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    शरद पवार के लिए हैरान करने वाला था प्रफुल पटेल का साथ छोड़ना, माना जाता था सबसे भरोसेमंद सिपहसालार

    By Jagran News Edited By: Ashisha Singh Rajput
    Updated: Mon, 03 Jul 2023 11:42 PM (IST)

    शरद पवार महाराष्ट्र के चार बार मुख्यमंत्री रहे हैं। महाराष्ट्र को औद्योगिक मोर्चे पर आगे ले जाने का काम भी पवार के ही हाथों संपन्न हुआ है। इस प्रक्रिया में देश के शीर्ष उद्योगपतियों से शरद पवार के संबंध भी प्रगाढ़ रहे हैं। इसी कड़ी में व्यापारिक घराने के प्रफुल पटेल से भी शरद पवार की मुलाकात हुई। (जागरण- फोटो)

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    इस प्रक्रिया में देश के शीर्ष उद्योगपतियों से शरद पवार के संबंध भी प्रगाढ़ रहे हैं।

    मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। राजनीति में एक-दूसरे से जुड़ना और छिटकना सामान्य बात है। लेकिन कुछ जोड़िया ऐसी होती हैं, जिनका अलग होना असामान्य माना जाता है। ऐसा ही रहा एक दिन पहले प्रफुल्ल पटेल का शरद पवार का साथ छोड़ अजीत पवार के साथ जाना। शरद पवार महाराष्ट्र के चार बार मुख्यमंत्री रहे हैं। महाराष्ट्र को औद्योगिक मोर्चे पर आगे ले जाने का काम भी पवार के ही हाथों संपन्न हुआ है।

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    प्रफुल पटेल से भी हुई शरद पवार की मुलाकात

    इस प्रक्रिया में देश के शीर्ष उद्योगपतियों से शरद पवार के संबंध भी प्रगाढ़ रहे हैं। इसी कड़ी में व्यापारिक घराने के प्रफुल पटेल से भी शरद पवार की मुलाकात हुई। प्रफुल्ल पटेल को दिल्ली में शरद पवार का सबसे भरोसेमंद सिपहसालार माना जाता रहा है। 1991 में वह पहली बार भंडारा लोकसभा सीट से चुने गए थे।

    मुझे किसी के जाने से कोई दुख नहीं है : शरद पवार

    उसके बाद से अब तक कभी लोकसभा तो कभी राज्यसभा में वह शरद पवार की कृपा से बने हैं। लेकिन रविवार को जब वह शरद पवार का साथ छोड़कर अजीत पवार के साथ चले गए तो पवार को दुखी होकर कहना पड़ा कि मुझे किसी के जाने से कोई दुख नहीं है, सिवाय प्रफुल पटेल और तटकरे के।

    जयंत पाटिल को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया

    इन्हें हमने सबसे पहले महासचिव बनाया था लेकिन उन्होंने गलत रास्ता चुना। इसलिए उन्हें अपने पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। हालांकि, पवार के इस बयान के 24 घंटे के अंदर ही प्रफुल पटेल ने अपने कार्यकारी अध्यक्ष पद का उपयोग करते हुए ही जयंत पाटिल को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया, जो अभी तक पवार के साथ बने हुए थे।

    यह पवार के लिए भी कोई रहस्य नहीं है कि प्रफुल पटेल या हसन मुश्रिफ जैसे नेता क्यों उनका साथ छोड़ अजीत पवार के साथ शिंदे-भाजपा सरकार में शामिल हो गए।

    विपक्षी दलों पर केंद्रीय एजेंसियों का दबाव डाला जा रहा : पवार

    खुद पवार यह आरोप कई बार लगा चुके हैं कि विपक्षी दलों पर केंद्रीय एजेंसियों का दबाव डाला जा रहा है। प्रफुल्ल पटेल भी ऐसे ही नेताओं में से एक हैं, जिनसे वर्ली के एक संपत्ति सौदे के मामले में प्रवर्तन निदेशालय पूछताछ कर चुका है। राकांपा सूत्रों का कहना है कि प्रफुल्ल पटेल हों, या अजीत पवार के साथ गए अन्य नेता राजनीति से पहले सभी के अपने-अपने व्यावसायिक हित भी हैं।

    ये सभी नेता सत्ता पक्ष के साथ रहने के इतने आदी हो चुके हैं कि लंबे समय तक विपक्ष में रहना, इनके व्यावसायिक हितों को प्रभावित करता है। यही कारण है कि सत्ता पक्ष के साथ जाने के लिए कोई वैचारिक प्रतिबद्धता इनके आड़े नहीं आती।