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Sharad Pawar Birthday: 80 की उम्र में 18 का जोश, शरद पवार के जीवन से जुड़े अनछुए पहलु

Sharad Pawar Birthday 12 दिसंबर 2020 को 80 वर्ष के होने जा रहे शरद पवार देश के सर्वाधिक अनुभवी राजनीतिज्ञों मे से एक हैं। कैंसर की लंबी बीमारी के बावजूद उनकी सक्रियता में कोई कमी नहीं आई है। कश्मीर से कन्याकुमारी कच्छ से कामरूप तक उनके अनगिनत राजनीतिक मित्र हैं।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Sat, 12 Dec 2020 06:05 AM (IST)Updated: Sat, 12 Dec 2020 10:06 AM (IST)
Sharad Pawar Birthday: 80 की उम्र में 18 का जोश, शरद पवार के जीवन से जुड़े अनछुए पहलु
जानिए-शरद पवार से जुड़ी रोचक जानकारी। फाइल फोटो

मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। Sharad Pawar Birthday: संसद भवन पर आतंकी हमले के ठीक एक दिन पहले 12 दिसंबर, 2001 को मुंबई के रेसकोर्स में एक भव्य समारोह के बीच शरद पवार ने अपना 61वां जन्मदिन मनाते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सामने बड़ी बेबाकी से स्वीकार किया था कि वह भी देश के प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। इस पद के लिए आवश्यक सारी योग्यताओं के बावजूद अब तक तो वह प्रधानमंत्री नहीं बन सके। लेकिन उन्होंने हार भी नहीं मानी है। देश के अखबारों और समाचार चैनलों में दो दिन से ये खबरें चल रही हैं कि शरद पवार को संप्रग का अध्यक्ष बनाया जा सकता है। हालांकि स्वयं उन्होंने और उनकी पार्टी ने इन शिगूफों का खंडन किया है। लेकिन उन्हीं के लोगों की तरफ से इस बात को हवा भी दी जा रही है। कहा जा रहा है कि यह प्रस्ताव कांग्रेस के ही एक वर्ग की ओर से आया है। यह संभव भी है। क्योंकि कांग्रेस में नेतृत्वविहीनता की स्थिति बहुत पहले से महसूस की जा रही है। संभवतः उस ‘ग्रैंड ओल्ड पार्टी’ में लोग यह महसूस करने लगे हैं कि पार्टी में तो बदलाव हो नहीं सकता, तो संप्रग में ही बदलाव करके विपक्ष को कुछ धार दी जाए।

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मैं नहीं थका हूंः शरद पवार

करीब साल भर पहले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार शिंदे ने एक बयान में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कांग्रेस में विलय का प्रस्ताव रखते हुए कहा था कि भले ही कांग्रेस और राकांपा दो अलग-अलग पार्टियां हैं। लेकिन भविष्य में हम दोनों एक-दूसरे के करीब आएंगे, क्योंकि अब शरद पवार भी थक गए हैं, और हम भी थक गए हैं। लेकिन शिंदे के इस बयान का खंडन शरद पवार ने अगले ही दिन यह कहकर कर दिया था कि शिंदे के बारे में तो मैं नहीं जानता। लेकिन मैं नहीं थका हूं। राकांपा एक अलग पार्टी है, और उसका पृथक अस्तित्व कायम रहेगा। और उसी विधानसभा चुनाव में पवार ने अपने कथन को सिद्ध भी कर दिखाया। प्रवर्तन निदेशालय द्वारा उन्हें नोटिस भेजा जाना तब बहुत मजबूत दिख रही भाजपा को ऐसा भारी पड़ा कि ‘मैं पुनः आऊंगा’ का नारा बुलंद करने वाले देवेंद्र फड़णवीस सत्ता से ही बाहर हो गए।

