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    'हमारा सिर तब शर्म से झुक गया जब...', पुणे में गर्भवती महिला की मौत के बाद आया अस्पताल के डायरेक्टर का बयान

    पुणे के दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल पर गर्भवती महिला को इलाज से इनकार कर 10 लाख रुपये की अग्रिम मांगने का आरोप लगा है। महिला भाजपा एमएलसी के निजी सचिव की पत्नी थी। इलाज न मिलने से उसकी मौत हो गई जिससे भारी बवाल मच गया। विरोध के बाद अस्पताल ने आपातकालीन मरीजों से डिपॉजिट नहीं लेने का निर्णय लिया है। सरकार ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं।

    By Jagran News Edited By: Chandan Kumar Updated: Sat, 05 Apr 2025 04:33 PM (IST)
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    पुणे के दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल पर गर्भवती महिला की मौत का गंभीर आरोप। (जागरण)

    पीटीआई, पुणे। महाराष्ट्र के पुणे स्थित दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल पर एक गर्भवती महिला को इलाज से इनकार करने और 10 लाख रुपये की अग्रिम राशि मांगने के आरोप लगे हैं। यह महिला भाजपा एमएलसी अमित गोरखे के निजी सचिव की पत्नी थी। इलाज के लिए दूसरे अस्पताल ले जाने के बाद महिला की मौत हो गई। इस घटना ने पूरे देश का ध्यान खींचा और सभी राजनीतिक दलों के नेताओं सहित नागरिक संगठनों की ओर से भारी विरोध हुआ।

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    घटना के बाद अस्पताल ने शनिवार को ऐलान किया कि अब उसके आपातकालीन विभाग में आने वाले किसी भी मरीज से जमा राशि नहीं ली जाएगी। इसमें आपातकालीन प्रसव और बाल चिकित्सा से जुड़ी आपात स्थितियां भी शामिल हैं। अस्पताल ने इस फैसले को तत्काल प्रभाव से लागू किया है।

    अस्पताल निदेशक का सामने आया स्पष्टीकरण

    अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ. धनंजय केलकर ने एक खुले पत्र में लिखा कि अस्पताल ने पहले कभी डिपोजिट मनी नहीं ली थी, लेकिन गंभीर मामलों और महंगे इलाज की लागत बढ़ने के चलते कुछ मामलों में अग्रिम राशि ली जाने लगी थी। उन्होंने कहा, “कल की घटना के बाद हमने इस पॉलिसी पर फिर से सोच विचार किया और फैसला लिया कि अब आपातकालीन विभाग में किसी भी मरीज से कोई भी डिपोजिट मनी नहीं ली जाएगी।”

    डॉ. केलकर ने यह भी दावा किया कि उन्होंने खुद महिला के परिजनों से कहा था कि वे अपनी क्षमता के अनुसार राशि जमा करें और उन्हें हरसंभव मदद का भरोसा भी दिया था। लेकिन परिजन बिना बताए मरीज को अस्पताल से लेकर चले गए।

    कई राजनीतिक दलों का विरोध और अस्पताल की प्रतिक्रिया

    इस घटना के बाद शुक्रवार को कई राजनीतिक दलों ने अस्पताल के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। डॉ. केलकर ने इसे अस्पताल के लिए "काला दिन" बताया और कहा कि प्रदर्शनकारियों ने जनसंपर्क अधिकारी पर सिक्के फेंके और कुछ महिला कार्यकर्ताओं ने डॉ. सुश्रुत घैसास के माता-पिता द्वारा संचालित एक अन्य अस्पताल में तोड़फोड़ की। मृत महिला के परिजनों ने डॉ. घैसास पर भर्ती से पहले 10 लाख रुपये की मांग करने का आरोप लगाया है।

    डॉ. केलकर ने कहा, “हमारा सिर तब शर्म से झुक गया जब कुछ लोगों ने लता मंगेशकर और दीनानाथ मंगेशकर के नामों पर कालिख पोत दी, वो भी कैमरे के सामने।”

    अस्पताल की आंतरिक जांच में क्या आया सामने?

    अस्पताल की आंतरिक जांच रिपोर्ट में शुक्रवार को दावा किया गया कि 10 लाख रुपये की मांग को लेकर भर्ती से इनकार करने के आरोप “भ्रामक” हैं और ये आरोप मृतका के परिजनों की ओर से “हताशा में” लगाए गए थे। रिपोर्ट के अनुसार, महिला की गर्भावस्था काफी जोखिम वाली थी और सात महीने के दो कम वजन वाले भ्रूणों के लिए कम से कम दो महीने के लिए एनआईसीयू में इलाज की जरूरत थी। अस्तपताल ने कहा है कि इलाज का अनुमानित खर्च 10 से 20 लाख रुपये था।

    अस्पताल के मुताबिक, परिवार को यह भी सुझाव दिया गया था कि अगर आर्थिक परेशानी हो तो वे मरीज को सरकारी ससून जनरल अस्पताल में भर्ती करा सकते हैं। अब इस पूरे मामले की जांच के लिए महाराष्ट्र सरकार ने पुणे स्थित संयुक्त आयुक्त (चैरिटी) के नेतृत्व में एक विशेष जांच समिति बनाई है।

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