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    Maharashtra: दादरा-नगर हवेली के सांसद मोहन देलकर ने की आत्महत्या

    By Sachin Kumar MishraEdited By:
    Updated: Mon, 22 Feb 2021 07:34 PM (IST)

    Maharashtra 58 वर्षीय मोहन देलकर ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत सिलवासा की फैक्ट्रियों में काम करने वाले जनजातीय समुदाय के लोगों के हक की लड़ाई से ...और पढ़ें

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    मुंबई में दादरा नगर हवेली के सांसद मोहन डेलकर की संदिग्ध मौत। फाइल फोटो

    मुंबई, राज्य ब्यूरो। केंद्र शासित प्रदेश दादरा-नगर हवेली के निर्दलीय सांसद मोहन देलकर ने सोमवार को दक्षिण मुंबई के एक होटल में आत्महत्या कर ली। उन्होंने आत्महत्या से पहले गुजराती में लिखा एक सुसाइड नोट भी छोड़ा है। देलकर सातवीं बार दादरा-नगर हवेली से संसद सदस्य बने थे। पुलिस ने आत्महत्या के कारणों की जांच शुरू कर दी है। सांसद मोहन देलकर रविवार रात दक्षिण मुंबई के मरीन ड्राइव स्थित एक होटल में आकर रुके थे। पुलिस अधिकारियों के अनुसार जिस कमरे में वह रुके थे, उसके बगल के कमरे में ही उनका ड्राइवर भी रुका था। ड्राइवर ने सुबह से कई बार देलकर से संपर्क करने की कोशिश की। लेकिन न तो उनके कमरे का दरवाजा खुला, न ही उन्होंने फोन उठाया।

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    तब ड्राइवर ने होटल के कर्मचारियों को इसकी सूचना दी। जब दूसरी तरफ से कोई कमरे में घुसा तो उसे देलकर पंखे से लटकते दिखाई दिए। तब पुलिस को सूचना दी गई। तब तक अपरान्ह दो बज चुके थे। देलकर का शव पंचनामा के बाद पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है। पुलिस का कहना है कि मौत के कारणों का खुलासा पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही हो सकेगा। सात बार के सांसद देलकर ने आत्महत्या क्यों की, यह भी रहस्य बना हुआ है। हालांकि देलकर के कमरे से पुलिस को एक सुसाइड नोट मिला है। लेकिन पुलिस उनके गृह व कार्य क्षेत्र सिलवासा की भी पड़ताल कर रही है। मुंबई से सिलवासा की दूरी सिर्फ 172 किलोमीटर है।

    58 वर्षीय मोहन देलकर ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत सिलवासा की फैक्ट्रियों में काम करने वाले जनजातीय समुदाय के लोगों के हक की लड़ाई से की थी। फिर उन्होंने अलग-अलग दलों में रहते हुए अपना राजनीतिक सफर आगे बढ़ाया। 1985 में उन्होंने आदिवासी विकास संगठन बनाया और 1989 में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में पहली बार संसद में पहुंचे। 1991 व 1996 में वह कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीते। लेकिन 1998 में वह भाजपा में आ गए और उसके टिकट पर ही चुनाव भी जीते। 1999 में वह एक बार फिर निर्दलीय व 2004 में भारतीय नवशक्ति पार्टी के टिकट पर चुने गए। 2009 व 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। लेकिन 2019 में वह एक बार फिर निर्दलीय ही भाजपा उम्मीदवार को हरा कर संसद में पहुंचे। निर्दलीय सांसद रहते हुए ही वह पिछले साल जनतादल (यूनाइटेड) में शामिल हो गए थे।