पवार ने पांव में चोट के बावजूद की सभाएं

पवार ने पांव में चोट के बावजूद विधानसभा चुनाव में धुआंधार दौरे और सभाएं करके भाजपा की नाक में दम कर दिया। सातारा में घनघोर बरसात के बीच रैली को संबोधित कर छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज उदयन राजे भोसले को लोकसभा के उपचुनाव में पटखनी दे दी। भोसले के राकांपा छोड़कर भाजपा में जाने से ही वहां उपचुनाव हुआ था। चुनाव बाद भी वह हुआ, जिसकी तनिक भी उम्मीद भाजपा को नहीं थी। यह शरद पवार का ही प्रताप था कि भाजपा के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ी शिवसेना ने चुनाव बाद कांग्रेस-राकांपा के साथ आकर सरकार बना ली। भाजपा के लिए यह अप्रत्याशित झटका था। तब से प्रदेश भाजपा के नेता लगातार यह कहते आ रहे हैं कि यह सरकार अपने अंतर्विरोधों से गिर जाएगी। लेकिन वह भूल जाते हैं कि इस सरकार के शिल्पकार वही शरद पवार हैं, 1999 में कांग्रेस के साथ मिलकर बनाई गई जिनकी सरकार पूरे 15 साल चली थी। जबकि 1999 में ही सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस से अलग होकर राकांपा का गठन किए तब ज्यादा दिन नहीं हुए थे।

वाजपेयी ने इसलिए की थी सराहना

इसमें कोई शक नहीं कि 12 दिसंबर, 2020 को 80 वर्ष के होने जा रहे शरद पवार आज देश के सर्वाधिक अनुभवी राजनीतिज्ञों मे से एक हैं। कैंसर की लंबी बीमारी के बावजूद उनकी सक्रियता में कोई कमी नहीं आई है। कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से कामरूप तक उनके अनगिनत राजनीतिक मित्र हैं। यह मित्रता उन्होंने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में विभिन्न पदों पर रहते हुए अर्जित की है। उनके मित्रों की ऐसी ही सूची में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं। एक-दूसरे पर राजनीतिक टिप्पणियां करना अलग बात है। लेकिन राष्ट्रहित एवं विकास के मुद्दे पर खरी बात कहना भी उन्हें आता है। कुछ ही दिनों पहले चीन के साथ सीमा विवाद के दौरान प्रधानमंत्री के साथ हुई सर्वदलीय बैठक में जब कुछ लोग राजनीति करते दिखे, तो शरद पवार उन्हें आईना दिखाने में पीछे नहीं रहे थे। 20 साल पहले जब कच्छ में भूकंप ने भारी तबाही मचाई तो खुद शरद पवार ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से कहा था कि उन्हें लातूर-उस्मानाबाद के भूकंप का अनुभव है, वह गुजरात में काम करना चाहते हैं। उनके इस प्रस्ताव की वाजपेयी ने न सिर्फ सराहना की, बल्कि उन्हें आपदा प्रबंधन समिति के प्रमुख की जिम्मेदारी भी सौंप दी।

ताकि देश को मजबूत विपक्ष मिल सके

आज के दौर में न सिर्फ विपक्षी दल, बल्कि सत्ता पक्ष के लोग भी एक मजबूत विपक्ष की कमी शिद्दत से महसूस कर रहे हैं। ‘तथाकथित विपक्ष’ की दिशाहीनता उस विपक्षी दल के अंदर भी खदबदाहट पैदा कर रही है। सही और परिपक्व विपक्ष का न होना संसद और संसद के बाहर संवादहीनता की स्थिति पैदा कर रहा है। संसदीय और लोकतांत्रिक परंपरा दोनों का नुकसान हो रहा है। संसद में बैठने वाले देश के सभी छोटे-बड़े दल इस खालीपन को महसूस कर रहे हैं। लेकिन विपक्ष में सर्वाधिक संख्या रखने वाली पार्टी और उसका नेतृत्व ही रोड़ा बना बैठा है।संप्रग के अध्यक्ष पद पर बदलाव का विचार शायद इसी खालीपन की उपज है। कांग्रेस के अंदर व कांग्रेस से इतर अन्य विपक्षी दलों के नेता यह मानने लगे हैं कि देश को एक गंभीर विपक्ष की जरूरत है। यह गंभीर विपक्ष कम से कम राहुल गांधी के नेतृत्व में तो खड़ा नहीं किया जा सकता। अन्य दलों में कहीं भाषा की मजबूरी है, तो कहीं क्षेत्रीयता आड़े आ जाती है। दूसरी ओर, शरद पवार अब कांग्रेस में भले न हों, लेकिन कांग्रेस से निकले हुए नेता हैं। आज भी कांग्रेस में अग्रिम पंक्ति के करीब-करीब सभी नेता उनके मित्र हैं। अन्य क्षेत्रीय दलों तक उनकी पहुंच संप्रग का विस्तार भी कर सकती है। संभवतः यही उम्मीद 80 की उम्र में भी शरद पवार को संप्रग के अध्यक्ष के रूप में देखना चाहती है, ताकि देश को एक मजबूत सरकार के साथ-साथ एक मजबूत विपक्ष भी नसीब हो सके।


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