टाइगर मेमन की संपत्ति केंद्र को सौंपने का आदेश, मुंबई सीरियल धमाकों के 32 साल बाद टाडा कोर्ट ने सुनाया फैसला
सीबीआई के अनुसार धमाकों की साजिश पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआई के इशारे पर अंडरवर्ल्ड डान दाऊद इब्राहिम ने अपने गुर्गे टाइगर मेमन और मोहम्मद दोसा की मदद से रची थी। दाऊद और टाइगर मेमन अब भी वांछित आरोपित हैं। टाइगर के भाई याकूब को इस मामले में मृत्युदंड दिया जा चुका है। 1993 में सक्षम प्राधिकारी ने संपत्तियों को जब्त करने का आदेश दिया था।

पीटीआई, मुंबई। 1993 में मुंबई में हुए सीरियल बम धमाकों के मुख्य साजिशकर्ता में से एक टाइगर मेमन तथा उसके परिवार की 14 संपत्तियां केंद्र सरकार को सौंपी जाएगी। बम धमाकों के 32 साल बाद मुंबई की विशेष अदालत ने यह आदेश दिया है। ये संपत्तियां 1994 से बांबे हाई कोर्ट के 'रिसीवर' के कब्जे में थीं।
इन संपत्तियों में बांद्रा पश्चिम की इमारत में एक फ्लैट, माहिम में कार्यालय परिसर, माहिम में एक भूखंड, सांताक्रूज (पूर्व) में भूखंड और फ्लैट, कुर्ला की इमारत में दो फ्लैट, मोहम्मद अली रोड पर एक कार्यालय, डोंगरी में दुकान और भूखंड, मनीष मार्केट में तीन दुकानें, मुंबई की शेख मेमन स्ट्रीट पर स्थित एक इमारत शामिल है।
मुंबई में 12 मार्च 1993 को हुए सिलसिलेवार 13 बम धमाकों में 257 लोगों की जान चली गई थी और 700 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। बाद में सीबीआइ ने मामले की जांच अपने हाथ में ली थी।
26 मार्च को पारित आदेश में आतंकवादी और विध्वंसकारी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम-1987 (टाडा) अदालत के जज वीडी केदार ने कहा, 'अचल संपत्तियों का कब्जा केंद्र सरकार को सौंपा जाना चाहिए। केंद्र सरकार 14 अचल संपत्तियों पर कब्जा पाने की हकदार है।'
1993 में सक्षम प्राधिकारी ने संपत्तियों को जब्त करने का आदेश दिया था। हालांकि, बाद में उक्त संपत्तियों को 1994 में विशेष टाडा अदालत द्वारा कुर्क कर लिया गया था, जो 1993 के मुंबई बम विस्फोट मामले में सुनवाई कर रही थी। तब से संपत्तियां हाई कोर्ट के कब्जे में थीं।
तस्कर और विदेशी मुद्रा हेरफेर (संपत्ति जब्ती) अधिनियम के तहत सक्षम प्राधिकारी ने संपत्तियों को छोड़ने की मांग की थी। याचिका में कहा गया कि उपरोक्त अधिनियम का कार्य तस्करों की अवैध रूप से अर्जित संपत्तियों का पता लगाना और केंद्र सरकार को उन्हें जब्त करने का आदेश देना है।
अदालत ने इस संबंध में टाइगर मेमन और उसके परिवार को नोटिस जारी किया था। हालांकि, उन्होंने कोई जवाब दाखिल नहीं किया। इसके बाद जज ने रिकार्ड पर मौजूद दस्तावेज का अवलोकन करने के बाद माना कि 1994 में पारित कुर्की आदेश रद करना आवश्यक है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।