Mumbai: 'प्रेगनेंसी के लिए मजबूर करना मौलिक अधिकार का अपमान', बॉम्बे HC ने महिला को दी गर्भपात की अनुमति
महिला के गर्भधारण को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक बेहद अहम टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने कहा है कि गर्भावस्था को जारी रखने या नहीं रखने का अधिकार पूरी तरह से महिला का है। महिला ने गर्भपात की मंजूरी देने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।

मुंबई, एजेंसी। बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि महिला को गर्भावस्था जारी रखने के लिए मजबूर करना बच्चे को जन्म देने की इच्छा व गरिमा के मौलिक अधिकार का अपमान है। साथ ही कोर्ट ने गर्भवती हुई पीड़ित महिला को 23 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की अनुमति दे दी है।
बच्चा पैदा करना व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा
न्यायमूर्ति अभय अहूजा व न्यायमूर्ति एमएम साठे की खंडपीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत महिला के बच्चा पैदा करने की इच्छा को उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा माना है। एमटीपी के केस में महिला का अपने शरीर पर पूरा हक है।
सर्वोच्च न्यायालय की यह बात मौजूदा मामले में पूरी तरह से लागू होगी। वैसे भी अभी महिला का भ्रूण 24 सप्ताह से ऊपर नहीं हुआ है। लिहाजा महिला को गर्भपात की इजाजत दी जाती है। खंडपीठ ने महिला को राहत देते समय उसकी जांच को लेकर पेश की गई मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर भी विचार किया। यह रिपोर्ट कोर्ट के निर्देश के तहत पेश की गई थी।
महिला के वकील ने कहा कि गर्भावस्था ने न केवल उसके लिए गंभीर मानसिक चिंता पैदा की है, बल्कि वह बच्चे की देखभाल करने की स्थिति में भी नहीं है। जजों ने कहा कि जेजे अस्पताल के मेडिकल बोर्ड ने महिला को एमटीपी कराने के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से फिट पाया।
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