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    'I Love You कहने का मतलब यौन उत्पीड़न का इरादा नहीं', हाई कोर्ट ने किस मामले में की ये टिप्पणी?

    नागपुर उच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा कि सिर्फ आई लव यू कहने को यौन उत्पीड़न का इरादा नहीं माना जा सकता। न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी-फाल्के ने स्पष्ट किया कि ऐसे शब्दों के साथ यौन मंशा दर्शाने वाले अन्य कृत्य भी होने चाहिए। अदालत ने एक व्यक्ति को बरी कर दिया जिस पर 2015 में छेड़छाड़ और पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज था।

    By Jagran News Edited By: Abhinav Tripathi Updated: Tue, 01 Jul 2025 08:08 PM (IST)
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    'आई लव यू' कहने में यौन उत्पीड़न का इरादा नहीं झलकता: उच्च न्यायालय

    राज्य ब्यूरो, मुंबई। मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने करीब एक दशक पहले हुई घटना में छेड़छाड़ के आरोपी व्यक्ति को यह कहते हुए बरी कर दिया कि सिर्फ 'आई लव यू' कहने का मतलब 'यौन उत्पीड़न का इरादा’ नहीं माना जा सकता।

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    उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में एक अदालत की अध्यक्षता करने वाली न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी-फाल्के ने कहा कि जैसा कि कानून में माना जाता है, ‘आई लव यू' जैसे शब्द अपने आप में ‘यौन उत्पीड़न के इरादे’ के समान नहीं माने जा सकते। अगर बोले गए शब्दों को यौन इरादे के रूप में लिया जाए, तो इसके साथ कुछ और भी होना चाहिए, जो यह स्पष्ट करे कि असली इरादा सेक्स के पहलू को घसीटना है। अर्थात, कृत्य से यह झलकना चाहिए।

    कोर्ट ने आरोपी को किया बरी

    अदालत ने यह कहते हुए 2015 में भारतीय दंड संहिता और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पोक्सो) के तहत दर्ज मामले में उस व्यक्ति को बरी कर दिया, जिसकी उम्र अब लगभग 35 वर्ष है। सुनवाई के दौरान सोनाली खोबरागड़े अपीलकर्ता की वकील थीं, जबकि अतिरिक्त लोक अभियोजक एमजे खान प्रतिवादी/राज्य का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

    जानिए क्या है पूरा मामला

    2017 में नागपुर की एक सत्र अदालत ने अपीलकर्ता को तीन वर्ष का कठोर कारावास तथा 5,000 रुपए जुर्माना अदा करने का आदेश दिया था। इस घटना के समय पीड़िता 17 वर्ष की थी और नागपुर जिले के काटोल की निवासी थी। जबकि आरोपित की उम्र उस समय लगभग 25 वर्ष थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपित ने मोटरसाइकिल पर उसका पीछा किया। उससे उसका नाम बताने पर जोर दिया। फिर उसका दाहिना हाथ पकड़ लिया और कहा ‘आई लव यू’ । इसके बाद पीड़िता अपने घर गई और उसने अपने पिता को घटना बताई। इसके बाद रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी।

    कोर्ट ने कहा- पोक्सो के तहत नहीं बनता कोई केस

    न्यायाधीश ने 26 पन्नों के फैसले में कहा है कि पीड़िता के साक्ष्य की प्रकृति को देखते हुए पोक्सो अधिनियम की धारा 8 के तहत अपराध भी नहीं बनता है। क्योंकि ऐसा कोई आरोप नहीं है कि आरोपी ने यौन उत्पीड़न के इरादे से पीड़िता के निजी अंग को छुआ हो। इसलिए धारा 8 के तहत अपराध भी नहीं बनता है।

    अभियोजन पक्ष द्वारा पीड़िता पर यौन उत्पीड़न साबित नहीं किया जा सका है। न्यायाधीश ने आरोपित को बरी करते हुए अपने आदेश में कहा कि आरोपित के खिलाफ न तो आईपीसी की धारा 354-ए और 354-डी के तहत और ना ही पोक्सो अधिनियम की धारा 8 के तहत कोई अपराध बनता है।

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