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GaneshChaturthi 2019: क्या आप जानते हैं आजादी की लड़ाई से जुड़ी है महाराष्ट्र के गणेशोत्सव की परंपरा

GaneshChaturthi 2019 देश के हर कोने में गणेश चतुर्थी का पर्व बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है क्या आप जानते हैं आजादी से जुड़ी है इस पर्व की परंपरा।

By Babita kashyapEdited By: Published: Thu, 29 Aug 2019 01:25 PM (IST)Updated: Mon, 02 Sep 2019 08:24 AM (IST)
GaneshChaturthi 2019: क्या आप जानते हैं आजादी की लड़ाई से जुड़ी है महाराष्ट्र के गणेशोत्सव की परंपरा
GaneshChaturthi 2019: क्या आप जानते हैं आजादी की लड़ाई से जुड़ी है महाराष्ट्र के गणेशोत्सव की परंपरा

मुंबई, जेएनएन।  GaneshChaturthi 2019:  देश के हर कोने में गणेशोत्सव की तैयारियां जोरों पर हैं, दस दिन का ये पर्व अब देश के हर शहर हर गली में मनाया जाने लगा है लेकिन महाराष्ट्र में इस उत्सव का नजारा कुछ अलग ही होता है। मुंबई में गणेश भगवान के स्वागत के लिए सुंदर पंडाल बनकर तैयार हो गए हैं, अब भक्तों को इंतजार है तो बस गणेश जी के आगमन का। महाराष्ट्र में केवल पंडालों में ही नही बल्कि घर-घर में गणेश जी विराजते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि महाराष्ट्र में ये पर्व इतनी धूमधाम से क्यों मनाया जाता है।   

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आजादी की लड़ाई से जुड़ी है गणेशोत्सव की परंपरा

गणेशोत्सव की परंपरा का शुरुआत पेशवाओं के समय में हुई थी। पेशवा सवाई माधवराव के शासन के दौरान पुणे के प्रसिद्ध शनिवारवाड़ा नामक राजमहल में भव्य गणेशोत्सव मनाया जाता था। यहीं से इस उत्सव का आरंभ हुआ। इसके पश्चात 1890 में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक ने सब लोगों को एकत्र करने की बात सोची ऐसे में उनके दिमाग आया क्यों न इस बार गणोशोत्सव सामूहिक रूप से मनाया जाये और सब लोगों को इसके लिए एकत्र होने के लिए कहा गया और इसी दिन से इसे सार्वजनिक रूप से मनाने की शुरुआत हुई। गौरतलब है कि बाद में इसी गणेशोत्सव के मदद से आजादी की लड़ाई और प्रबल हुई, वीर सावरकर और कवि गोविंद ने नासिक में गणेशोत्सव के लिए एक संस्था का निर्माण किया, जिसका नाम मित्रमेला रखा गया, यहां मराठी गीतों और देशभक्ति के गीतों का कार्यक्रम किया जाता था जो लोगों को बहुत पसंद आता था। जिससे ये संस्था प्रसिद्ध हो गई और इसी संस्था के जरिये देश के अन्य शहरों में भी आजादी का आंदोलन छेड़ा गया।  

लालबाग का राजा

मुंबई के लालबाग के राजा सबसे पुराने और प्रसिद्ध पूजा मंडलों में से एक हैं। यहां 1934 से हर साल गणपति की प्रतिमा स्थापित की जाती है। विघ्नहर्ता के दर्शन के लिए फिल्म से लेकर राजनीतिक हस्तियों समेत करीब डेढ़ लाख श्रद्धालु रोजाना आते हैं। यहां श्रद्धालु गणपति बप्पा के दर्शन के लिए घंटों लाइन में लगे रहते हैं। कभी-कभी तो दर्शन करने में 24 घंटे से भी जयादा समय लग जाता है। चारों तरफ बस गणपति बप्पा मोरया! मंगलमूर्ति मोरया! यही गूंज सुनाई दे रही होती है। दर्शन के लिए यहां दो लाइनें होती है। जनरल और नवास लाइन। नवास लाइन में लगने वाले श्रद्धालुओं को भगवान के चरण छूने का मौका मिलता है वहीं जनरल लाइन में लगने वाले श्रद्धालुओं को 10 मीटर दूर से भगवान के दर्शन करने पड़ते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना गणपति पूरी करते हैं। गणेश उत्सव के मात्र दस दिनों में यहां करोड़ों रुपये का दान भी भक्तों द्वारा अर्पित किया जाता है। लालबाग के राजा का बीमा भी किया जाता है।

गणेशोत्सव से जुड़ी मान्यताएं

गणेश चतुर्थी के दिन मिट्टी से निर्मित भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना की जाती है। इस पूजा के 16 चरण होते हैं जिन्हें शोदशोपचार पूजा के नाम से जाना जाता है, गणेश भगवान को मोदक का भोग लगाया जाता है। 10 दिन तक भगवान विघ्नहर्ता गणेश भगवान का भक्तिभाव से पूजन किया जाता है। सुबह शाम घरों और पंडालों में नियमित रूप से आरती की जाती है और 10वें दिन भगवान गणेश की मूर्ति का विसर्जन कर दिया जाता है। 

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शुभ मुहूर्त

गणेश चतुर्थी का पर्व 2 सितंबर 2019 को गणेश जी की स्थापना करके मनाया जाएगा। 12 सितंबर को गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन किया जाएगा। 2 सितंबर केदिन मध्यान्ह गणेश पूजा का शुभ मूहूर्त दोपहर 11 बजकर 05 से 01 बजकर 36 तक  रहेगा। चंद्रमा न देखने का समय- सुबह 8 बजकर 55 मिनट से शाम 9 बजकर 05 मिनट तक रहेगा। 

गणेश पूजन की सामग्री

विघ्नहर्ता गणेश की प्रतिमा की घर में स्थापना के लिए सभी विधि विधान के अलावा जिन सामग्री की जरूरत होती है, वो इस प्रकार हैं. शुद्ध जल, दूध, दही, शहद, घी, चीनी, पंचामृत, वस्त्र, जनेऊ, मधुपर्क, चन्दन, रोली सिन्दूर, अक्षत (चावल के दाने), फूल माला, बेलपत्र, दूब, शमीपत्र, गुलाल, आभूषण, सुगन्धित तेल, धूपबत्ती, दीपक, प्रसाद, फल, गंगाजल, पान, सुपारी, रूई, और कपूर। 

पूजन विधि

गणेश चतुर्थी के दिन गणपति भगवान की मिट्टी से निर्मित प्रतिमा की देव स्थान पर स्थापना करें, और विधि विधान से गणेश भगवान का पूजन करें। दोनों समय नियमित रूप से आरती करें और भगवान को मोदक का भोग लगाये। अगर किसी कारण आप मूर्ति लाने में असमर्थ हैं तो मायूस न हो आप साबुत सुपारी को भी गणेश जी के स्वरूप के तौर पर स्थापित कर सकते हैं। 

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