Children Mortgage: यहां के लोग इसलिए अपने बच्चों को 'गिरवी' रखने के लिए हैं मजबूर
Children Mortgage देश में आज भी ऐसे कुछ राज्य हैं जहां पर गरीबी की वजह से मां-बाप अपने बच्चों का भरण-पोषण नहीं कर पाते हैं। चंद पैसों की खातिर वह अपने ही बच्चों को गिरवी रखने को मजबूर हो जाते हैं। इन बच्चों से बंधुआ मजदूरी करवाई जाती है।
नई दिल्ली, जेएनएन। Children Mortgage: आपने जमीन, मकान, सोना और चांदी आदि को तो 'गिरवी' (Children Mortgage) रखने की बात तो सुनी होगी। मगर देश में आज भी ऐसे कुछ राज्य हैं, जहां पर गरीबी की वजह से मां-बाप अपने बच्चों का भरण-पोषण नहीं कर पाते हैं। चंद पैसों की खातिर वह अपने ही बच्चों को 'गिरवी' रखने को मजबूर हो जाते हैं। इसके बाद इन बच्चों से बंधुआ मजदूरी (Bonded Child Labour) करवाई जाती है और उन्हें अपने परिजनों से मिलने भी नहीं दिया जाता है। इन बच्चों से भेड़ और बकरियां चरवाई जाती हैं। इसके बदले में बच्चों के परिजनों को कुछ पैसे मिल जाते हैं और दलालों को भी कमीशन मिल जाता है।
बंधुआ मजदूरी के दौरान बच्चों को प्रताड़ित भी किया जाता है
बंधुआ मजदूरी के दौरान इन बच्चों से खूब काम करवाया जाता है। साथ ही, उन्हें प्रताड़ित भी किया जाता है। इसके बाद शायद की कुछ बच्चे (Children) वापस अपने घरों में लौट पाते हैं। ज्यादातर या तो बीमारी की वजह से दम तोड़ देते हैं या फिर काफी कमजोर हो जाते हैं। कुछ बच्चों का तो पता ही नहीं चलता है। परिजन अपने जिगर के टुकड़ों के वापस आने की राह तकते रहते हैं। मगर वह उनका दीदार नहीं कर पाते हैं। उन्हें इस बात की टीस भी रहती है कि क्यों चंद पैसों के लिए उन्होंने बच्चों को भेज दिया। बच्चों के ले जाते समय दलाल उनके मां-बाप को तरह-तरह के लालच देते हैं। यह भी वादा करते हैं कि उन्हें हर माह बच्चों से मुलाकात करवा दी जाएगी, मगर बाद में कई साल गुजर जाते हैं, फिर भी इन बच्चों और उनके परिजनों का आमना-सामना नहीं हो पाता है।
इन राज्यों के बच्चों के करवाई जा रही है बंधुआ मजदूरी
महाराष्ट्र (Maharashtra) में 2022 में नासिक के इगतपुरी तालुका के उभाडे गांव के आठ आदिवासी जिन्हें बधुआ मजदूरी के लिए चंद पैसों के लिए ले जाया गया था और बाद में अभी तक उनका पता ही नहीं चल सका है। इसी तरह के मामले सन 2020 में राजस्थान (Rajasthan) में सामने आए थे। डूंगरपुर के टेंगरवाड़ा गांव का रामजी, गुड्डी व चुंडई गांव के सोमा, राम्या और नरसी व उदयपुर के उमरिया, सामोली व कुकावास गांव में भी हैं। इन गांवों के बच्चों को दलाल के मार्फत इनके माता-पिता ने मजदूरी करने और गड़रियों के पास भेड़ चराने के लिए गिरवी रखा था। गिरवी रखने के बदले बच्चों को दोनों समय का भोजन और परिवार के मुखिया को 2500 से 3000 मासिक दिए गए थे। दलाल के माध्यम से गिरवी रखे गए ये बच्चे जब पिछले कुछ माह में वापस घर लौटे तो या तो अपाहिज थे या फिर उनका शरीर इतना खराब हो चुका था कि वे काम करने की स्थिति में नहीं रहे।
इस वहज से वापस नहीं आ पाते हैं बच्चे
भेड़ पालकों के पास गिरवी रखे गए बच्चों का वापस घर (House) लौटना काफी मुश्किल होता है। अनपढ़ बच्चों को दलाल भेड़ पालकों के पास छोड़ देता है। गड़रिये जानवर चराते हुए एक से दूसरे राज्य में पहुंच जाते हैं। बच्चे वहां से निकल नहीं पाते ना तो उन्हें अपने प्रदेश के नाम का पता होता है और ना ही जिले का नाम ध्यान में रहता है। इस कारण वे वापस नहीं लौट सकते। इधर, परिजन उनकी राह तकते रहते हैं।
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