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    Navratri 2022: महाराष्ट्र के इन मंदिरोंं से अंजान होंगे आप, नवरात्रि में लगा रहता है यहां भक्‍तों का मेला

    By Babita KashyapEdited By:
    Updated: Wed, 21 Sep 2022 02:06 PM (IST)

    Navratri 2022 महाराष्ट्र में भी देवी के कई रूपों की पूजा होती है नवरात्रि के दौरान इन मंदिरों में दर्शनों के लिए भक्‍तों का तांता लगा रहता है। आज हम आपको कुछ ऐसे ही मंदिरों के बारे में बता रहे हैं जिनका शायद आपने कभी नाम भी नहीं सुना होगा।

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    Navratri 2022: महाराष्ट्र में भी देवी के कई रूप पूजे जाते हैं। नवरात्रि के दौरान भक्‍तों की रहती है भीीड़

    मुंबई, जागरण आनलाइन डेस्‍क। Devi Temple in Maharshtra: भारत में देवी शक्ति की पूजा विभिन्‍न रूपों में की जाती है। उत्‍तर भारत में स्थित मां वैष्‍णों देवी को लेकर लोगों में काफी आस्‍था है तो वहीं पश्चिम बंगाल में मां काली की पूजा की जाती है। इसी प्रकार महाराष्ट्र में भी देवी के कई रूप पूजे जाते हैं, जैसे अम्बा बाई, कालू बाई, यामाई देवी, महालक्ष्मी मां, भवानी मां इत्यादि। महाराष्ट्र में देवी को समर्पित कई मंदिर हैं, नवरात्रि उत्सव के दौरान, इन मंदिरों में बड़ी संख्या में भक्त आते हैं।

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    भद्राकाली शक्तिपीठ 

    भारतीय उपमहाद्वीप में 51 शक्ति पीठ मंदिर हैं। उनमें से चार शक्ति पीठ मंदिर (Shaktipeeth Temple) महाराष्ट्र में हैं। ये शक्ति पीठ मंदिर महाराष्ट्र में बहुत प्रसिद्ध हैं। नवरात्रि उत्सव के नौ दिन तक लाखों भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं। नासिक के गोदावरी नदी घाटी में स्थित इस स्‍थान पर माता की ठोड़ी गिरी थी। ये स्‍थान नासिक रोड से 8 किलोमीटर दूर है। इसे भद्राकाली शक्तिपीठ कहा जाता है।

    सप्तश्रृंगी मंदिर 

    सप्तश्रृंगी मंदिर (saptashringi temple) नासिक से लगभग 60 किमी दूर स्थित है। मंदिर हरी भरी पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इसे आधा शक्तिपीठ माना जाता है। मंदिर की चोटी तक पहुंचने के लिए आपको करीब 250-400 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। नवरात्रि पर लाखों भक्‍त यहां मां के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं।

    मुंबई देवी मंदिर

    मुंबई में स्थित मंदिर देवी मुंबा को समर्पित है। इस देवी के नाम पर मुंबई शहर का नाम रखा गया है। ऐसी मान्‍यता है कि मुंबा देवी माता समुद्र से नगरी की रक्षा करती हैं। इन्‍हें समुद्र सुता के रूप में पूजा जाता है। मुंबा देवी का गौरवशाल इतिहास 400 वर्ष पुराना है। मुंबा देवी (Mumba devi Temple) की पूजा मुंबई शहर के मूल निवासियों द्वारा की जाती है जो कि कृषि और कोली समुदाय से है।

    यमई देवी मंदिर

    सतारा में स्थित यमाई देवी (yamai devi temple)कई महाराष्ट्रीयन परिवारों की कुल-देवी हैं। मंदिर सतारा जिले के औंध शहर में एक पहाड़ी पर बना हुआ है। इस मंदिर को यामाई देवी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर से 5 किमी की दूरी पर अम्‍बाबाई मंदिर है। कोल्हापुर में भगवान ज्योतिबा मंदिर के करीब यामाई देवी का एक और मंदिर स्थित है।

    तुलजा भवानी मंदिर

    सोलापुर के तुलजापुर में स्थित तुलजा मंदिर (Tulja Temple) मां भवानी को समर्पित है। वह महाराष्ट्र के कई शाही परिवारों की कुल देवी हैं। महान राजा शिव जी महाराज भी भवानी मां की पूजा करते थे।

    महालक्ष्मी मंदिर  

    कोल्‍हापुर में स्थित महालक्ष्मी मंदिर (Mahalakshmi temple) बहुत पुराना और वास्तुशिल्प रूप से समृद्ध मंदिर है। मंदिर में महालक्ष्मी, महाकाली और सरस्वती की मूर्तियां हैं। वह कई महाराष्ट्रीयन परिवारों की कुल-देवी हैं। तिरुपति बालाजी के दर्शन करने के बाद बहुत से लोग इस मंदिर में आते हैं।

    कालू बाई मंदिर 

    कालेश्वरी देवी कई महाराष्ट्रीयन परिवारों की कुल देवी हैं। भक्‍त इन्‍हें प्यार से कालूबाई (kalu bai temple) कहते हैं । प्रत्येक वर्ष जनवरी में दस दिन की अवधि में वार्षिक कलुबाई जात्रा तीर्थयात्रा होती है।

    अम्बा देवी मंदिर

    अम्बा देवी मंदिर (Amba Devi Temple) एक प्राचीन मंदिर है जो नागपुर से 155 किमी दूर अमरावती शहर के केंद्र में स्थित है। किंवदंती के अनुसार, भगवान कृष्ण ने अम्बा देवी मंदिर में प्रार्थना करने के लिए रुक्मिणी का अपहरण करने के बाद उससे विवाह किया था। यह मंदिर महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में लोकप्रिय है।

    एकवीरा देवी मंदिर 

    वह रेणुका माता (भगवान परहुराम की माता) की अवतार हैं और कई मंदिरों में उन्हें रेणुका माता के रूप में भी पूजा जाता है। यह मंदिर लोनावाला के पास कार्ला गुफाओं के पास स्थित है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर का निर्माण पांडवों ने एक रात में किया था।

    एकवीरा देवी उनकी भक्ति की परीक्षा लेना चाहती थीं। इसलिए उन्‍होंने यह शर्त रखी कि मंदिर एक रात में ही बनना है। पांडवों ने एक ही रात में इस खूबसूरत मंदिर को बनाया था। तब एकवीरा देवी ने पांडवों को आशीर्वाद दिया कि गुप्त वनवास के एक वर्ष के दौरान किसी को इस बारे में पता नहीं चलेगा।

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