Maharashtra Politics: 'विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक' पर मचा सियासी घमासान, सुप्रिया सुले ने की रॉकेट एक्ट से तुलना
Maharashtra Politics महाराष्ट्र की राजनीति में विशेष सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम विधेयक को लेकर सियासी घमासान मच गया है। राकांपा की सांसद सुप्रिया सुले ने इसकी तुलना अंग्रेजी राज में लाए गए रॉलेट एक्ट से की है। उन्होंने कहा है कि महाराष्ट्र सरकार ने एक नया विधेयक पेश करने का फैसला किया है जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कमजोर करता है।

जेएनएन, मुंबई। महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रस्तावित विशेष सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम विधेयक को नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन करने वाला बताते हुए हुए राकांपा (शरदचंद्र पवार) की सांसद सुप्रिया सुले ने इसकी तुलना अंग्रेजी राज में लाए गए रॉलेट एक्ट से की है। उन्होंने सवाल किया है कि क्या राज्य में पुलिस शासन जरूरी है?
दरअसल, सुप्रिया सुले ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किए गए अपने एक बयान में कहा है कि महाराष्ट्र सरकार ने एक नया विधेयक पेश करने का फैसला किया है जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कमजोर करता है। इस विधेयक के माध्यम से आम लोगों के सरकार के खिलाफ बोलने का अधिकार छीन लिया जाएगा।
क्या बोलीं सुप्रिया सुले?
बता दें कि राकांपा सांसद सुप्रिया ने एक्स पोस्ट में आगे लिखा कि एक सच्चे स्वस्थ लोकतंत्र में असहमतिपूर्ण विचारों का सम्मान किया जाता है। लोकतंत्र का सिद्धांत विपक्षी आवाजों को भी महत्व देता है, क्योंकि वे सुनिश्चित करते हैं कि सत्ता में बैठे लोग जवाबदेह रहें और जनता की राय का सम्मान करें। वहीं, बारामती से सांसद सुले ने पोस्ट में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे एवं अजीत पवार को टैग किया है।
नए विधेयक को बताया खरतनाक
उन्होंने आगे लिखा है कि प्रस्तावित विधेयक में ‘अवैध कृत्यों’ की परिभाषा सरकारी एजेंसियों को असीमित शक्तियां प्रदान करती प्रतीत होती है। यह प्रभावी रूप से सरकार को पुलिस राज स्थापित करने का लाइसेंस देता है, जिसका दुरुपयोग उन व्यक्तियों, संस्थानों या संगठनों के विरुद्ध किया जा सकता है, जो लोकतांत्रिक तरीके से रचनात्मक विरोध व्यक्त करते हैं।
प्रशासन को अनियंत्रित शक्तियां प्रदान करने की कोशिश
उनके अनुसार यह विधेयक ‘हम भारत के लोग’ की अवधारणा को कमजोर करता है। सुले ने कहा है कि प्रशासन को अनियंत्रित शक्तियां प्रदान करने का यह जोखिम है कि लोगों को बदले की भावना से परेशान किया जा सकता है। सरकारी नीतियों और निर्णयों की आलोचना करना, शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन करना या मार्च आयोजित करना सभी अवैध कार्य माने जा सकते हैं। यह विधेयक वैचारिक विविधता के सिद्धांतों की अवहेलना करता है और नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का सीधे उल्लंघन करता है।
रॉलेट एक्ट से की तुलना
इसके अलावा, यह विधेयक सरकार को कुछ न्यायिक प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप करने की शक्ति देता है, जो न्यायिक स्वतंत्रता के लिए सीधा खतरा पैदा करता है। इसके कुछ प्रावधान मौलिक संवैधानिक अधिकारों, जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संघ बनाने की स्वतंत्रता और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का अतिक्रमण करते हैं।
ऐतिहासिक रूप से, अंग्रेजों ने औपनिवेशिक शासन के दौरान विपक्ष को दबाने के लिए इसी तरह का कानून ‘रॉलेट एक्ट’ लाने का प्रयास किया था। यह विधेयक भारतीय संविधान के मूल सिद्धांतों का सीधा खंडन है और हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं। हम सरकार से इस विधेयक के मसौदे की समीक्षा करने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह करते हैं कि संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन न हो।
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