Jan 2021 03:37 PM (IST)
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    महाराष्ट्र में 26 जनवरी से जेल पर्यटन की होगी शुरुआत। फाइल फोटो

    राज्य ब्यूरो, मुंबई। Jail Tourism In Maharashtra: महाराष्ट्र में आगामी गणतंत्र दिवस से ‘जेल पर्यटन' की शुरुआत होने जा रही है। 26 जनवरी को राज्य के गृहमंत्री अनिल देशमुख की उपस्थिति में उपमुख्यमंत्री अजीत पवार पुणे की यरवदा जेल से इसकी शुरुआत करेंगे। यह घोषणा गृहमंत्री अनिल देशमुख ने शनिवार को नागपुर में एक संवाददाता सम्मेलन में की। अनिल देशमुख के अनुसार, महाराष्ट्र में जेल पर्यटन की शुरुआत फिलहाल पुणे की यरवदा जेल से की जाएगी। यह जेल स्वतंत्रता से पहले और बाद में भी कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है। राज्य के अतिरिक्त पुलिस महानिरीक्षक व कारागार महानिरीक्षक सुनील रामानंद के अनुसार, महाराष्ट्र के कई कारागार स्वतंत्रता आंदोलन के साक्षी रहे हैं। इन जेलों में उस समय की स्मृतियों को संजो कर भी रखा गया है।

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    इन स्मृतियों व घटनाओं से लोग प्रेरणा ग्रहण कर सकें, इसलिए ही महाराष्ट्र में जेल पर्यटन की शुरुआत की जा रही है। इसके लिए विद्यार्थियों के साथ-साथ सामान्य पर्यटकों को भी जेल के अंदर जाने की अनुमति दी जाएगी। चूंकि ऐसी स्मृतियां पुणे की यरवदा जेल, नासिक व ठाणे जेलों में अधिक हैं। इसलिए जेल पर्यटन की शुरुआत इन्हीं जेलों से की जा रही है। इन जेलों में पर्यटकों की रुचि देखने के बाद अन्य जेलों को भी पर्यटकों के लिए खोला जा सकता है। पुणे की यरवदा जेल स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में काफी चर्चित रही है। 1922 में महात्मा गांधी को ब्रिटिश सरकार के विरोध में एक लेख लिखने के आरोप में साबरमती आश्रम से गिरफ्तार करके यरवदा जेल में ही रखा गया था। दुबारा 1932 में गांधी जी को मुंबई (तब बंबई) से गिरफ्तार करके यरवदा जेल में रखा गया था। इसी जेल में उन्होंने ‘फ्रॉम यरवदा मंदिर’ नामक एक पुस्तक भी लिखी थी।

    पुस्तक के अनुसार, इस जेल में उन्हें काफी कुछ सीखने को मिला। महात्मा गांधी के अलावा इस जेल में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, जवाहर लाल नेहरू, मोती लाल नेहरू, सरदार पटेल, वासुदेव बलवंत फड़के, चाफेकर बंधु जैसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को रखा जा चुका है। महात्मा गांधी की बैरक को इस जेल में विशेष रूप से संवार कर रखा गया है। यहां के कैदियों के लिए साल भर का एक कोर्स चलाया जाता है, जिसमें गांधी के विचारों की जानकारी दी जाती है। भारत छोड़ो आंदोलन के 50 वर्ष पूरे होने पर सन 2002 में इस जेल में एक विशेष कार्यक्रम भी आयोजित किया गया था। महात्मा गांधी ने इसी जेल में एक फोल्डिंग चरखा भी बनाया था। इस जेल के नाम पर उसे ‘यरवदा चरखा’ के नाम से जाना जाता था।

    आजादी के बाद भी पुणे की यरवदा जेल यदाकदा चर्चा में आती रही है। मुंबई पर हमला करने आए पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब को फांसी इसी जेल में दी गई थी। 1992 के मुंबई धमाकों के दौरान घर में हथियार रखने के आरोप में सजा पाए अभिनेता संजय दत्त को भी इसी जेल में लंबा समय गुजारना पड़ा है। इस जेल में संजय दत्त को कैदी नंबर सी-15170 के रूप में जाना जाता था। पुणे की यरवदा जेल के अलावा नासिक जेल का इतिहास भी स्वतंत्रता सेनानियों से जुड़ा रहा है। नासिक रोड मध्यवर्ती कारागार में ही स्वतंत्रता सेनानी अनंत लक्ष्मण कान्हेरे ने अंग्रेज अधिकारी जैकशन की हत्या कर दी थी। इस हत्या के आरोप में उन्हें कृष्णा जी कर्वे व विनायक देशपांडे के साथ 19 अप्रैल, 1910 को ठाणे कारागार में फांसी दी गई थी।