ओलिव रिडले कछुए की हो रही रियल टाइम मॉनिटरिंग, आखिर क्या है सैटेलाइट टैगिंग परियोजना?
ओलिव रिडले कछुए विश्व में पाए जाने वाले सभी समुद्री कछुओं में सबसे छोटे और सबसे अधिक हैं। यह कछुए अपने सामूहिक घोंसले (Mass Nesting) अरीबदा (Arribada) के लिये सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं। हजारों की तादाद में मादा कछुए ओडिशा के गहिरमाथा समुद्र तट पर एक साथ आते हैं। यह कछुए प्रशांत हिन्द और अटलांटिक महासागरों के गर्म जल में पाए जाते हैं। वहीं यह सभी मांसाहारी होते हैं।

रंजीत जाधव, मुंबई, (मिड-डे)। ओलिव रिडले कछुआ, बागेश्वरी (Bageshri) जिसे सैटेलाइट से टैग किया गया है, वो श्रीलंका के दक्षिणी तट की दो परिक्रमा पूरी करने के बाद पूर्वी तट की ओर आगे बढ़ चुकी है। वो फिलहाल श्रीलंका के पूर्वी तटीय शहर कलमुनाई से 200 किमी दूर है। दिलचस्प बात यह है कि जिस क्षेत्र में अभी बागेश्वरी मौजूद है, उस क्षेत्र में इस समय ओडिशा में कछुए सामूहिक घोसले बनाते हैं।
गहिरमाथा समुद्र तट पर आकर घोंसला बनाते हैं कछुए
बता दें कि ओलिव रिडले कछुए विश्व में पाए जाने वाले सभी समुद्री कछुओं में सबसे छोटे और सबसे अधिक हैं। यह कछुए अपने सामूहिक घोंसले (Mass Nesting) अरीबदा (Arribada) के लिये सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं। हजारों की तादाद में मादा कछुए ओडिशा के गहिरमाथा समुद्र तट पर एक साथ आते हैं। यह कछुए प्रशांत, हिन्द और अटलांटिक महासागरों के गर्म जल में पाए जाते हैं। वहीं, यह सभी मांसाहारी होते हैं।
गुहाघर से 750 किलोमीटर दूर गुहा: भारतीय वन्यजीव संस्थान
भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के निदेशक वीरेंद्र तिवारी ने जानकारी दी कि बागेश्वरी द्वारा तय की गई दूरी लगभग 2000 किलोमीटर है और सैटेलाइट टैग कछुआ गुहा अब तक गुहाघर से 750 किलोमीटर दूर है, इन दोनों कछुओं को इस साल फरवरी में सैटेलाइट टैग किया गया था।''
दो कछुओं में लगाई गई थी सैटेलाइट
बता दें कि इस साल 21 फरवरी की रात को भारतीय वन्यजीव संस्थान ने मैंग्रोव फाउंडेशन के सदस्यों और महाराष्ट्र वन विभाग के रत्नागिरी डिवीजन ने गुहागर के समुद्र तट पर गश्त की। दो मादा ओलिव रिडले कछुए जो समुद्र तट पर घोंसला बनाने आए थे, उन्हें घोंसला बनाने के बाद पकड़ लिया गया था।
23 फरवरी को भारतीय वन्यजीव संस्थान टीम द्वारा सैटेलाइट ट्रांसमीटर लगाने के बाद कछुओं को सुबह समुद्र में वापस लौटा दिया गया था। मादा कछुओं को बागेश्वरी और गुहा नाम दिया गया।
जानें सैटेलाइट टैगिंग परियोजना के बारे में
महाराष्ट्र तट पर ओलिव रिडले समुद्री कछुओं के छिटपुट घोंसले हैं। अब तक ओलिव रिडलिस को केवल पूर्वी तट पर ही टैग किया गया है। यह भारत के पश्चिमी तट पर ओलिव रिडलिस की पहली सैटेलाइट टैगिंग परियोजना है।
डॉ. आर. सुरेश कुमार के अनुसार, भारतीय वन्यजीव संस्थान के लुप्तप्राय प्रजाति प्रबंधन विभाग के वैज्ञानिक अपनी टीम के साथ दोनों कछुओं की दिलचस्प यात्रा पर नजर रख रहे हैं।
दो अलग-अलग यात्रा पर निकले ओलिव रिडले कछुए
डॉ. आर. सुरेश कुमार के अनुसार उपलब्ध ट्रैकिंग डेटा से यह स्पष्ट हो रहा है कि हम संभवतः अब ऑलिव रिडले कछुओं की दो आबादी से निपट रहे हैं। महाराष्ट्र के पश्चिमी तट पर आने वाली एकान्त घोंसले वाली ओलिव रिडले कछुए दो भाग में बंटे हैं।
एक जो अरब सागर के निवासी हैं और दूसरी प्रवासी आबादी है जो अरब सागर से दूर जा रही है और श्रीलंका के जल क्षेत्र से या उससे भी आगे हो सकती है।
डॉ. आर. सुरेश कुमार ने आगे बताया कि महाराष्ट्र के पश्चिमी तट पर अन्य समुद्री घाटियों से ओलिव रिडले कछुओं की आबादी आ रही है। वहां निवासी और प्रवासी आबादी और आवाजाही है प्रत्येक जनसंख्या एक-दूसरे से भिन्न होगी। यदि हम बागेश्री का ट्रैक देखें तो इससे यह पता चलता है कि ये कछुआ जानती है वह कहां जा रही है। जबकि गुहा अपने क्षेत्र को खोज रहा है।
सैटेलाइट से टैग किए गए कछुओं पर नजर रखने वाले भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के वैज्ञानिकों को भी लगता है कि आने वाले दिनों और महीनों में और भी दिलचस्प अपडेट सामने आ सकते हैं।
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