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    Maharashtra Politics: भाजपा के सामने मराठा-OBC में संतुलन साधने की चुनौती, अब इस रणनीति से BJP बदलेगी समीकरण

    महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी इन दिनों अपने नए मराठा साथियों एवं परंपरागत ओबीसी वोट बैंक के बीच संतुलन साधने की चुनौती से जूझ रही है। एक तरफ मराठा आंदोलनकारी अपनी जिद पर अड़े हैं तो दूसरी ओर ओबीसी भी अपनी मांगें मनवाने पर तुले हैं। राज्य का सबसे सशक्त वोट बैंक मराठा समुदाय कभी भाजपा के साथ नहीं रहा है।

    By Jagran NewsEdited By: Shubham SharmaUpdated: Thu, 12 Oct 2023 06:38 AM (IST)
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    महाराष्ट्र में भाजपा के सामने मराठा ओबीसी में संतुलन साधने की चुनौती।

    ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। महाराष्ट्र में भाजपा इन दिनों अपने नए मराठा साथियों एवं परंपरागत ओबीसी वोट बैंक के बीच संतुलन साधने की चुनौती से जूझ रही है। एक तरफ मराठा आंदोलनकारी अपनी जिद पर अड़े हैं तो दूसरी ओर ओबीसी भी अपनी मांगें मनवाने पर तुले हैं। राज्य का सबसे सशक्त वोट बैंक मराठा समुदाय कभी भाजपा के साथ नहीं रहा है। अपने जनसंघ अवतार में वह ब्राह्मण-बनिया की शहरी आधार वाली पार्टी मानी जाती रही। 1980 में भाजपा के गठन के साथ ही उसने ‘माधव’ समीकरण का सहारा लेना शुरू कर दिया।

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    मराठा नेताओं का नहीं कर पाती मुकाबला

    माधव, यानी माली, धनगर और वंजारी। इस समीकरण में ना.सा. फरांदे माली समाज का अन्ना डांगे धनगर समाज का और गोपीनाथ मुंडे वंजारी समाज का प्रतिनिधित्व करते थे। हालांकि उस दौर में भाजपा के पास सूर्यभान वहाडणे और जयसिंह गायकवाड़ जैसे वरिष्ठ मराठा नेता थे और विनोद तावड़े जैसे मराठा नेताओं का उदय हो रहा था, लेकिन भाजपा की ये मराठा लाबी कभी कांग्रेस के शरद पवार, विलासराव देशमुख, शंकरराव चह्वाण जैसे मराठा नेताओं का मुकाबला नहीं कर पाती थी।

    भाजपा के इसी सीमित जनाधार के कारण ही शिवसेना भी उसे राज्य की राजनीति में हमेशा दबाकर रखना चाहती थी, लेकिन 2014 की मोदी लहर के कारण राज्य में न सिर्फ समीकरण बदले, बल्कि भाजपा के हौसले भी बुलंद हुए। शिवसेना से अचानक टूटे गठबंधन के बावजूद वह राज्य की 288 में से 120 से अधिक सीटें जीतने में कामयाब रही। राज्य में पहली बार देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में भाजपानीत सरकार बनी, जिसमें एक माह बाद शिवसेना भी छोटे भाई के रूप में शामिल हुई।

    45 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य

    2019 का चुनाव भाजपा-शिवसेना मिलकर लड़ीं। दोनों दलों के बीच सीटों का बंटवारा हुआ। इसके बावजूद भाजपा 105 (10 बागियों को मिलाकर 115) सीटें जीतने में सफल रही। लोकसभा चुनाव में भी भाजपा-शिवसेना गठबंधन मिलकर 48 में से 41 सीटें जीतने में सफल रहा था। चूंकि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस बार महाराष्ट्र में 45 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चल रहा है, इसीलिए एकनाथ शिंदे के साथ अच्छी सरकार चलने के बावजूद भाजपा ने राकांपा नेता अजीत पवार को उनके 42 साथियों के साथ अपनी ओर करने की नीति अपनाई है।

    ओबीसी वर्ग भाजपा का वोट बैंक

    यानी अब भाजपा के अपने परंपरागत मतदाताओं के साथ ही एकनाथ शिंदे और अजीत पवार जैसे दो बड़े मराठा नेता भी उसके साथ आ गए हैं। भाजपा इस समीकरण के साथ अगले लोकसभा और विधानसभा चुनाव की किसी नई रणनीति पर काम शुरू कर पाती, इसके पहले ही एक मराठा युवक मनोज जरांगे पाटिल ने राज्य के सभी मराठों को कुनबी मराठा का प्रमाणपत्र देकर उन्हें ओबीसी कोटे में आरक्षण देने की मांग उठाकर भाजपा के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी है। जरांगे पाटिल की इस मांग का विरोध उस ओबीसी वर्ग की ओर से हो रहा है, जिसे भाजपा का वोट बैंक माना जाता रहा है।

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